केन्द्र सरकार के वार्षिक बजट में आम आदमी को इंतजार यह जानने का रहता था कि उसके जरूरत की किन चीजों पर सरकार ने टैक्स में बदलाव किया है. यानी बजट के बाद आम आदमी के लिए क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा. लेकिन 1 जुलाई से पूरे देश में जीएसटी लागू हो चुका है और अब केन्द्र सरकार द्वारा शुरू की जा चुकी 2018 की बजट प्रक्रिया में आम आदमी की दिलचस्पी नहीं होगी.
ऐसा इसलिए कि अब उत्पाद और सेवाएं पर टैक्स निर्धारित करने का काम जीएसटी काउंसिल के अधीन है. जीएसटी काउंसिल वित्त मंत्री के नेतृत्व वाली संस्था है जिसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल हैं. जीएसटी कानून के तहत 1 जुलाई 2017 के बाद देश में सभी उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स निर्धारित (इनडायरेक्ट टैक्स) करने की जिम्मेदारी जीएसटी काउंसिल के पास रहेगी.
गौरतलब है कि जहां बीते वर्षों में वार्षिक बजट पर आम आदमी की नजर सस्ता-महंगा जानने के लिए रहती थी लेकिन 3 महीने पहले लागू हुए जीएसटी के बाद जीएसटी काउंसिल तीन बार सस्ता-महंगा निर्धारित कर चुकी है. लिहाजा आगामी वार्षिक बजट में केन्द्र सरकार द्वारा महज डायरेक्ट टैक्स- यानी पर्सनल इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स के साथ-साथ कस्टम ड्यूटी ही निर्धारित किया जाएगा.
हालांकि जीएसटी में प्रावधान के मुताबिक वार्षिक बजट में जीएसटी काउंसिल द्वारा निर्धारित अलग-अलग उत्पादों और सेवाओं का समावेश देखने को मिलेगा. इसके साथ ही वार्षिक बजट में केन्द्र सरकार के वार्षिक खर्च के साथ-साथ नए स्कीमों और कार्यक्रमों का लेखा जोखा मौजूद रहेगा.
गौरतलब है कि इससे पहले केन्द्र सरकार ने रेल मंत्रालय के अलग बजट की व्यवस्था को वार्षिक बजट में समाहित कर दिया था. इस फैसले के चलते पिछले बजट में आम आदमी को रेल बजट में नई रेल गाड़ियां और नए रेल रूट पर घोषणा सुनने को नहीं मिली.
वहीं एक अन्य चीज जिसके लिए आम आदमी को वार्षिक बजट का इंतजार रहता था वह है केन्द्र सरकार द्वारा नई स्कीमों और योजनाओं की घोषणा का. लेकिन बीते तीन साल के मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान बजट के इस महत्व को भी बट्टा लग चुका है क्योंकि सरकार की ज्यादातर स्कीम और योजनाओं को बजट के आगे-पीछे लांच किया गया है. बजट का इस्तेमाल महज इन स्कीमों के लिए फंड का प्रावधान करने के लिए किया गया है.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने बजट पेश करने की तारीख में भी बड़े फेरबदल किए हैं. पहले जहां 28 फरवरी को आम बजट पेश किया जाता था वहीं पिछले वर्ष इस परंपरा को खत्म कर 1 फरवरी को बजट पेश किया गया. अब केन्द्र सरकार की तैयारी वित्त वर्ष में बदलाव करने की है. इस बदलाव से अप्रैल-मार्च से वित्त वर्ष को बदलकर जनवरी-दिसंबर कर दिया जाएगा. लिहाजा ऐसा करने के लिए यह जरूरी हो जाएगा कि केन्द्र सरकार बजट की प्रक्रिया को अगस्त-सितंबर महीने से शुरू करते हुए नवंबर तक पूरा कर सके. ऐसे में साफ है कि बीते कुछ वर्षों में आम आदमी के लिए वार्षिक बजट का महत्व कम हुआ है और आने वाले दिनों में वह महज सरकारी खर्च और आमदनी की रिपोर्ट से अधिक नहीं रह जाएगा.