मुंबई पुलिस ने बीते दशकों में कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया है. अंडरवर्लड हो या आतंकवाद पुलिस ने पूरी ताकत से उनका मुकाबला किया लेकिन पुलिस के लिये अब तक की सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है कोरोना वायरस.
कोरोना से चल रही इस जंग में आये दिन पुलिसकर्मी शहीद हो रहे हैं और ऐसा लग रहा है पुलिस बनाम कोरोना की इस जंग में कोरोना का पलड़ा भारी हो रहा है.
मुंबई में रहने वाले उस दौर को भूले नहीं हैं जब शहर की सड़कों पर गैंगस्टरों का राज होता था. दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरूण गवली, अबू सलेम जैसे डॉन के गैंगस्टर आये दिन शहर में खून खराबा करते थे.
ये गैंगस्टर्स एक दूसरे के खून के प्यासे तो थे ही इन्होने कई मिल मालिकों, फिल्मकारों, बिल्डरों और कारोबारियों की भी जबरन उगाही के लिये हत्याएं कीं. मुंबई पुलिस के लिये अंडरवर्लड एक बडी चुनौती बनकर उभरा.
मुंबई पुलिस ने एक सख्त मुहीम शुरू की. कई गैंगस्टर्स को एनकाउंटर्स में मार गिराया और कईयों की धरपकड़ की. जल्द ही अंडरवर्लड की कमर टूट गई.
अंडरवर्लड के बाद मुंबई पुलिस के लिये नया चैलेंज था आतंकवाद. शहर में कई आंतकी हमले हुए जिनमें सबसे बड़ा था 26 नवंबर 2008 का आतंकी हमला.
उस हमले का भी मुंबई पुलिस ने बहादुरी से सामना किया. कई पुलिसकर्मी शहीद हुए लेकिन शहर को दहलाने वाले 10 आतंकियों में से एक अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने में मुंबई पुलिस कामयाब रही.
मुंबई का ताज होटल उस आतंकी हमले का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. उस होटल में मौजूद 4 आतंकियों का खात्मा तो एनएसजी कमांडो ने किया लेकिन उन्हें सबसे पहले चुनौती देने वाले मुंबई पुलिस के जवान थे.
तो मुंबई पुलिस ने आतंकवाद से टक्कर ली, अंडरवर्लड का निपटाया लेकिन अब उसका सामना एक अदृश्य दुश्मन से है. मुंबई पुलिस की जंग कोरोना वायरस से है.
मुंबई की सड़कों पर इन दिनों केंद्रीय सुरक्षा बल गश्त लगाते नजर आ रहे हैं. इसी हफ्ते केंद्रीय बलों की पहली खेप मुंबई पहुंची. शहर के भीड़भरे इलाकों में इन्हें तैनात किया गया है.
मुबई में पहुंचने के अगले ही दिन इन्होंने शहर के कई इलाकों में फ्लैग मार्च करके अपनी मौजूदगी जता दी. मुंबई महाराष्ट्र के रेड जोन वाले इलाके में आता है और यहां लॉकडाउन अब भी जारी है. अब इस लॉकडाउन पर अमल करवाने की जिम्मेदारी इन केंद्रीय सुरक्षा बलों पर आई है.
सवाल ये है कि आखिर मुंबई में केंद्रीय सुरक्षा बलों को बुलाने की जरूरत क्यों आन पड़ी. महाराष्ट्र सरकार को केंद्र सरकार से मदद क्यों मांगनी पड़ी.
ये केंद्रीय बल किस तरह से कोरोना के खिलाफ जंग में महाराष्ट्र सरकार की मदद करेंगे. इन सवालों का जवाब छुपा है उन आंकड़ों में जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कोरोना ने महाराष्ट्र पुलिस को किस तरह से अपनी गिरफ्त में ले ऱखा है.
25 मार्च को जब राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का पहली बार ऐलान हुआ था उससे चंद दिनों पहले ही महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार ने राज्य में संचारबंदी क ऐलान कर दिया था और तमाम बंदिशें लगा दी गईं थीं.
