अध्यात्म

माता मावली मंदिर, जहां महिलाओं को नहीं मिलता है प्रवेश

छत्तीसगढ़ के धमतरी से पांच किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पुरूर में स्थित आदि शक्ति माता मावली के मंदिर की अनोखी परंपरा है. यहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मंदिर की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मन्नत पूर्ण होती है. माता की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं. इस नवरात्र में 166 ज्योत जलाई गई है. मंदिर के पुजारी श्यामलाल साहू और शिव ठाकुर ने बताया कि यह मावली माता मंदिर वर्षों पुराना है. यहां के पुजारी (बैगा) ने बताया था कि उन्हें एक बार सपने में भूगर्भ से निकली माता मावली दिखाई दी और माता ने उस बैगा से कहा था कि वह अभी तक कुंवारी हैं, इसलिए मेरे दर्शन के लिए महिलाओं का यहां आना वर्जित रखा जाए. तब से इस मंदिर में सिर्फ पुरुष ही दर्शन के लिए पहुंचते हैं. सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है. मन्नत पूरी होने पर कई श्रद्धालु चढ़ावा लेकर पहुंचते हैं. इस नवरात्र में 166 दीप प्रज्‍जवलित किए गए हैं. माता मावली के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंचते हैं. आदि शक्ति मावली माता मंदिर में लगातार सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है. इस मंदिर में बागीचे का निर्माण किया गया है, जहां गुलाब, गोंदा, सूरजमुखी, सेवंती के फूल आकर्षण का केंद्र बन गए हैं. मंदिर के चारों ओर फूलों की सुगंध बिखर रही है. जैसा कि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा है. पूजा-अर्चना के लिए परिसर में एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया गया है, जहां महिलाएं माता के दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगती हैं. महिलाएं नमक, मिर्ची, चावल, दाल, साड़ी, चुनरी आदि चढ़ावा के रूप में चढ़ाती हैं. गांव की रामबती, सुशीला, चंपाबाई सहित कई महिलाओं ने बताया कि यहां महिलाओं का अंदर जाना मना है, इसलिए सभी महिलाएं बाहर से ही दर्शन कर लेती हैं. अगर उनकी कुछ मन्नतें होती हैं तो मंदिर के बाहर स्थापित मंदिर में दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगती हैं.

छत्तीसगढ़ के धमतरी से पांच किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पुरूर में स्थित आदि शक्ति माता मावली के मंदिर की अनोखी परंपरा है. यहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मंदिर की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं …

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मां चंडिका शक्तिपीठ: जहां दूर होती है आंखों की पीड़ा

मां चंडिका का मंदिर बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित है. इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान है. इसीलिए इसे ‘श्मशान चंडी’ के रूप में भी जाना जाता है. नवरात्र के दौरान कई …

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इस मंदिर में मनाया जाता है ‘फुटवियर फेस्टिवल’, लोग चढ़ाते हैं चप्पलें

कनार्टक के गुलबर्ग जिले में लकम्‍मा देवी का मंदिर है. यहां हर साल 'फुटवियर फेस्टिवल' होता है, जिसमें दूर-दराज के गांवों से लोग चप्‍पल चढ़ाने आते हैं. इस फेस्टिवल में मुख्‍य तौर पर गोला (बी) नामक गांव के लोग बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं. यह फेस्टिवल अजीब-गरीब रिवाजों के कारण प्रसिद्ध है. हर साल यह फेस्टिवल दिवाली के छठे दिन आयोजित किया जाता है. यहां लोग आकर मन्‍नत मांगते हैं और उसके पूरा होने के लिए मंदिर के बाहर स्थित एक पेड़ पर चप्‍पलें टांगते हैं. यही नहीं लोग इस दौरान भगवान को शाकाहारी और मांसाहारी भोजन का भोग भी लगाते हैं. लोगों का मानना है कि इस तरह चप्‍पल चढ़ाने से ईश्‍वर उनकी बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि है कि इससे पैरों और घुटनों का दर्द सदैव के लिए दूर हो जाता है. इस मंदिर में हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी आते हैं. कहा जाता है कि माता भक्‍तों की चढ़ाई गई चप्‍पलों को पहनकर रात में घूमती हैं और उनकी रक्षा करती हैं.

