नई दिल्ली। चीन के दबदबा बढ़ाने की नीतियों के खिलाफ विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को उसे कड़ा संदेश दिया। कहा कि हिंद-प्रशांत गठजोड़ की अवधारणा किसी देश के दबदबे को खारिज करने और इस बात पर जोर देने की है कि दुनिया को कुछ देशों के फायदे के लिए फ्रीज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ग्लोबल टाउन हॉल के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह भविष्य का एक संकेत है, न कि अतीत में झांकने का।
विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब चीन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में लगा है और उसका यह रवैया वैश्विक ताकतों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है। उन्होंने हिंद-प्रशांत गठजोड़ की अहमियत का उल्लेख करते हुए कहा कि इसकी तार्किक मान्यता बढ़ रही है। अब इसे व्यावहारिक स्वरूप देने की जरूरत है और यह काम क्वाड जैसे बहुपक्षीय कूटनीतिक परामर्श या ईस्ट एशिया समिट 2019 में भारत द्वारा पेश भारत-प्रशांत गठजोड़ की पहल से हो सकता है।
हिंद-प्रशांत गठजोड़ और कोरोना संकट विषयक इस सम्मेलन में जयशंकर ने कहा कि लक्षित दृष्टिकोण वाला यह गठजोड़ मौजूदा वास्तविकता का सामयिक वर्णन है। जब चुनौतियां बड़ी हों और क्षमता उसके अनुरूप न हो तो समाधान गहन सहयोग ही हो सकता है। समुद्री सुरक्षा, परिवहन तथा बाजार आधारित संपर्क या आतंकवाद विरोधी अभियान जैसे मसलों के लिए ऐसे ही समाधान की जरूरत है। हर युग की अपनी रणनीतिक अवधारणा होती है तथा यह समय भी कोई अपवाद नहीं है।
उल्लेखनीय है कि 1 जून, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में शांग्री ला डायलाग में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के खाका पर भारत का नजरिया पेश किया था। इसकी अवधारणा समावेशी प्रकृति की है, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्र में नौवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता का समर्थन व सम्मान करता है। अपने संबोधन में जयशंकर ने कोरोना संकट से निपटने में भारत के प्रभावी रेस्पांस और वैश्विक सहयोग पर जोर दिए जाने का भी उल्लेख किया।