ककड़ी उच्च कोटि का बहुमूत्रल आहार है। इसमें श्रेष्ठ किस्म का Phosphorus, पोटाशियम, क्लोरीन और गंधक प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसी कारण यह गुर्दे, फेंफड़े, पित्ताशय, क्लोरीन तथा गंधक प्रचुर मात्रा में मिलता है।
इसी कारण यह गुर्दे, यकृत, फेफड़े, पित्ताशय, रक्त तथा त्वचा के स्वास्थ्य को फलदायी है। यह आंतों की सफाई करता है। यह शरीर के समस्त विषाक्त कचरे को पसीना, पेशाब, पाखाना द्वारा बाहर निकाल फेंकता है। यह पोटाशियम तथा phosphorus की दृष्टि से अति श्रेष्ठ आहार है।
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ककड़ी को सलाद, रस, सूप तथा सब्जी के रूप में काम में लिया जाता है। इसके रस का उपयोग गुर्दे के सभी प्रकार के रोग, गुर्दे की पथरी, नेफ्राइटिस, त्वचा के सभी प्रकार के रोग, गर्भावस्था की विषाक्तता, जलोदर, मूत्रनली प्रदाह, यूरिन आंत्रशोथ, अम्लपित्त, दमा, मधुमेह, वमन, दस्त, मोटापा को दूर करने में किया है।
उपर्युक्त रोगों में ककड़ी का रसाहार प्रत्येक 3-3 घंटे के अंतराल पर देने से एक महीने के भीतर पूर्ण लाभ मिलने लगता है। ककड़ी आंत सम्बंधी सभी प्रकार के रोगों में अत्यन्त उपयोगी है। इसके अतिरिक्त पेशाब कम आने, अरूचि, पेशाब की जलन तथा रूकावट, खांसी, थकान, शरीर प्रदाह तथा प्रदर की स्थिति में इसका रस दिन में 4 बार ढ़ाई-ढ़ाई घंटे के अन्तराल पर देने से अतिशीघ्र लाभ होता है। इसके रस में नींबू का रस भी मिला सकते हैं। उपर्युक्त रोगों में इसकी सब्जी तथा सलाद भी पर्याप्त मात्रा में खायें।
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