कनार्टक के गुलबर्ग जिले में लकम्‍मा देवी का मंदिर है. यहां हर साल ‘फुटवियर फेस्टिवल’ होता है, जिसमें दूर-दराज के गांवों से लोग चप्‍पल चढ़ाने आते हैं. इस फेस्टिवल में मुख्‍य तौर पर गोला (बी) नामक गांव के लोग बढ़-चढ़कर …

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चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे ये 4 मठ

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है. उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की थी. ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं. हिंदू धर्म में मठों की परंपरा लाने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है. आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी. आइए जानते हैं आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित इन मठों के बारे में... श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है. श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है. इसके अलावा कर्नाटक में रामचन्द्रपुर मठ भी प्रसिद्ध है. इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है, मठ के तहत 'यजुर्वेद' को रखा गया है. इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे. गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है. गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है. बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस मठ के अंतर्गत आता है. गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' और इस मठ के तहत 'ऋग्वेद' को रखा गया है. इस मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद हुए. शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है. यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है. इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' और इसमें 'सामवेद' को रखा गया है. शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे. ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है. ऐतिहासिक तौर पर, ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी. ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे ये 4 मठसम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इसका महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है. मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है. इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे.

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है. उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की …

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कभी नहीं होगी कभी घर में पैसो की किल्लत अगर तुलसी के पास लगायेंगे ये जादुई पौधा

आज के समय में हर किसी इंसान की एक ही शिकायत होती है कि कितना भी कमा लो लेकिन पैसों की तंगी बनी रहती है। इससे निजात पाने के लिए हम नित नये उपाय करते रहते है लेकिन फिर भी …

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शुक्र 9 जून को जा रहे हैं कर्क राशि में, जानें क्या होगा आपकी राशि पर असर

वैदिक ज्योतिष में शुक्र को सभी भौतिक सुख देने वाला ग्रह माना जाता है। यह प्रेम, सौंदर्य, कला और सांसारिक सुख आदि का कारक ग्रह है। शुक्र के शुभ प्रभाव से जहां व्यक्ति समस्त सांसारिक सुख-साधनों को प्राप्त करता है। वहीं, इसके अशुभ प्रभाव से संस्कारहीनता, परिवार में बिखराव और यौन रोग होते हैं। शुक्र ग्रह 9 जून शनिवार को 2:54 बजे कर्क राशि में गोचर (प्रवेश) करेगा और 5 जुलाई 2018 को 02:38 बजे तक इसी राशि में स्थित रहेगा। वृष और तुला राशि के स्वामी शुक्र के साथ इस राशि में राहु के साथ युति करेंगे, जो इस राशि में राहु पहले से ही मौजूद है। वहीं, कर्क राशि से ठीक सातवें स्थान पर यानी मकर राशि में मंगल और केतु मौजूद हैं। यानी ये चारों ग्रह एक दूसरे को देख रहे होंगे। आईये जानते हैं शुक्र के इस गोचर का सभी राशियों पर क्या प्रभाव होगा? मेष - आपकी राशि के चौथे भाव में शुक्र के आने से घरेलू जीवन पर असर दिखेगा। आपके पार्टनर को कार्यक्षेत्र में लाभ होगा और आपका करियर में आपको अच्छे अवसर मिलेंगे। वृष - वृषभ राशि के जातकों की कुंडली के तीसरे भाव में होगा। यात्रा के योग बनेंगे। पार्टनर को भौतिक सुख-सुविधाओं की भी प्राप्ति के आसार हैं। मिथुन- द्वितीय भाव में शुक्र का गोचर होने से गृहस्‍थ जीवन अच्‍छा रहेगा है। लाभ कमाने के मौके बनेंगे। जीवनसाथी की सेहत को लेकर चिंता हो सकती है। आपसी रिश्तों में प्यार बढ़ेगा। कर्क- शुक्र ग्रह आपकी ही राशि में गोचर करेगा। भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ेंगी, वैवाहिक जीवन खुशनुमा रहेगा।इस दौरान वरिष्ठ अधिकारियों से प्रशंसा मिलेगी। छात्र पढ़ाई में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे। सिंह- शुक्र आपकी राशि से 12वें भाग में गोचर करेगा। आर्थिक परेशानियां हो सकती हैं और खर्चे भी बढ़ सकते हैं। स्‍वास्‍थ्‍य पर ध्यान दें। काम के संबंध में यात्रा करनी पड़ सकती है। कन्‍या- शुक्र का गोचर आपकी राशि से 11वें भाव लाभ स्थान में होगा। आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधरेगी। आय के स्रोत खुलेंगे, भाग्‍य का लाभ मिलेगा। किसी महिला से लाभ या काम में मदद मिल सकती है। विष्णु के पैर क्यों दबाती हैं लक्ष्मी, जानें ग्रहों के रहस्य की बड़ी बात तुला- शुक्र आपकी राशि से 10वें भाग में गोचर कार्यक्षेत्र में विवाद खड़े कर सकता है। प्रेम प्रसंग बिगड़ सकते हैं और पार्टनर से अनबन हो सकती है। वृश्चिक- शुक्र आपकी राशि से नौवें भाग में गोचर करेगा। सब कुछ सामान्‍य रहेगा। समाज में आपकी प्रतिष्‍ठा बढ़ेगी। लंबी यात्रा करने के योग बन सकते हैं। धनु- शुक्र ग्रह आपकी राशि के 8 वें भाव में गोचर करने जा रहा है। गुप्‍त रोग से परेशान हो सकते हैं। आध्‍यात्‍म की ओर झुकाव बढ़ेगा। मकर- शुक्र का गोचर सातवें भाव में होने से वैवाहिक जीवन व प्रेम प्रसंग के लिए समय अच्छा होगा। नौकरी या व्यवसाय में भी लाभ हो सकता है। कुंभ- छठें भाव में शुक्र का गोचर होने से मेहनत ज्यादा करनी होगी, तभी लाभ होगा। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें, खर्च संभल कर करें । मीन- शुक्र का गोचर आपकी राशि से पांचवें भाव में होगा। ऐसा होने से आपकी कमाई के साधनों में वृद्धि होगी। विवाहित लोगों के जीवन में खुशियां दस्‍तक देंगी। संतान पक्ष से शुभ समाचार मिलेगा।

