वाशिंगटन| अंतरराष्ट्रीय अदालत की एक सीट के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच मुकाबले में गतिरोध पैदा हो गया है और कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने आरोप लगाया कि ‘‘ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत की इच्छा को बाधित करने की कोशिश कर रहा है.’’ भारत के दलवीर भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में फिर से चुने जाने के लिए एक दूसरे से मुकाबला कर रहे हैं.
आईसीजे की 15 सदस्यीय पीठ के एक तिहाई सदस्य हर तीन साल में नौ वर्ष के लिए चुने जाते हैं. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में अलग अलग लेकिन एक ही समय चुनाव कराए जाते हैं. आईसीजे में चुनाव के लिए मैदान में उतरे कुल छह में से चार उम्मीदवारों को संयुक्त राष्ट्र कानूनों के अनुसार पिछले बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र कानूनों के अनुसार चुना गया और उन्हें महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में पूर्ण बहुमत मिला.
फ्रांस के रोनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ, ब्राजील के एंतोनियो अगस्ते कानकाडो त्रिनदादे और लेबनान के नवाफ सलाफ को बृहस्पतिवार को चार दौर के चुनाव के बाद चुना गया. आईसीजे के शेष एक उम्मीदवार के चयन के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद ने कल अलग अलग बैठकें कीं.
सुरक्षा परिषद में चुनाव के पांचों दौर में ग्रीनवुड को नौ मत मिले जबकि भंडारी को पांच मत मिले. ब्रिटेन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है. इसके मद्देनजर ग्रीनवुड, भंडारी की तुलना में लाभ की स्थिति में हैं. भंडारी को महासभा के पांचों दौर के चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला. बृहस्पतिवार को चुनाव में उन्हें 115 मत मिले थे और यह संख्या कल बढ़कर 121 हो गई. महासभा में पूर्ण बहुमत के लिए 97 मत मिलने आवश्यक हैं.
ग्रीनवुड के मतों की संख्या 76 से कम होकर 68 रह गई. आईसीजे की इस सीट के चुनाव के बेनतीजा रहने के बाद महासभा और सुरक्षा परिषद ने बैठक को बाद की किसी और तारीख के लिए स्थगित कर दिया. आईसीजे के लिए कल हुए मतदान से पहले कांग्रेस नेता और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व शीर्ष अधिकारी थरूर ने कहा कि ‘‘महासभा की आवाज’’ को लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है.
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के न्यायाधीश के चयन के लिए मतदान किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रभावशीलता दांव पर है. महासभा की आवाज को लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है.’’ थरूर ने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बड़ी इकाई के सीधे मुकाबले में पहली बार सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य का उम्मीदवार महासभा में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाया. महासभा का चुनाव 70 से अधिक वर्षों के विशेषाधिकार के अवांछित विस्तार के खिलाफ विरोध में बदल गया है. पी5 40 मतों से हार गया.’’ उन्होंने कहा कि यह चुनाव किसी न्यायाधीश या जिस देश से वह संबंध रखता है, उसके बारे में नहीं है, बल्कि यह चुनाव महासभा के विशेषाधिकार प्राप्त देशों के एक सदस्य के खिलाफ खड़ा होना है जो महासभा में बड़े स्तर पर हार गया लेकिन सुरक्षा परिषद में उसे छह के मुकाबले नौ सदस्यों से बढ़त मिल गई. ‘‘ब्रिटेन महासभा में बहुमत की इच्छा को बाधित करने की कोशिश कर रहा है.’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘वैश्विक अदालत के न्यायाधीशों को संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के बहुमत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए. सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों का क्लब इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता.’’ थरूर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय को अधिकतर सदस्यों की आवाज को प्रतिबिम्बित करना चाहिए, ना कि लंबे समय से विशेषाधिकार प्राप्त कुछ देशों के निर्णय को.
उन्होंने कहा, ‘‘केवल इसी प्रकार का बहुपक्षवाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय खासकर युवा पीढ़ी के बीच विश्वास को प्रेरित करेगा.’’ उन्होंने कहा कि यह भारत या किसी एक देश के बारे में नहीं है। यह न्याय, समता और निष्पक्षता के विचार के बारे में है.
थरूर ने कहा, ‘‘यह उस भविष्य के बारे में है, जिसकी कल्पना हम संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षवाद के बारे में करते हैं. अब यह सुधार का समय है. मैं सुरक्षा परिषद के सदस्यों से अपील करता हूं कि वह भारत के उम्मीदवार के लिए मतदान करें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘सिद्धांत के इन बिंदुओं के अलावा भारत ने अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की तलाश में अपने साझीदारों के साथ हमेशा साझा जिम्मेदारी निभाई है. हमारे मूल्य हमें विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और नियम आधारित रचनात्मक बहुलवाद की ओर ले जाते हैं.’’