2 महीने से ऊपर का वक्त हो गया है जबसे महाराष्ट्र पुलिस के ये कर्मचारी सड़कों पर और भीड़भरे इलाकों में घूमकर लॉकडाउन पर अमल करवा रहे हैं.
इस दौरान उन्हें कई बार हिंसक भीड़ के हमले का भी सामना करना पड़ा है. धारावी और वर्ली जैसे कोरोना के हॉटस्पॉट में इन्हे अपनी ड्यूटी निभानी पड़ी है और इसे दौरान कई पुलिस कर्मियों को कोरोना ने अपनी गिरफ्त में ले लिया.
अब तक महाराष्ट्र में 19 पुलिसकर्मी को ये वायरस मार चुका है. इनमें से 15 पुलिसकर्मी अकेले मुंबई से हैं. पूरे राज्य मे करीब 1400 पुलिसकर्मी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं.
इस वायरस ने कई युवा पुलिसकर्मियों को भी अपनी गिरफ्त में लिया है. 14 मई को मुंबई के शिवाजीनगर थाने में तैनात कांस्टेबल भगवान पारते की कोरोना से मौत हो गई.
दो दिनों बाद ही मुंबई के शाहूनगर थाने में तैनात असिसटेंट सब इंस्पेक्टर अमोल कुलकर्णी का भी कोरोना की वजह से निधन हो गया.
उनके करीबी बताते हैं कि शुरूआत में कोरोना के लक्षण दिखने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया. दूसरी ओर उनके कोरोना की रिपोर्ट आने में भी 4 दिनों का वक्त लग गया.
महाराष्ट्र सरकार ने गौर किया कि बीते ढाई महीने से राज्य की पुलिस काफी दबाव में है. ऐसे में सैकड़ों पुलिसकर्मियों के कोरोनाग्रस्त हो जाने से हालात बदतर हो गये हैं.
इसलिये केंद्र से फोर्स की मांग की गई ताकि राज्य की पुलिस को थोड़ी राहत मिल सके. फिलहाल मुंबई में केंद्रीय बलों की 5 यूनिट आईं हैं जिनमें 3 यूनिट सीआरपीएफ की और 2 यूनिट सीआईएसएफ की हैं.
कोरोना वायरस से न केवल पुलिसकर्मी प्रभावित हो रहे हैं बल्कि इसने उन लोगों की कमर भी तोड़ दी है जो कि गुमनाम रहकर पुलिस के लिये काम करते हैं.
ये लोग हैं खबरी जिन्हें मुखबिर या जीरो नंबर भी कहा जाता है. वे गुमनाम रहकर अपराध से जंग लड़ते हैं. वे अपनी जान जोखिम में डालते हैं. वे पुलिस के ऐसे मोहरे हैं जो पर्दे के पीछे रहकर अपना काम करते हैं. ये लोग हैं खबरी.
अपराधियों की धरपकड़ के लिये पुलिस खबरियों की मदद लेती है. बदले में पुलिस की ओर से इन्हें बतौर मेहनाताना पैसा मिलता है.
इसके लिये हर पुलिस फोर्स में बाकायदा सीक्रेट फंड होता है जो कि खबरियों के बीच बांटा जाता है. कई खबरियों की आजीविका पुलिस से मिले इसी पैसे के आधार पर चलती है.
लेकिन लॉकडाउन के बाद से खबरियों की जमात परेशानी में है. पुलिसकर्मी लॉकडाउन पर अमल करवाने में जुटे हुए हैं. ऐसे अपराध भी नहीं हो रहे जिनकी गुत्थी सुलझाने के लिये पुलिस को इन मुखबिरों की जरूरत पड़े.
अब कुछ खबरियों ने महाराष्ट्र के डीजीपी को खत लिखकर अपनी व्यथा सुनाई है और मांग की है कि पुलिस के सीक्रेट फंड से उनकी मदद की जाये.