वैदिक ज्योतिष में शुक्र को सभी भौतिक सुख देने वाला ग्रह माना जाता है। यह प्रेम, सौंदर्य, कला और सांसारिक सुख आदि का कारक ग्रह है। शुक्र के शुभ प्रभाव से जहां व्यक्ति समस्त सांसारिक सुख-साधनों को प्राप्त करता है। …

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कमजोर आदमी को दुख पहुंचाने से आता है प्रलय

मुल्ला अब्बास बगदादी से एक बार अपने शिष्य ने प्रश्न किया कि ' सुना है प्रलय बहुत बड़ी बला होती है। प्रलय में सारे संसार को खत्म करने की ताकत होती है। क्या आप बता सकते हैं कि प्रलय होता क्या है? ' यह सुनकर मुल्ला अब्बास बगदादी ने जवाब दिया कि ' तुम्हारा कहना सही है कि प्रलय बहुत बड़ी बला होती है। देखते हैं तुम्हारे सवाल का कोई जवाब दे सकता है क्या यह कहकर उन्होनें दूसरे शिष्यों की ओर देखा। ' एक शिष्य ने कहा कि ' मेरी नजर में खुदा के प्रति इंसान के अपराध ही प्रलय की वजह है।' दूसरे ने कहा कि ' जब इंसान के जुल्मों को धरती झेल नहीं पाती है तो खुदा प्रलय के जरिए इसको धोता है। ' तीसरे शिष्य ने कहा कि ' कमजोर आदमी के आंसू का एक कतरा ही प्रलय की असली वजह है। ' मुल्ला अब्बास बगदादी ने सभी शिष्यों की बातों को सुना और कहा कि ' यह सही है कि कमजोर आदमी की आंखों से निकलने वाले आंसू ही प्रलय की वजह है। इसलिए किसी भी कमजोर आदमी के दुख-दर्द यदि हम दूर नहीं कर सकते हैं तो उसको किसी भी तरह की तकलीफ तो देनी ही नहीं चाहिए। निसहाय इंसान इतना लाचार होता है कि वह कष्टों को सिर्फ सहन करता रहता है और उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकलता है इसलिए उनकी लाचारी उनका दुख उनकी आंखों से आंसूओं के जरिए निकलता है। इसलिए गरीबों पर रहम करोगे तो खुदा भी तुम्हारे ऊपर मेहरबान बना रहेगा, लेकिन इसके बावजूद हम इस बात को समझते नहीं है और प्रलय को आमंत्रित करते रहते हैं। '

मुल्ला अब्बास बगदादी से एक बार अपने शिष्य ने प्रश्न किया कि ‘ सुना है प्रलय बहुत बड़ी बला होती है। प्रलय में सारे संसार को खत्म करने की ताकत होती है। क्या आप बता सकते हैं कि प्रलय होता …

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वह मंदिर जहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह

रुद्रप्रयाग में स्थित 'त्रियुगी नारायण' एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की राजधानी था. इस जगह पर आज भी हर साल देश भर से लोग संतान प्राप्ति के लिए इकट्ठा होते हैं और हर साल सितंबर महीने में बावन द्वादशी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है. आज भी प्रज्वलित है विवाह मंडप की अग्नि मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड कहे जाने वाले स्थान माता पार्वती ने तपस्या की थी जिसके बाद भगवान शिव ने इसी मंदिर में मां से विवाह किया था. कहते हैं कि उस हवन कुंड में आज भी वही अग्नि जल रही है. देशभर से आते हैं लोग... संतान प्राप्ति के लिए इस अग्नि का आशीर्वाद लेने के लिए देश के हर हिस्से से लोग आते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान केदारनाथ की यात्रा से पहले यहां दर्शन करने से ही प्रभु प्रसन्न होते हैं.

