18 साल बाद 15 अगस्त व जन्माष्टमी का संयोग अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में...

18 साल बाद 15 अगस्त व जन्माष्टमी का संयोग अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में…

बहुत वर्षों बाद ऐसा हो रहा है कि इस बार अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र एक साथ नहीं मिलने से जन्मोत्सव की धूम तीन दिनों तक रहेगी। गृहस्थजन (स्मार्त) भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 14 अगस्त को मनाएंगे।18 साल बाद 15 अगस्त व जन्माष्टमी का संयोग अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में...

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार अष्टमी तिथि 14 अगस्त को शाम 5.40 बजे लग रही है जो 15 अगस्त को दिन में 3.26 बजे तक रहेगी। जन्माष्टमी व्रत का पारन 15 अगस्त को होगा।

मथुरा-वृंदावन में गोकुलाष्टमी (उदय काल में अष्टमी) 15 अगस्त को मनाई जाएगी। उदयव्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन श्रीकृष्ण जन्म व्रत 16 अगस्त को करेंगे।

रोहिणी नक्षत्र 15-16 अगस्त की रात 1.27 बजे लग रहा है जो 16 को रात 11.50 बजे तक रहेगा।

सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व के रूप में मान्यता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

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भगवान के दशावतारों में सर्वप्रमुख पूर्णावतार सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण को माना जाता है जो द्वापर के अंत में हुआ।

प्रभु का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार की अर्द्धरात्रि रोहिणी नक्षत्र व वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था।

पूजन विधान आचार्य द्विवेदी के अनुसार यह सर्वमान्य व पापघ्न व्रत बाल, कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर-नारियों को करना चाहिए। इससे पापों की निवृत्ति व सुखादिकी वृद्धि होती है।

व्रतियों को उपवास की पूर्व रात्रि में अल्पाहारी व जितेंद्रिय रहना चाहिए। तिथि विशेष पर प्रातः स्नानादि कर सूर्य, सोम (चंद्रमा), पवन, दिग्पति (चार दिशाएं), भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मा आदि को नमन कर उत्तर मुख बैठना चाहिए।

हाथ में जल-अक्षत-कुश लेकर मास-तिथि-पक्ष का उच्चारण कर ‘मेरे सभी तरह के पापों का शमन व सभी अभिष्टों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करेंगे’ का संकल्प लेना चाहिए।

उत्सव-अनुष्ठान दोपहर में काले तिल के जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत कर उसे स्वच्छ व सुशोभित करते हुए सूतिकापयोगी सामग्री यथाक्रम रखना चाहिए।

सुंदर बिछौने पर अक्षतादि मंडल बनाकर कलश स्थापना और सद्यः प्रसूत श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। रात में प्रभुजन्म के बाद जागरण व भजन का विधान है।

इस व्रत-उत्सव को करने से पुत्र की इच्छा रखने वाली महिला को पुत्र, धन की कामना वालों को धन, यहां तक कि कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में श्रीकृष्ण के धाम वैकुंठ की प्राप्ति होती है।

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