भारत में हर साल कई त्योहार मनाए जाते हैं जिनका अपना अलग-अलग महत्व होता है. वैसे ही हिन्दू धर्म में शादीशुदा महिलाओं के लिए करवाचौथ का बहुत महत्व है. इस साल करवाचौथ 8 अक्टूबर को मनाया जाएगा. करवाचौथ का पर्व कार्तिक महीने की कृष्णा पक्ष चतुर्थी पर पड़ता है. करवाचौथ के दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. करवाचौथ का यह उपवास उत्तर भारत जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा राज्यों में प्रचलित है. हालांकि अविवाहित महिलाएं भी अपने भावी पति के लिए यह व्रत रखती हैं।
निर्जला उपवास का इतिहास और महत्व
इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए निर्जला (बिना पानी और खाना) व्रत रखती हैं. करवाचौथ से जुड़ी एक कहानी है कि एक विवाहित महिला अपने मृत पति के प्राण वापस ले आई थी. इसी के साथ एक और कहानी है, पुराने समय में जब लड़कियों की शादी दूर किसी गांव या जगह पर हो जाती थी तो उन्हें अपने परिवार और दोस्तों को पीछे छोड़कर नए संबंध बनाने पड़ते थे. इन छोटी उम्र की लड़कियों अपने पति के बारे में किसी तरह जानकारी नहीं होती थी, नए परिवार और रीति-रिवाजों में ढलने के लिए उन्हें थोड़े समय की जरूरत होती थी.
इसी कड़ी को लड़कियों के लिए आसान बनाने के लिए, एक गांव के लोगों ने एक प्रथा शुरू की जिसमें नई नवेली दुल्हनें अपनी हम उम्र लड़कियों के साथ दोस्ती करती थी. इस दौरान वह सभी लड़कियां अपने मन की बातों को एक-दूसरे के सामने व्यक्त कर सकती थीं. इस दोस्ती के समारोह के बीच उन्हें धरम की बहनें बनाने का मौका मिलता था. ऐसा माना जाता है, कि करवाचौथ के इस पर्व की शुरूआत दोस्ती के बंधन को मनाने के रूप में हुई. महिलाएं करवा लेकर आती थीं और उन्हें सजाकर अपनी बहनों को देती थीं. लेकिन समय के साथ, परांपराएं बदली और महिलाओं ने इस दिन पर पतियों के लिए उपवास करना शुरू किया.
करवाचौथ के दिन पूजा के दौरान आमतौर पर रानी वीरावती की कहानी सुनाई जाती है. वीरावती सात भाइयों की अकेली बहन थी, जिसे परिवार में सभी बहुत प्यार करते थे. वीरावती की शादी हो जाती है और वह शादी के बाद पहले करवाचौथ के उपवास के लिए अपने मायके आती है. वह पूरे श्रद्धा भाव के साथ पूरा दिन उपवास रखकर उत्सुकता के साथ चांद का इंतजार करती है. वीरावती को भूखा और प्यासा देखकर उसके भाइयों से नहीं रहा जाता और वह पीपल के पेड़ पर एक शीशा लटका कर कहते हैं कि चांद निकल आया है। वीरावती उस नकली चांद को देखकर अपना व्रत तोड़ देती है और जैसे वह खाने का निवाला अपने मुंह में डालने लगती है, तभी नौकर आकर उसे संदेश देते हैं कि उसके पति की मृत्यु हो गई है.
यह खबर मिलने के बाद वीरावती पूरी रात रोती रही अचानक उसके सामने एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने उसे कहा कि वह अपने पति को फिर से जीवित देखना चाहती है तो पूरे समर्पण और भक्तिभाव के साथ करवाचौथ के व्रत का पालन करें. वीरावती ने फिर से करवाचौथ का उपवास किया और उसके भक्तिभाव को देखकर देवता यम को भी उसके पति के प्राण लौटाने पड़े।