राजधानी लखनऊ एक बार फिर वैश्विक स्तर पर चर्चा में है। विजुअल एयर द्वारा मंगलवार को जारी की गई वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट -2019 में विश्व के टॉप 30 शहरों की सूची में लखनऊ 11 वें स्थान पर है। राहत की बात यह है कि वर्ष 2018 में जारी की गई रिपोर्ट से इस वर्ष स्थिति में मामूली सुधार अवश्य हुआ है। वर्ष 2018 में लखनऊ नौवें स्थान पर रहा था।
रिपोर्ट में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 कोआधार बनाया गया है। दरअसल वायुमंडल में मौजूद यह वह नन्हे प्रदूषक हैं जो आसानी के साथ सांस द्वारा फेफड़ों में पैबस्त होकर रक्त प्रवाह के जरिए शरीर में पहुंच जाते हैं। सिर के बाल के आकार से काफी छोटे ये प्रदूषक सांस की गंभीर बीमारियों के साथ-साथ लंग कैंसर जैसे घातक रोगों का कारण बन रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 119.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो वर्ष 2018 में मामूली सुधार के साथ 115.7 घन मीटर रिकार्ड किया गया था। वहीं बीते वर्ष औसत 90.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। ग्रीन पीस के अविनाश चंचल की मानें तो यह उन कोशिशों का नतीजा है जो प्रदूषण के लगाम कसने के लिए किए गए। हालांकि वह मानते हैं कि यह काफी नहीं हैं। प्रयास अभी और प्रभावी व सतत रूप से जारी रखे जाने की जरूरत है।
अमीनाबाद में प्रदूषण सबसे अधिक
शहर में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों से होने वाला प्रदूषण है। जगह-जगह लगने वाले जाम ने स्थितियां और नाजुक बना दी हैं। अमीनाबाद में पीएम 2.5 मानक 60 के मुकाबले पांच गुना अधिक 390.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मी. के स्तर में दर्ज किया गया है। यह सर्वाधिक है। कमोवेश यही स्थिति चौक, आलमबाग, चारबाग की है। आवासीय इलाकों में अलीगंज सर्वाधिक प्रदूषित है जहां भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान द्वारा बीते नवंबर में मानक से चार गुना से अधिक 286.5 रिकार्ड किया गया था। गोमती नगर, विकास नगर व इंदिरा नगर में भी हालात लगभग ऐसे ही हैं।
अक्टूबर-नवंबर में बिगड़ जाते हैं हालात
अक्टूबर-नवंबर के महींने जब प्रदूषण की स्थिति काफी खराब हो जाती है तो पीएम 2.5 का स्तर भयावह स्थिति में पहुंच जाता है। वहीं पराली जलाने जैसी घटनाएं से स्मॉग की सिथति पैदा हो जाती है। तमाम दावों के स्थितियां साल-दर-साल खराब ही हो रही हैं।
क्या होता है पीएम 2.5
- पर्टिकुलेट मैटर 2.5 ऐसे नन्हें प्रदूषक जो हवा में मौजूद रहते हैं और सांस के जरिए रक्त प्रवाह में पहुंच जाते हैं।
- 29 फीसद रोगों व मौतों का कारण लंग कैंसर
- 17 फीसद मृत्यु व रोगों का कारण एक्यूट लोअर रेसपेरेट्री इंफेक्शन
रोकथाम के लिए सुझाव
- ऐसे वाहन जिनके पास जांच लाइसेंस उपलब्ध न हो सीज किया जाए
- चौराहों को अतिक्रमण मुक्त करें जिससे जाम न लगे
- कंस्ट्रक्शन साइट एवं मिक्सिंग प्लांट पर प्रयुक्त सामग्री को ग्रीन नेट से ढक कर रखा जाए तथा पानी का छिड़काव निरंतर किया जाए
- ढाबों, रेस्टोरेंट में कोयले या लकड़ी का प्रयोग न हो, सभी को गैस उपलब्ध कराई जाए।
- खुले में कूड़ा न जलाया जाए।
- सड़कों पर यांत्रिक सफाई को बढ़ाया जाए एवं पानी का निरंतर छिड़काव कराया जाए।