मुंबई मेट्रो के सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्से मीठी नदी के नीचे सुरंग का निर्माण निभा रही नि़डर एनी….

International Women’s Day 2020 जमीन से करीब 22 मीटर नीचे, ऊपर लंबी चौड़ी नदी, 40 डिग्री तापमान में दिन-रात काम, अनेक संभावित खतरों के बीच यह काम कतई आसान नहीं होता। वह भी तब जब आप पर पूरी टीम का नेतृत्व करने का जिम्मा भी हो। हर छोटी-बड़ी गतिविधि और चुनौतीपूर्ण निर्णय आप पर निर्भर हों, लेकिन इन्हीं चुनौतियों और खतरों से जूझते हुए एनी सिन्हा रॉय ने मुंबई की मीठी नदी के नीचे मुंबई मेट्रो के लिए 190 मीटर लंबी सुरंग तैयार कर डाली है। किसी नदी के नीचे से गुजरनेवाली यह देश की दूसरी मेट्रो सुरंग है। पहली वषों पहले कोलकाता में गंगा नदी के किनारे बनाई गई थी।

नदी के नीचे लक्ष्य साधना आसान नहीं

तीन तरफ समुद्र से घिरे मुंबई महानगर में एक नदी के नीचे यह लक्ष्य साधना आसान नहीं था। लेकिन मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन की प्रोजेक्ट रेजीडेंट इंजीनियर एनी सिन्हा रॉय तो आसान लक्ष्यों की आदी भी नहीं रही हैं। नागपुर विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर महज 23 वर्ष की आयु में जब वह अपनी पहली नौकरी करने 2007 में दिल्ली पहुंचीं तो उन दिनों बुद्धा गार्डन क्षेत्र में बन रही भूमिगत मेट्रो लाइन की सुरंग में उनके पहले जर्मन बॉस मिस्टर हॉल ने उन्हें टनल बोरिंग मशीन पर काम करने भेज दिया। वहां मौजूद पुरुष स्टॉफ ने मिस्टर हॉल से कहा भी कि ‘सर यह तो लड़की है’, लेकिन मिस्टर हॉल ने किसी की परवाह किए बिना उन्हें समझा दिया कि वह सिर्फ इंजीनियर हैं।

उस दिन के बाद कभी नहीं पल्टी एनी

उस दिन के बाद से एनी ने कभी पलट कर नहीं देखा। देश और विदेश में हजारों मीटर लंबी भूमिगत मेट्रो सुरंगों का काम पूरा कर चुकी हैं, और आज उनकी पहचान देश की पहली और बड़े प्रोजेक्ट्स को डील करने वाली एकमात्र महिला टनल इंजीनियर के रूप में स्थापित हो चुकी है। मुंबई मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में भी एनी के कौशल को सराहना मिली है।

आसान नहीं था सफर

सफर आसान नहीं था। जैसे दिल्ली के पहले काम के दौरान कुछ पुरुष सहकर्मियों ने सहानुभूति वश उन्हें फील्डवर्क से अलग रखने की सिफारिश मिस्टर हॉल से की, उसी तरह आगे भी कहीं सहानुभूति वश तो कहीं प्रतियोगिता से दूर रखने की नीयत से उन्हें फील्ड से दूर रखने की कोशिश की जाती रही। लेकिन ऐसे मौकों पर सहारा भी उन्हें अपने किसी न किसी पुरुष बॉस से ही मिलता रहा। ऐसा ही एक अवसर बेंगलुरु में काम करने के दौरान आया, जब उन्हें फील्ड के बजाय कार्यालयीन काम सौंपा गया। लेकिन उन्हें उनके बॉस मिस्टर आइच ने सुरंग में उतरने का मौका दिया, और एनी ने एक बार फिर अपनी काबिलियत सिद्ध करके दिखाई। ऐसा ही भरोसा उन पर चेन्नई मेट्रो प्रोजेक्ट में रॉन माइकल ने जताया और एनी उनके भरोसे पर खरी उतरीं।

भूमिगत सुरंगे तैयार करना चुनौती भरा काम

एनी ने ‘दैनिक जागरण’ से बातचीत में कहा, मेट्रो की भूमिगत सुरंगें तैयार करना एक चुनौती भरा काम होता है। जमीन से करीब 22-23 मीटर नीचे ये सुरंगें गुजरती हैं। मुंबई जैसी गगनचुंबी इमारतों वाले महानगर में तो यह काम और मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इमारतें जितनी ऊंची होती हैं, उसी अनुपात में उनकी बुनियाद तैयार की जाती है। ऐसी इमारतों को बचाते हुए मेट्रो का रूट तैयार करना और उसके नीचे टनल बोरिंग मशीन से इस प्रकार सुरंगें तैयार करते जाना कि ऊपर की दुनिया को आभास तक न हो, एक चुनौती भरा काम है। लेकिन सभी के मिलेजुले प्रयास से हम इसमें कामयाब हो रहे हैं।

 दुनिया मान रही लोहा

टनल इंजीनियरिंग में एनी का लोहा दुनिया मान रही है। इसके लिए उन्हें 2018 में ‘इंजीनियर ऑफ द इयर’ का सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। एनी की जिंदगी में चुनौतियां हर कदम पर पेश आईं। पारिवारिक जीवन में भी कम चुनौती नहीं रही है। कोलकाता के सामान्य परिवार की सदस्य एनी एम.टेक करके प्रोफेसर बनना चाहती थीं। लेकिन दुर्योग से बी.टेक की पढ़ाई पूरी करते ही सिर से पिता का साया उठ गया। पिता व्यापारी थे। उन्होंने अपने व्यापार और एनी की पढ़ाई के लिए कर्ज ले रखा था। एनी को इसका पता उनके निधन के बाद ही चला।

आर्थिक संकट से उभरने के किया काम 

तब उन्होंने घर को आर्थिक संकट से उबारने के लिए नौकरी करने का निश्चय कर लिया। चूंकि एनी का कोई भाई नहीं है, इसलिए पिता के निधन के बाद जब उन्हें मुखाग्नि देने का अवसर आया तो धर्मगुरु ने सिर्फ एनी को यह कर्तव्य निभाने को कहा। क्योंकि उनकी बड़ी बहन का विवाह हो चुका था, और उसका गोत्र बदल चुका था। लेकिन एनी ने उस अवसर पर भी रूढ़ियों को दरकिनार करते हुए अपनी बड़ी बहन के साथ ही पिता को मुखाग्नि दी।

एनी ने कहा, महिला अधिकारी के अधीन कार्य करने में संकोच करने वाली पुरुष मानसिकता भी अब बदल रही है। सहकर्मी अपनी महिला बॉस का आदेश सहजता से मानने लगे हैं और अधिकारी भी जिम्मेदारियां सौंपने में हिचक महसूस नहीं करते। यह बदलाव का स्पष्ट संकेत है। उन्होंने टनल प्रोजेक्ट में सहयोग के लिए मुंबई मेट्रो-3 के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर सुयश त्रिवेदी और चीफ रेजीडेंट इंजीनियर गिरीश कुलकर्णी की भी तारीफ की। कहा, समाज को इसी तरह का सहयोगात्मक दृष्टिकोण विकसित करना होगा, तभी आधी आबादी विश्व के विकास में भरपूर सहयोग कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को प्रेरित और प्रोत्साहित होगी।

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