अगर आपको हो रही हैं परेशानी तो कही आप तो नहीं भोग रहे दुसरे के कर्मो की सजा…

कहते हैं कि जो इंसान गलत काम करता है, उस व्यक्ति को उन कामों का बुरा फल भी भोगना पड़ता है। लेकिन कुछ हालातों में किए गए गलत काम, करने वाले व्यक्ति के साथ ही दूसरों को भी उसके फल प्राप्त होते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में एेसे हालातों के बारे में बताया है, जिसमें हमें दूसरों की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

श्लोक-
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।

शादी के बाद यदि कोई पत्नी गलत काम करती है, ससुराल में सभी का ध्यान नहीं रखती है, अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं करती है तो ऐसे कामों की सजा उसके पति को ही भुगतनी पड़ती है। ठीक इसी प्रकार यदि कोई पति गलत काम करता है तो उसका बुरा फल पत्नी को भी भोगना पड़ता है। अत: पति और पत्नी, दोनों को एक-दूसरे का अच्छा सलाहकार होना चाहिए। जीवन साथी को गलत काम करने से रोकना चाहिए।

जिस किसी शासन में मंत्री, पुरोहित या सलाहकार अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा नहीं करते हैं और राजा को सही-गलत कार्यों की जानकारी नहीं देते हैं, उचित सुझाव नहीं देते हैं तो राजा के गलत कार्यों के जवाबदार पुरोहित, सलाहकार और मंत्री ही होते हैं। पुरोहित का कर्तव्य है कि वह राजा को सही सलाह दें और गलत काम करने से रोकें।

यदि किसी राज्य या देश की जनता कोई गलत काम करती है तो उसका फल शासन को या उस देश के राजा को ही भोगना पड़ता है। अत: यह राजा या शासन की जिम्मेदारी होती है कि प्रजा या जनता कोई गलत काम न करें। जब राजा अपने राज्य का पालन सही ढंग से नहीं करता है, अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करता है, तब राज्य की जनता विरोधी हो जाती है और वह गलत कार्यों की ओर बढ़ जाती है। 

ऐसी परिस्थितियों में राजा ही जनता द्वारा किए गए गलत कार्यों का जवाबदार होता है। यही बात किसी संस्थान पर या किसी भी टीम पर भी लागू हो सकती है। टीम के सदस्य या संस्थान के कर्मचारी गलत काम करते हैं तो टीम के लीडर या संस्थान के मालिक को भी बुरा फल प्राप्त होता है।

इस नीति के अंत में चाणक्य ने बताया है कि जब कोई शिष्य गलत कार्यों में लिप्त हो जाता है तो उसका बुरा फल गुरु को ही भोगना पड़ता है। गुरु का कर्तव्य होता है कि वह शिष्य को गलत रास्ते पर जाने से रोकें, सही कार्य करने के लिए प्रेरित करें। यदि गुरु ऐसा नहीं करता है और शिष्य रास्ता भटक कर गलत कार्य करने लगता है तो उसका दोष गुरु को ही लगता है।

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