कैराना और नूरपुर उपचुनाव में ‘सियासी गठबंधन’ को मिली जीत के बाद सत्ता के गलियारों में मायावती की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक इस चुप्पी की वजह 2019 के लोकसभा चुनाव हैं, जिसमें बीजेपी को हराने के लिए बनने वाले ‘महागठबंधन’ में सीटों का बंटवारा बड़ी वजह है। मायावती की यह चुप्पी ‘दबाव की रणनीति’ का हिस्सा हो सकती है।
उपचुनावों में दलित वोटर्स ने निभाई थी बड़ी भूमिका
हालही में हुए उपचुनावों में बहुजन समाज पार्टी(बीएसपी) के दलित वोटर्स ने बड़ी भूमिका निभाई थी, ऐसे में मायावती चाहती हैं कि यूपी लोकसभा की 80 सीटों में 40 सीटें उनकी पार्टी के लिए छोड़ी जाएं। सूत्रों के मुताबिक मायावती ने इस बात का जिक्र अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने किया है।
बीएसपी को पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं तो हम अकेले भी चुनाव लड़ सकते हैं: मायावती
आपको बता दें कि बीते हफ्ते मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए साफ कहा था कि अगर बीएसपी को पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं तो हम अकेले भी चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि सीटों के बंटवारे के मामले में समाजवादी पार्टी किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती। हालही में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मायावती के सीट बंटवारे के मामले पर कहा था कि ‘सम्मान देने में हम लोग आगे हैं और सम्मान कौन नहीं देगा यह आप जानते हैं।’
सीटों के बंटवारे पर समाजवादी पार्टी का गेमप्लान
सपा ने बीएसपी को उन सीटों पर उम्मीदवार देने की बात कही थी जहां 2014 के लोकसभा चुनावों में उनके(सपा) प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे। इस आधार पर सपा के पास 31 सीटें जाती दिख रही थीं वहीं बीएसपी को 34 सीटें मिल रही थीं। ऐसे में मायावती अगर ज्यादा सीटों की मांग करती हैं तो महागठबंधन के लिए समस्या बनेगी।
बीएसपी का कहना है कि महागठबंधन में चाहे जितने भी दल शामिल हों लेकिन उसका(बीएसपी) वोट हर पार्टी को ट्रांसफर किया जा सकता है, इसलिए सूत्रों का कहना है कि बीएसपी कुल सीटों में करीब आधी सीटों की मांग कर सकती है।