1000 साल तक जिंदा रहने वाला शख्स धरती पर पैदा हो चुका है। इस वक्त उसकी उम्र करीब 15 साल है। हाल ही में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के अनुवांशिकी वैज्ञानिक आब्रे डिग्रे के इस दावे से विज्ञान की दुनिया में हलचल मच गई थी। बीते करीब एक दशक से हजार साल की उम्र पर बहसें होती रही हैं। जानते हैं इसके दावे और विरोध की हकीकत …
पैदा हो चुका है 1000 तक जिंदा रहने वाला शख्स
वैज्ञानिक आब्रे डग्रे का मानना है कि इंसान की औसत उम्र बीते सौ साल में करीब 25 से 35 साल बढ़ी है और आने वाले सालों में मानक परिस्थितियों में इंसान 135 साल तक आराम से जिंदा रह सकता है।
वे इसके आगे जाकर मल्टी ऑर्गन चेंजेज और मेडिकल वल्र्ड को कंप्यूटर तकनीक से लैस करने की बात कहते हैं और दावा करते हैं कि इसकी मदद से 1000 साल तक जिंदा रहा जा सकता है।
यह दावा करीब-करीब इंसान की अमरता की ओर इशारा करता है। अमरता संबंधी अब तक के रिसर्च में सबसे चौंकाने वाले परिणाम बड़े विश्वविद्यालयों के अनुवांशिकी प्रयोगशालाओं द्वारा निकले हैं लेकिन आब्रे का मानना है कि अनुवांशिकी पर अनुसंधान का मतलब सिर्फ अमरता के तरीके खोजना नहीं है। इस मामले में जीव विज्ञानी समाज दो भागों में बंटा है। विरोधी इसे मानवता और नैतिकता के खिलाफ मान रहे हैं।
इंसानी शरीर की उम्र
आंख
इंसानी आंख सामान्यत: 50 से 60 साल तक अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती है। इसका विकल्प अब तक नहीं बना है।
दिल
दिल को बदलने की तकनीक पर विज्ञानी समाज एकमत है। इसे अगले 50 सालों में हासिल किया जा सकता है।
दिमाग
प्रो आब्रे के मुताबिक, इंसान की 1000 साल की उम्र में दिमाग सबसे बड़ा बाधक है। वे दिमाग की कंप्यूटर प्रतिकृतियां बनाकर उसे लगातार रिप्लेस करने की बात कहते हैं। यानी कॉपी-पेस्ट जैसा।
किडनी
किडनी की सामान्य उम्र 80 साल है। बेहतर जीवनशैली से इसे बढ़ाया जा सकता है और इसकी कंप्यूटरीकृत इमेज भी बनाना संभव हो सकेगा।
त्वचा
त्वचा की झुर्रियां यानी इसके मृत सैल को बदलना बड़ी बात नहीं है। आब्रे के अनुसार त्वचा विज्ञान तेजी से तरक्की कर रहा है, उसके मुताबिक अगले 30-40 साल में झुर्रियां बीते जमाने की बात होंगी।
फेफड़े
फेफड़ों को पूरी तरह रिप्लेस करने के बारे में कई रिसर्च चल रही हैं। इनके सकारात्मक नतीजे अगले 20 से 30 साल में मिलेंगे।
लिवर
लिवर के काम करने और खुद को ठीक करने की क्षमता आश्चर्यजनक है। इसे 1000 साल तक काम करने लायक बनाया जा सकता है।
जोड़
घुटने और शरीर के अन्य जोड़ मनुष्य के शरीर की सबसे कमजोर कडिय़ां हैं। इनके रिप्लेसमेंट पर मेडिकल साइंस ने काफी तरक्की की है। आने वाले समय में यह कोई समस्या नहीं रह जाएंगे।
सैद्धांतिक रूप से संभव
डी ग्रे के रिसर्च के समर्थक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में विकासवादी जीव विज्ञान के प्रोफेसर माइकल रोज कहते हैं, इस पर सैद्धांतिक रूप से सोचा जा सकता है। यह संभव है।
भयावह होंगे अमरता के परिणाम
येल स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रो. शेर्विन नुलैंड और पूर्व अमेरिकी बुस की कौंसिल में जैव नैतिकता प्रमुख लियोन कॉस आब्रे के धुर विरोधी हैं। नुलैंड इसे संभव नहीं मानतीं, लेकिन इसके भयानक परिणामों की चेतावनी भी देती हैं।
सिर्फ सोचने भर से चल सकेंगे कृत्रिम हाथ-पैर
मेलबर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बनाया स्टेंटरॉड। इस रिसर्च के लिए मानवों पर 2017 में शुरू होगा परीक्षण।
विज्ञान और तकनीक के अनूठे संयोग ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है, जिससे अब कृत्रिम अंग व्यक्ति के सोचने की क्षमता से चल सकेंगे। इस तकनीक की मदद से किसी दुर्घटना के शिकार और प्रॉस्थेटिक लिंब (कृत्रिम अंग) के सहारे रहने वाले लोग भी सामान्य इंसानों की तरह जिंदगी जी सकेंगे।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस रिसर्च को लेकर कहा है कि यूं तो यह सुनने में भविष्य की बात लगती है लेकिन अब यह संभव होगा और इस रिसर्च का फायदा घायल सैनिकों और ऐसे हजारों लोगों को मिल सकेगा। इस खोज के माध्यम से दिव्यांग लोग कृत्रिम अंगों का और बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे।
ऐसे काम करती है डिवाइस
स्टेंटरॉड को दिमाग के उस प्रमुख हिस्से के नजदीक रक्तधमनी में लगाया जाएगा, जो शरीर से मूवमेंट करवाता है। इस जालीनुमा उपकरण में इलेक्ट्रोड लगे हुए हैं और प्रत्येक इलेक्ट्रोड लगभग 10,000 न्यूरॉन्स की एक्टिविटी को रजिस्टर करेगा। दिमाग में लगाया गई यह डिवाइस एक वायर के माध्यम से सिग्नल मरीज के चेस्ट तक पहुंचाएगा।
दिमाग के सिग्नल पकडऩा मुश्किल
ब्रेन सिग्नल कैसे दिखते हैं यह वैज्ञानिकों के लिए पहेली है। उन सिग्नलों को रिकॉर्ड करना एक मुश्किल काम था। कुछ और रिसर्चरों ने मस्तिष्क का ऊपरी भाग निकालकर इलेक्ट्रोड डाल मस्तिष्क के उस हिस्से के सिग्रल रिकॉर्ड किए, जो हमारे शरीर के मूवमेंट को चलाता है।
डॉ. थॉमस ऑक्जले, मेलबर्न यूनिवर्सिटी
इलेक्ट्रॉड डायरेक्ट ब्रेन में लगाने से कई तरह के इंफेक्शन, फायब्रॉसिस होने आदि का खतरा रहता है। जबकि ब्लड वैसल में लगाने से यह ज्यादा प्रॉटेक्टेड रहेगा और ब्रेन को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
प्रो. टेरेंस ऑब्राइन, न्यूरोलॉजिस्ट