सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पैरेंट्स के बीच बच्चों की कस्टडी के लिए चल रही कानूनी लड़ाई में बच्चों की परीक्षाओं की प्रोफार्मेंस उनकी कस्टडी तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। 
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दरअसल, शादी के 15 साल से ज्यादा होने के बाद, महिला ने अपने वैवाहिक घर को छोड़कर पति पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता करने का आरोप लगाकर बच्चों की कस्टडी की मांग की थी। जब बच्चे पिता के पास रह रहे थे तो लड़के की उम्र 14 साल और लड़की की उम्र 10 थी। उस दौरान कोर्ट से महिला को अपने पति से अंतरिम रखरखाव मिला, लेकिन बच्चों की कस्टडी पिता को दी गई क्योंकि बच्चे बोर्डिंग स्कूल में थे।
महिला ने कहा कि उसके पति ने बिना किसी कोर्ट के आदेश के बेटे के कक्षा-9 में असफल से होने के बाद उसकी कस्टडी मुझे सौंप दी थी ताकि उसका साल बर्बाद न हो। कपल्स के कोर्ट पहुंचने के बाद मजिस्ट्रेट ने बच्चों के साथ बातचीत की और मां को कस्टडी सौंप दी। कोर्ट ने पति की अपील को खारिज कर दिया लेकिन उसके बाद हाई कोर्ट ने पिछले साल 17 फरवरी को बच्चों की कस्टडी पिता को देने का आदेश दिया था।
मामले में न्यायमूर्ति सीकरी ने फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर सही तरीके से चर्चा की और उसके बाद बच्चों के रिपोर्ट कार्ड के प्रोफार्मेंस के देखने के बाद पाया कि बच्चों कि कस्टडी मां के पास रहने पर पिता की तुलना में ज्यादा अच्छा रहा है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इसके लिए पिता को दोष नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह माता-पिता के बीच झगड़े का नतीजा रहा होगा।
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