भी महापुरुषों में उत्साह ही शक्ति संचार करता है। वे जो भी कार्य हाथ में लेते हैं उसे अदम्य उत्साह से करते हैं। इससे उनके कार्य में विशेष गति आ जाती है। अपने आध्यात्मिक विकास और राष्ट्र की आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक उन्नति के लिए सभी लोगों को अपने अंदर सच्चे उत्साह को जागृत करने की कला खोजनी चाहिए। निराशावादी लोगों में कोई उत्साह नहीं होता। वे सदा ही जीवन को व्यर्थ, लोगों को अनुपयोगी, परिस्थितियों को प्रतिकूल और सभी प्रयासों को निरर्थक समझते हैं। वे जीवन भर रोते-कराहते और शिकायतें करते रहते हैं।
अपने आसपास के सभी लोगों पर वे रुष्ट रहते हैं। जो भी घटनाएं घट रही हैं, उनसे उन्हें कोई संतोष नहीं है, कोई भी योजना या प्रयास उनके लिए उपयोगी नहीं है, किसी कार्य को मन से नहीं करते, अपने कर्तव्य का उल्लंघन करते हैं और सदा ही दुख तथा हताशा की भावना से पराभूत रहते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में उत्साह कभी दिखाई नहीं देता।
इसके विपरीत अन्य लोगों के हृदय में आशा, करुणा और आनंदमय कर्म की तरंगें हिलोरें लेती हुई बहती हैं। आशावादी लोग प्राय: दो प्रकार के होते हैं। उनमें से कुछ बुद्धिमान होते हैं और कुछ दूसरे प्रकार के।
बुद्धिमान और आशावादी मनुष्य यही विश्वास रखते हैं कि जगत निरंतर सुंदर और उत्कृष्ट बन रहा है। वे स्वयं भी जगत को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं। उनका स्वभाव मधुर होता है। वे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा अपना संस्कार करते हैं। इस कारण वे जो जानना चाहते हैं, उन्हें प्राप्त होता है। प्रत्येक बार सफलता प्राप्त होने पर उसमें अधिक उत्साह उत्पन्न होता है।
इस प्रकार उत्साहित होकर आनंदित होता हुआ वह अन्य लोगों को भी आनंद देता है। इससे संसार निरंतर अधिकाधिक आनंद की ओर बढ़ता है। वह अपने उत्साह के कारण अपने ही जीवन का रहस्य नहीं जान लेता वरन् अपने आंतरिक प्रकाश और प्रेम से अपने आसपास के लोगों को भी आनंदित करता है।
बहुत से लोग आशावादी और उत्साही कार्य करने वाले होने पर भी शिथिल पड़ जाते हैं। वे हाथ में लिए काम को अधूरा छोड़ देते हैं तथा किसी अन्य कार्य में उत्साह और आनंद खोजने लगते हैं। यदि यही क्रम चलता रहा तो हम जीवन के अंत में देखेंगे कि हमारे सभी कार्य अधूरे छूटे पड़े हैं। कोई कार्य पूरा न होने पर जीवन निरर्थक सिद्ध होता है और हम हाथ मलते रह जाते हैं।
ऐसे लोगों का उत्साह स्थिर न रह सकने के कारण उनका अधैर्य है। महापुरुषों में कार्य करने का उत्साह और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने के गुण दोनों ही विद्यमान रहते हैं। निरंतर कार्य में लगे रहने की लगन और हाथ में लिए कार्य पूर्ण होने पर उसके फल की प्रतीक्षा शांति के साथ करने वाले मनुष्य के मन में विश्वास और आशा का दीप प्रकाशित रहता है। उसे भरोसा रहता है कि अच्छे कार्य का फल जीवन में अच्छा ही मिलता है। इसी मानसिक प्रवृत्ति के कारण उनके हृदय का उत्साह शिथिल नहीं पड़ता। समस्त कठिनाइयों, भयों, चिंताओं और विरोधों के बीच भी वे निराश नहीं होते। सभी महापुरुष धैर्य, स्वेच्छा, उत्साह और प्रसन्नता से अपना कार्य करते हैं। उनका स्वस्थ आशावाद ही उनकी कार्य योजना का गुप्त रहस्य है।
मरण काल तक अनुशासित रहना ही जीवन है। अपने विचारों और कर्मों पर कड़ी नजर रखना और सदा सावधान रहना ही वह सबसे बड़ा मूल्य है जो जीवन की महानतम उपलब्धियों और सूक्ष्म अनुभूतियों के लिए चुकाना पड़ता है। आत्मनिरीक्षण से हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है। हम अपने मन में उठने वाले दूषित विचारों, कलुषित भावों, कड़वे वचनों और अशुभ कर्मों से तभी बच सकते हैं जब हम उन पर सतर्क दृष्टि रखने की आदत डालें। सचेत और सावधान रहकर ही हम अपने को गलत मार्ग पर जाने से रोक सकते हैं।
एक बार त्रुटिरहित जीवन संगीत की मधुर ध्वनि उत्पन्न कर लेने पर अपने व्यक्तित्व में वह क्षमता आ जाती है, जिससे हम कोई महान कार्य सफलतापूर्वक कर सकते हैं।नियमित और समर्पण भाव से प्रार्थना और उसके बाद शांत स्थिर और गहन ध्यान का अभ्यास करने से अपने अंदर उत्साह, धैर्य और वह सूक्ष्म दृष्टि उत्पन्न होती है जिसके द्वारा हम अपने दूषित विचार, वचन और कर्म देखकर उनका निवारण कर सकते हैं।