UKSSSC Paper Leak : यूकेएसएसएससी पेपर लीक प्रकरण में एसटीएफ ने आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी विपिन बिहारी निवासी सीतापुर उत्तर प्रदेश को गिरफ्तार कर लिया है। मामले में यह 28वीं गिरफ्तारी हो चुकी है और भी कई आरोपित एसटीएफ की रडार पर हैं।
2013 से कंपनी में कार्यरत था विपिन बिहारी
एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि आरोपित विपिन बिहारी वर्ष 2013 से कंपनी में कार्यरत था और पूर्व गिरफ्तार के कंपनी के कर्मचारी अभिषेक वर्मा से पेपर की फोटो कॉपी लेकर जीबी पंतनगर विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त अधिकारी दिनेश मोहन जोशी को बरेली में उपलब्ध कराया था।
कुछ अभ्यर्थियों ने मेरिट लिस्ट में प्राप्त किया था अच्छा स्थान
आरोपित दिनेश जोशी ने हल्द्वानी व आसपास के अभ्यर्थियों को पेपर याद करवाया था। इनमें से कुछ अभ्यर्थियों ने मेरिट लिस्ट में अच्छा स्थान प्राप्त किया था।
चयनित अभ्यर्थियों ने लगाई पूर्व सीएम से न्याय की गुहार
अपनी मेहनत और ईमानदारी से परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थियों ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भेंट कर उन्हें पीड़ा बताई और न्याय की गुहार लगाई। कहा कि पेपर लीक मामले में जांच चलती रहे और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होती रहे, लेकिन जिन अभ्यर्थियों ने ईमानदारी के साथ प्रतियोगी परीक्षा पास की है और उनका चयन हुआ है, उन्हें न्याय दिलाया जाए।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अभ्यर्थियों को आश्वस्त किया कि सरकार एसटीएफ से जांच करा रही है। मेहनत से पास होने वाले वाले अभ्यर्थियों के साथ अन्याय न हो और उन्हें जल्द न्याय मिले, इसके लिए भी वह मुख्यमंत्री से अनुरोध करेंगे।
एक साल के लिए नियुक्त उर्दू अनुवादक अब तक जमे
उत्तराखंड का राजनीतिक पारा इन दिनों सरकारी नियुक्तियों में की गई धांधली के चलते चरम पर है। एक के बाद एक फर्जीवाड़े के मामले सामने आ रहे हैं। इसी क्रम में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति का जिन्न बाहर निकल आया है। उत्तर प्रदेश के समय जो उर्दू अनुवादक एक साल के लिए तदर्थ आधार पर नियुक्त किए गए थे, वह अलग राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में न सिर्फ जमे हैं, बल्कि पदोन्नति भी पा रहे हैं।
अधिवक्ता विकेश नेगी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के माध्यम से यह बात उजागर की है। रविवार को पत्रकारों से रूबरू विकेश नेगी ने कहा कि राज्य गठन से पहले वर्ष 1995 में समाजवादी पार्टी की सरकार में उर्दू अनुवादकों की भर्ती की गई थी। यह नियुक्तियां 28 फरवरी 1996 को स्वतः समाप्त हो जानी चाहिए थीं। अहम बात यह है कि उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति गढ़वाल, कुमाऊं व बुंदेलखंड के लिए नहीं थी।
बावजूद ना केवल उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 150 से अधिक उर्दू अनुवादक उत्तराखंड आ गए, बल्कि यहां नियमित भी हो गए। सर्वाधिक अनुवादक पुलिस विभाग में भर्ती हैं। जिन्हें नियमित पदोन्नति भी मिल रही है। अधिवक्ता ने कहा कि उत्तराखंड में पूर्व की कांग्रेस सरकार में भी ऐसी फर्जी नियुक्तियों को निरस्त करने की मांग की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब प्रदेश के पुलिस महानिदेशक समेत मुख्यमंत्री को भी पत्र भेजा गया है। उन्होंने मांग की कि उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति तत्काल प्रभाव से समाप्त की जाए।