रुद्रप्रयाग में स्थित ‘त्रियुगी नारायण’ एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की राजधानी था. इस जगह पर आज भी हर साल देश भर …

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जिस घर में होते है ये तीन निशान उन्हें कोई नहीं कर सकता परेशान

घर में खुशियों को नजर लग जाना, बच्चो का पढ़ाई में मन न लगना, घर में सदस्यों का बार बार बीमार होना, व्यपार आदि में नुकसान होना, नौकरी में प्रमोशन न मिलना ये सब इस तरह की परेशानियां जिसके आने के बाद व्यक्ति असमंजस में रहता है वह समझ नहीं पता है कि आखिर उसके घर में ये सब क्यों हो रहा है. इन सभी परेशानियों को दूर करने के लिए वह कई सारे नुस्खे आजमाने में लग जाते है लेकिन क्या आप जानते है कि घर में इस तरह की परेशानी आने का मतलब आपके घर में नकरात्मक ऊर्जा का अस्तित्व बढ़ चुका है. अगर आप अपने परिवार को इन बुरी चीजों से बचाना चाहते है तो आपको वास्तु एवं ज्योतिष के मुताबिक़ कुछ ख़ास बातें जानना बेहद जरुरी है जो आपके घर की इन परेशानियों को आसानी से दूर कर सकती है. वास्तु एवं ज्योतिष के मुताबिक़ अगर आप अपने घर के दरवाजे पर ॐ स्वास्तिक त्रिशूल को टाँगे तो ये आपको बुरी नजरो से बचा सकता है. त्रिशूल , ॐ और स्वास्तिक ये तीन ऐसे चिन्ह है जो आपके घर में हमेशा सुख समृद्धि लाते है. हिन्दू धर्म में इन तीन चिन्हों को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. शास्त्रों के मुताबिक़ घर में स्वास्तिक चिन्ह लगाने से घर में आने वाली सभी नकरात्मक ऊर्जा दूर रहती है. वही त्रिशूल भगवान शिव का शस्त्र है माना गया है कि जहा त्रिशूल रहता है वहा व्यक्ति के कर्म विचार और स्वभाव ये तीनो ही सकरात्मक हो जाते है. अगर आप अपने घर में ॐ स्वास्तीक त्रिशूल लगाते है तो आपके पास कोई भी परेशानी नहीं आएगी और आपका परिवार खुशहाल रहेगा.

घर में खुशियों को नजर लग जाना, बच्चो का पढ़ाई में मन न लगना, घर में सदस्यों का बार बार बीमार होना, व्यपार आदि में नुकसान होना, नौकरी में प्रमोशन न मिलना ये सब इस तरह की परेशानियां जिसके आने …

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सुख -समृद्धिदायक है दक्षिणवर्ती शंख

हमारी हिन्दू परम्परा में कुछ ऐसे काम बताए गए हैं, जिन्हें नियमित रूप से करते रहने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी बुरी नजर भी नहीं लगती है. शास्त्रों में दक्षिणवर्ती शंख का बहुत महत्व बताया गया है. यदि विधि विधान से इसकी पूजा की जाए तो घर में सभी सुख और समृद्धि बनी रहती है. कहा जाता है कि दक्षिणवर्ती शंख घर में रखने से नकारात्मकता दूर होती है.घर की महिला द्वारा नित्य सुबह जल्दी उठकर दक्षिणवर्ती शंख से पूरे घर का शुद्धिकरण करने से बहुत लाभ होता है .इसके लिए सबसे पहले एक लाल कपड़ा लें, दक्षिणवर्ती शंख को उस पर शंख रखें. शंख में गंगाजल भर लें. धूप-दीप जलाकर शंख और गंगाजल का पूजन करें.फिर शंख के सामने बैठकर 11 या 21 बार मंत्र ऊँ श्री लक्ष्मीसहोदराय नम: का जाप करें.फिर मंत्र जाप के बाद इस शंख से जल पूरे घर में और पति, बच्चों सहित सभी सदस्यों पर छिड़कें.ऐसा रोजाना करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है और सबकी सुरक्षा होती है. दक्षिणवर्ती शंख को घर में रखने से कई लाभ होते हैं. इससे धन की कमी दूर हो सकती है.घर में अन्न की कमी नहीं होती है. वस्त्र आदि चीजों का भी सुख मिलता है.शयनकक्ष में शंख रखने से मन को शांति मिलती है. भगवान विष्णु के हाथ में सदा रहने वाला यह शंख बहुत लाभदायी होता है.

हमारी हिन्दू परम्परा में कुछ ऐसे काम बताए गए हैं, जिन्हें नियमित रूप से करते रहने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी बुरी नजर भी नहीं लगती है. शास्त्रों में दक्षिणवर्ती शंख का बहुत महत्व बताया गया …

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