कलयुग अथवा किसी घोर कलयुग का हमें नही पता। आपको मालूम हो, तो हमें नही मालूम। पंडितों ने अभी तक इस बारे में कोई घोषणा तो नहीं की, लेकिन यकीनन हम सब जानते हैं और शायद मानते भी हैं कि अब हम एक नए सेल्फी युग में जी रहे हैं। जहां देखो, जिधर देखो, लोग सेल्फी लेते मिलेंगे, दिखेंगे। नेताओं के साथ, सेलिब्रिटीज के साथ, दोस्तों के साथ, बॉयफ्रेंड के साथ, गर्लफ्रेंड के साथ सेल्फी लेते हुए, लीन नजर आएंगे।
सेल्फी का अलौकिक सुख भोगते हैं। मानो सचमुच अच्छे दिन आ गए हों। साफ तौर पर सेल्फी युग की छाप सर्वत्र दिखाई देती है। सुना है कुछ सेल्फी एडिक्टेड जांबाजों ने तो नईं मिसालें तक कायम कर ली हैं सेल्फी लेने में। कई नए कीर्तिमान खड़े कर दिए हैं।
यहां तक देखा गया है कि सेल्फी रशियाओं ने अपने किसी परिचित के जनाजे में शामिल होने पर भी अपने इस शौक को पूरा करने से नहीं हिचकिचाए, नहीं चूके। अपने शौक को बड़े शौक से खुल्लमखुल्ला पूरा किया। और लगता है अनंत काल तक करते रहेंगे। सेल्फी की सनातन परंपरा को कायम रखते हुए।
एक सेल्फी तो बनती है
हम जानते हैं ऑटोग्राफ लेने की महान परंपरा की अकाल मौत का कारण भी ये सेल्फी परंपरा है। अगर कोई मर गया और उसका शरीर पंचतत्व में विलीन होने जा रहा है, तो इसमें नया क्या है? कतारबद्ध लोग चल रहे हैं अर्थी के साथ। बहुत सुंदर रोमांचक मंजर है। एक सेल्फी तो बनती है, शायद ऐसा सोचते होंगे सेल्फीबाज।
नशा ही कुछ ऐसा है इस सेल्फी नाम की बला का। सेल्फी तो फिर सेल्फी है। सेल्फीबाजों का आत्म-नियंत्रण जवाब देने लगता है। फिर ऐसे में सेल्फी नहीं लिया तो क्या किया। जीना ही बेकार है। सेल्फी इस दौर का परम सत्य है। सत्य जो हमें मॉडर्न दिखने में बहुत मददगार सा लगता है।
इस सत्य से दूर रह के हम पाषाण युग के प्राणी कहलाएंगे, क्योंकि सेल्फी इस दौर का परम सत्य है, सत्य को नकारा नही जा सकता। जब हाथ में स्मार्टफोन हो, तो सेल्फी का नशा सिर चढ़कर बोलता है। लत जो लग गई है। सेल्फी इस युग का धर्म है, और इस धर्म का पालन नहीं किया तो बैक्वर्ड ही तो लगेंगे। पिछड़ा दिखना अच्छी बात तो नहीं है। किसी को अच्छा नहीं लगता।
सेल्फी है, तो जीवन है, जीने का मकसद है
सेल्फी है, तो जीवन है, जीने का मकसद है। और फिर डिजिटल इंडिया के स्वप्नद्रष्टा का भी तो कोई मान सम्मान है कि नहीं? आखिर उन्होंने डिजिटल इंडिया का सपना देखा और जो मौलिक नारा देकर देश को चकित किया, वो नारा एक खोखला नारा तो नहीं है। बड़ी गहराई, तरलता है इसमें।
सेल्फी रोग से ग्रसित हर कोई जानता है कि इस नारे में बहुत जान है। असल में युवा पीढ़ी की आत्मा तो इसी नारे में रचती-बसती है। वे इसे जीते हैं, हर पल खाते-सोते वक्त। उन्होंने इसे एक तरह से आत्मसात कर लिया है। ये एक नया शरूर है। ऐसा नायाब शरूर जिसे पिए बिना ही लोग झूम उठते हैं। पूरा देश, पूरी नई पीढ़ी झूम ही तो रही है खुद को भुलाकर।