मॉस्को. आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच 27 सितंबर से जारी युद्ध को रोकने के लिए रूस ने कोशिशें तेज कर दी हैं. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐलान किया है कि रूस के हस्तक्षेप से आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच शांति पर सहमति बन गई है. पुतिन ने यह भी कहा है कि युद्धग्रस्त क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए रूसी शांतिरक्षक बलों को इस इलाके में तैनात किया जाएगा.
पुतिन ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस समझौते से नागोर्नो-काराबाख इलाके में लंबे समय तक स्थायी और पूर्ण संघर्ष विराम की आवश्यक शर्तें स्थापित होंगी. आर्मीनिया और अजरबैजान ने भी इस शांति समझौते की पुष्टि की है. जिसके बाद माना जा रहा है कि 44 दिनों से जारी लड़ाई का अब अंत नजदीक है. आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोलस पशिनयान ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर ऐलान किया कि रूस की मध्यस्थता में उनका अजरबैजान के साथ शांति समझौता हुआ है. जिसके कुछ देर बाद अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने भी इसकी पुष्टि की. नागोर्नो-कारबाख क्षेत्र के नेता अराईक हरुतुयन ने भी ऐलान किया है कि उन्होंने शांति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
आर्मीनिया के पीएम बोले- हमने नहीं मानी है हार-
आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोलस ने कहा कि यह निर्णय युद्ध की स्थिति के गहन विश्लेषण और क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों के साथ चर्चा के आधार पर किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि यह जीत नहीं है लेकिन हार भी नहीं है, जब तक आप खुद को हारा हुआ नहीं मानते. हम खुद को कभी भी पराजित नहीं मानेंगे और यह हमारी राष्ट्रीय एकता और पुनर्जन्म के युग की एक नई शुरुआत होगी. अजरबैजान की सेना ने तुर्की और इजरायली हथियारों के दम पर आर्मीनिया को भारी नुकसान पहुंचाया है. जानकारी के अनुसार, नागोर्नो-काराबाख की राजधानी स्टेपानाकेर्ट पास बसे शुशी शहर पर अजरबैजानी सेना ने कब्जा कर लिया है. जिसके बाद से आर्मीनिया की सेना में स्टेपानाकेर्ट की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है.
क्या है इस संघर्ष का इतिहास-
आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे. आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी. पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया. जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है. 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए. इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया. यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे.