आज हम आपको एक बहुत ही प्राचीन कथा के बारे में बतानें जा रहे हैं, जिससे ज्यादातर लोग अनभिग्य ही होंगे। यह बात उस समय की है जब महाभारत का युद्ध ख़त्म हो गया था और युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था। कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत के युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराया। इसके बाद गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस तरह से कौरवों का वंश समाप्त हुआ है, ठीक वैसे ही यदुवंश का भी नाश हो जायेगा। गांधारी के श्राप के बाद श्रीकृष्ण द्वारका वापस आये और वहाँ से यदुवंशियों को लेकर प्रयास क्षेत्र में आ गए।
सात्यकी ने गुस्से में आकर काट दिया कृतवर्मा का सर
श्रीकृष्ण ने ब्राह्मणों को दान देने के बाद यदुवंशियों को मृत्यु का इन्तेजार करनें के लिए कहा। इसके कुछ दिनों बाद ही सात्यकी और कृतवर्मा के बीच महाभारत युद्ध की चर्चा के दौरान विवाद हो गया। सात्यकी को विवाद के दौरान इतना गुस्सा आया कि उन्होंने कृतवर्मा का सर ही काट दिया। इससे इनमें आपसी युद्ध भड़क गया और सभी लोग दो समूहों में बंट गए, इसके बाद शुरू हुआ नरसंहार का खेल। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकी के साथ ही पुरे यदुवंश का नाश हो गया। इस युद्ध में बब्रुक और दारुक बचे रह गए।
समुद्र किनारे ध्यान में लीन होकर बलराम ने त्याग दिया शरीर
यदुवंश की समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम समुद्र किनारे बैठकर ईश्वर की आराधना में लीन हो गए। इसके बाद उन्होंने अपनी देह का त्याग किया और स्वधाम लौट गए। बलराम के देहत्याग के बाद एक दिन श्रीकृष्ण पीपल के पेड़ के निचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे। उसी क्षेत्र में जरा नाम का एक बहेलिया आया हुआ था। वह एक तेज शिकारी था और यहाँ शिकार की तलाश में आया हुआ था। दूर बैठे श्रीकृष्ण का तलवा हिरण के मुख की तरह दिखाई दे रहा था। बहेलिये ने बिना सोचे-समझे एक तीर छोड़ा हो श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लग गया।
बहेलिये ने मार दिया श्रीकृष्ण के तलवे में तीर
जब वह पास जाकर देखा तो उसे अपने किये पर पश्चाताप हुआ। वह श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना करनें लगा। श्रीकृष्ण ने कहा तू डर मत तूनें मेरे मन का काम किया है। अब तुझे स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी। बहेलिये के जानें के कुछ ही देर बाद वहाँ श्रीकृष्ण के सारथी दारुक पहुँच गए। दारुक से श्रीकृष्ण ने कहा कि वह द्वारका जाकर बता दें कि यदुवंश का नाश हो चुका है। बलराम के साथ श्रीकृष्ण भी स्वधाम पहुँच चुके हैं। अब सभी लोग द्वारका छोड़ दें, क्योंकि यह नगरी अब जलमग्न होनें वाली है। मेरे सभी प्रियजन अब इन्द्रप्रस्थ चले जाएँ।
यात्रा के दौरान एक एक करके मर गए पांडव
सन्देश लेकर दारुक वहाँ से चल गया। भगवद्गीता के अनुसार जब बलराम के साथ श्रीकृष्ण के स्वधाम पहुंचनें की खबर उनके माता-पिता को मिली तो शोक में उन्होंने भी देह त्याग दिया। इसके बाद अर्जुन ने यदुवंश के निमित्त पिंडदान का कार्य किया था। इसकेबाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इन्द्रप्रस्थ चले आये। इसके बाद श्रीकृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर पूरी द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गयी। श्रीकृष्ण के स्वधाम पहुंचनें की सूचना पानें के बाद पांडवों ने भी हिमालय की यात्रा प्रारम्भ की। इस यात्रा के दौरान एक एक करके पांडवों ने भी अपने देह त्याग दिए।