केरल में भगवान अयप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. इस मंदिर में हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं की भींड़ जुटती है, जिसमें केवल पुरुष ही होते हैं.क्योंकि मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है.
इस बात को यहां पर ज्यादा तूल नहीं दिया जाता. इस मंदिर में वे छोटी बच्चियां आ सकती हैं जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें, जो मासिकधर्म से मुक्त हो चुकी हों.इस मंदिर के पट साल में केवल दो बार ही खोले जाते हैं. मंदिर के पट 15 नवंबर और 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति के दिन ही खुलते हैं.यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को माकरा विलाकू जो कि एक तेज रोशनी होती है, उसके दर्शन आसमान में होते हैं. माना जाता है कि यह भगवान अयप्पा के होने का एहसास होता है.
अय्यप्पा का एक नाम ‘हरिहरपुत्र’ हैं. हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र, बस भगवान इन्ही के अवतार माने जाते हैं. हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है. सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है. सबरी वही है जिनके जूठे बेर राम ने खाये थे.
यह मंदिर 18 पहाड़ियों के बीच में स्थित एक धाम में है, जिसे सबरीमला श्रीधर्मषष्ठ मंदिर कहा जाता है. यह भी माना जाता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमला में मूर्ति स्थापित की थी. अगर कोई भक्त तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रख कर पहुंचता है तो उसकी सारी मनोकामना पूरी होती हैं.
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