लखनऊ: उत्तर प्रदेश सहित तीन राज्यों में फैले चंबल का ज़िक्र होता है तो डकैतों की तस्वीर ज़ेहन में उमड़ती है. चंबल के प्रति ये नकारात्मकता भी लाता है, लेकिन चंबल हमेशा डकैतों के लिए क्यों जाना जाए, इसी सवाल को लेकर चंबल संग्रहालय की नींव रखी गई है. देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के शताब्दी वर्ष के दौरान करीब 2700 किमी की चंबल संवाद यात्रा सायकिल से की थी. इसी शोध यात्रा के दौरान ज़ेहन में चंबल संग्रहालय का ख्वाब बुना गया था. फिर मार्च, 2018 में चंबल संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई.
ऐसी किताबें जिसके हर पन्ने पर सोना
औरैया इलाके के बीहड़ों के बीच स्थित चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ो दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकट, विदेशों के डाक टिकट, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ो प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हैं. संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोना है. यहां दुर्लभ और दुनिया के सबसे पुराने स्टांप, डाक टिकट भी होंगे. इसके साथ ही यहां ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं. इसके अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी किया जा चुका है. चंबल संग्राहलय को सहयोग और शोध के लिए विदेशों से भी लोग संपर्क कर रहे हैं. यह वाकई सुखद है कि जहां सिर्फ बदहाली और डकैतों के खौफनाक किस्से हैं, उस हिस्से में संग्राहलय बन चुका है.
चंबल संग्रहालय में सहेजी जा रही अमूल्य किताबें
संग्रहालय को बेतहर बनाने के लिए और भी शोध सामग्री तलाश की जा रही है. दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, हाथ से लिखा कोई पुर्जा, डाक टिकट, सिक्के, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें, पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदन ग्रंथ, पांडुलिपि आदि के गिफ्ट करने के लिए हर दिन हमख्याल लोगों के दर्जनों फोन आ रहें है. पहले चरण में सन्दर्भ सामग्री के संरक्षण के लिये डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि पर बीते तीन महीने से शिद्दत से काम चल रहा है. दुर्लभ वस्तुओं की सहेजने वाले किशन पोरवाल की पांच दशकों की कड़ी मेहनत और दस्तावेजी फिल्म निर्माता शाह आलम की दो दशकों की सामग्री से यह यात्रा शुरु हुई है.