कोलकाता : पश्चिम बंगाल की पहचान रसगुल्ले के अलावा संदेश और मिष्टी दोई यानी मीठी दही के कारण है.इनके बिना कोई भी सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरा नहीं होता, लेकिन इन मीठी स्वादिष्ट मिठाइयों में एक जुलाई से लागू वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी ने कडुआहट भर दी है. जीएसटी के विरोध में राज्य की डेढ़ लाख से ज़्यादा मिठाई विक्रेताओं ने मिठाई को जीएसटी से बाहर रखने की मांग को लेकर पहले एक दिन की हड़ताल की, फिर गुरुवार से पश्चिम बंगाल मिष्ठान्न व्यवसायी समिति के बैनर तले तीन दिनों की भूख हड़ताल शुरू कर दी है.
बता दें कि इन मिठाई विक्रेताओं का कहना है कि मिठाई की अलग-अलग किस्मों पर टैक्स की दरें अलग-अलग होने की वजह से कर्मचारियों को बिल बनाने में बहुत परेशानी होती है. रस गुल्ले पर जहां पांच फ़ीसदी जीएसटी है, वहीं कई अन्य मिठाइयों के लिए यह दर 12 से 20 फ़ीसदी के बीच है. मगर चॉकलेट वाली मिठाइयों पर इसकी दर 28 फ़ीसदी है. दूसरा यह कि जब पहले मिठाई पर वैट लागू नहीं था तो अब जीएसटी क्यों लगाया जा रहा है.
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इस बारे में समिति के अध्यक्ष राम चौरसिया में बताया कि यह कारोबार अधिकांशतः असंगठित क्षेत्र में है. टैक्स के मामलों में उनका ज्ञान लगभग शून्य है.चौरसिया का यह भी कहना है कि यह उद्योग ज़्यादातर कच्चा माल बिना किसी रसीद के खरीदता है. ऐसे में वितरक ज़रूरी दस्तावेज कहां से देंगे.जीएसटी से छूट नहीं मिलने पर यह कारोबार ठप हो जाएगा.जबकि बंगाल की आत्मा में मिठाइयां रची बसी हैं.
वेस्ट बंगाल स्वीटमीट कन्फ़ेक्शनर्स एसोसिएशन के महासचिव रवींद्र कुमार पाल ने बताया कि केंद्र को हड़ताल और भूख हड़ताल के बारे में तीन सप्ताह पहले ही सूचित कर दिया था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया. कुछ नहीं होने पर दो सप्ताह बाद यह आंदोलन को और तेज किया जाएगा.
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