स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली बताते हैं कि महात्मा गांधी से मिलने का मेरा सपना कभी पूरा तो नहीं हो पाया, मगर उन्हें करीब से देखने और सुनने में जरूर सफल रहा। मुझे पहली बार महात्मा गांधी को करीब से देखने का अवसर वर्ष 1942 में मिला। तब मैं करीब 19 साल का था और काशी विद्यापीठ से एमए की पढ़ाई कर रहा था। गांधी जी दिल्ली में बिड़ला हाउस में हर शाम प्रार्थना सभा आयोजित करते थे।
मैं अपने साथियों के साथ उनकी प्रार्थना सभा में पहुंचता था। वह समसामयिक मुद्दों पर भी चर्चा करते थे। उस दिन भी उन्होंने कई मुद्दों पर बात की और राष्ट्रीय एकता को लेकर भी सीख दी। उन्हें करीब देखकर मुझे उनमें भगवान का रूप नजर आ रहा था। तब मेरे मन में इस बात का ख्याल न था कि उनसे मुलाकात भी करनी चाहिए। क्योंकि उन्हें देखनेभर से ही मैं अभिभूत हो उठा था।
तब गांधी जी से मिलना उतना आसान भी नहीं था और वह हर समय किसी न किसी गतिविधि में व्यस्त रहते थे। इसके बाद भी मैं कई दफा उनकी प्रार्थना सभा में पहुंचा। उनकी एक-एक बात मुझे आज भी याद है और खासकर उनके प्रयोग और राष्ट्रीयता भी भावना मुझे प्रभावित करती थी।
मुझे महात्मा गांधी की मृत्यु का समाचार अपने साथियों से मिला। लेकिन, जिस तरह उन्हें गोली मारी गई, उसका यकीन नहीं हुआ। कई लोगों से इस बारे में पूछने पर जब एक ही जवाब मिला तो दिल को गहरा आघात लगा। समझ नहीं आ रहे था कि अहिंसा के ऐसे पुजारी के साथ ऐसा क्यों किया गया। मैं कई दिनों तक सो नहीं पाया और सिर्फ गांधी को याद करता रहा।
उनकी सच्चाई के पथ पर चलने की सीख के कारण ही मैं सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो पाया था। आज उनसे जुड़ी बहुत सी बातें याद भी नहीं हैं, मगर उनके जैसा जीवट और स्पष्ट व्यक्ति धरती में दूसरा नहीं देखा।