साल 2011 में निलंबित की गई आईपीएल फ्रेंचाइजी कोच्चि टस्कर्स ने बीसीसीआई के खिलाफ आर्बिट्रेशन का केस जीत लिया है. केस जीतने के बाद कोच्चि टस्कर्स ने अब बीसीसीआई से 850 करोड़ रुपये कॉम्पेंसेशन के रूप में मांगे हैं. मंगलवार को बंबई हाई कोर्ट के फैसले के बाद यह मांग की गई है.
गौरतलब है कि 2011 में बीसीसीआई ने कोच्चि टस्कर्स केरला को निलंबित कर दिया था, क्योंकि यह फ्रेंचाइजी 156 करोड़ रुपए के सालाना भुगतान की बैंक गारंटी देने में नाकाम रही थी. इसके बाद कोच्चि टस्कर्स फ्रेंचाइजी ने 2011 में ही बंबई हाई कोर्ट में बीसीसीआई के खिलाफ आर्बिट्रेशन दायर की थी.
आपको याद दिला दें कि कोच्चि टस्कर्स केरला फ्रेंचाइजी ने साल 2011 में आईपीएल में डेब्यू किया था लेकिन उसका सफर सिर्फ इस सीजन तक ही सीमित रहा था. फिलहाल यह आईपीएल से निलंबित है.
बता दे कि इस फ्रेंचाइजी खरीदने के लिए उसके मालिकों को अहमदाबाद, ग्वालियर, नागपुर, व राजकोट की कंपनियों से कड़ी मिली थी. रॉन्देवू स्पोर्ट्स वर्ल्ड ने 1550 करोड़ की रकम में कोच्चि टस्कर्स केरला फ्रेंचाइजी हासिल की थी.
आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला ने बैठक के बाद कहा, ‘ कोच्चि टस्कर्स ने 850 रूपये मुआवजा मांगा है. हमने आईपीएल की संचालन परिषद की बैठक में इस पर चर्चा की. अब मसला आमसभा की बैठक में रखा जाएगा. वे फैसला लेंगे लेकिन मामले पर बातचीत की जरूरत है.’
कोच्चि टस्कर्स के मालिकों ने 2015 में बीसीसीआई के खिलाफ पंचाट में मामला जीता था जिसमें अनुबंध के उल्लंघन को लेकर बैंक गारंटी भुनाने के बीसीसीआई के फैसले को चुनौती दी गई थी.
आर सी लाहोटी की अध्यक्षता वाली पेनल ने बीसीसीआई को मुआवजे के तौर पर 550 करोड़ रूपये चुकाने के निर्देश दिए थे और ऐसा नहीं करने पर सालाना 18 प्रतिशत दंड लगाया जाना था. पिछले दो साल से बीसीसीआई ने ना तो मुआवजा चुकाया और ना ही टीम को आईपीएल में वापिस लिया.
आईपीएल संचालन परिषद के एक सदस्य ने कहा, ‘हमें कोच्चि को मुआवजा देना होगा. सभी कानूनी विकल्पों पर चर्चा हो चुकी है. आम तौर पर पंचाट का फैसला खिलाफ आने पर इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना बेवकूफी होती है.’
अधिकारी ने कहा, ‘ हमारे पास कोई विकल्प नहीं है लेकिन सवाल यह है कि रकम कितनी होगी.’ कोच्चि का करार रद्द करने का फैसला बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष शशांक मनोहर ने लिया था. एक आदमी की जिद का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है. शशांक ने वह फैसला नहीं लिया होता तो हम कोई रास्ता निकाल लेते.’