अब तक ‘गिरगिट जैसा रंग बदलने वाले’ कहावत का इस्तेमाल नकारात्मक नजरिए से किया जाता था लेकिन ब्रिटेन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक आविष्कार ने इसका नजरिया बदल डाला है। दरअसल, यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने गिरगिट की इस क्षमता को मनुष्यों के लिए विकसित किया है। इस तकनीक को और उन्नत बनाकर हमारे सैनिक दुश्मनों को धोखा देकर उनके आघात से बच सकते हैं।
गिरगिट जैसी आर्टिफिशियल स्किन
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी ही कृत्रिम त्वचा विकसित की है, जो प्रकाश के संपर्क में आने पर गिरगिट की तरह अपना रंग बदल सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में इस तकनीक को और उन्नत बनाकर सैनिकों को दुश्मनों के आघात से बचाया जा सकता है, क्योंकि यह सामग्री छद्म आवरण बनाकर दुश्मनों को भ्रमित कर सकती है।
कैसे बनी स्किन
इस सामग्री को बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने सोने के महीन कणों को पॉलीमर सेल से कोट किया। इसके बाद पानी की बूंदों के संपर्क में लाकर इसे एक पतली ऑयल शीट में पैक कर दिया गया। जब वातावरण में गर्मी बढ़ती है और इसे प्रकाश के संपर्क में लाया जाता है तो सोने के महीन कण फैलकर आपस में मिलते हैं और पानी को बाहर निकाल देते हैं। इस दौरान इसका रंग लाल हो जाता है। वातावरण ठंडा होने पर ये कण फिर सिकुड़ने लगते हैं और पॉलीमर सेल पानी को वापस खींच लेती है, जिससे इसका रंग गहरा नीला हो जाता है। यह अध्ययन एडवांस ऑप्टिकल मैटेरियल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
रंग बदलने में मदद करता है क्रोमेटोफोरस
शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रकृति में दो जीव, गिरगिट और कटल्फिश (समुद्रीफेनी) में ऐसी क्षमता होती है कि ये आसानी से अपने शरीर का रंग बदल कर शिकारी जीवों को भ्रम में डाल कर खुद की जान बचाते हैं। उन्होंने कहा कि इन दोनों जीवों की त्वचा में मौजूद क्रोमेटोफोरस के कारण ये अपनी त्वचा की कोशिकाओं को संकुचित कर रंग बदलते हैं। इसी से प्रेरित होकर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम त्वचा बनाई है। हालांकि इसमें त्वचा की कोशिकाएं संकुचित होने की बजाय प्रकाश के संपर्क में आने पर अपना रंग बदलती हैं। इसके लिए नैनो मैकेनिज्म का प्रयोग किया गया है। इसमें कोशिकाओं का काम पानी की बूंदों ने किया है।
32 डिग्री ताप में बदलने लगता है रंग
शोधकर्ताओं ने बताया कि जब इस सामग्री (कृत्रिम त्वचा) को ३२ डिग्री से ज्यादा के ताममान पर गर्म किया जाता है तो नैनोपार्टिकल्स कुछ ही पलों में बड़ी मात्र में ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और पॉलीमर कोटिंग्स से पानी को बाहर निकाल देते हैं, क्योंकि सोने नैनोपार्टिकल्स (महीन कण) फैलकर एक-दूसरे से मिलने लगते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि जब इसे ठंडा किया जाता है तो पॉलीमर दोबारा पानी सोख कर फैला देता है और सोनो के नैनो पार्टिकल्स किसी स्प्रिंग की तरह एक-दूसरे से अलग होना शुरू हो जाते हैं।
सोने के कण आकार को करते हैं नियंत्रित
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एड्रयू सैल्मन ने कहा कि ऑयल सीट में सोने के सूक्ष्म कणों को लोड करने से इसके आकार को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, जिससे ऑयल सीट का रंग नाकटीय रूप से बदलता रहता है। उन्होंने कहा कि प्रकाश के संपर्क में आने पर नैनोपार्टिकल्स जब अलग-अलग होते हैं तो ऑयल सीट का रंग लाल हो जाता है और जब नैनोपार्टिकल्स एक-दूसरे से मिलते हैं तो ऑयल सीट गहरे नीले रंग की हो जाती है।