5 मार्च को अदालत यह तय करेगा कि इस मुद्दे को समझौते के लिए मध्यस्थ के पास भेजा जाएगा कि नहीं। इससे पहले दोनों पक्षकारों को अदालत को यह बताना होगा कि वे अयोध्या मामले में समझौता चाहते हैं या नहीं?’ इसके अलावा अदालत ने ये भी कहा कि मामले की सुनवाई के लिए केस की फ़ाइल में लगे बयान और सबूतों के अनुवाद पर दोनों पक्षों को संतुष्ट होना चाहिए, तभी सुनवाई आगे बढ़ सकेगी।
अदालत ने मुस्लिम पक्षकारों को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए गए अनुवाद को देखने और जांचने के लिए 6 हफ्ते का वक़्त दिया है। न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा है कि, ‘ये विवाद कोई निजी संपत्ति को लेकर नहीं है, यह मामला पूजा-अर्चना के अधिकार से सम्बंधित है। अगर समझौते के माध्यम से 1 प्रतिशत भी इस मामले के सुलझने का चांस हो, तो इसका प्रयास होना चाहिए’ इस पर मुस्लिम पक्ष ने अदालत से कहा है कि पहले मध्यस्थता फेल हो चुकी है, पर वो अभी भी वे तैयार है पर हिन्दू पक्षकार अपनी राय बताएं। इस पर हिन्दू पक्षकारों के वकीलों ने कहा है कि अभी तक समझौते के सारे प्रयास फेल रहे हैं। CJI ने दोनों तरफ के वकीलों से पूछा कि वे पहले तय करे कि क्या सभी दस्तावेजों का जो अंग्रेज़ी जिस तरह अनुवाद हुआ है वह उन्हें स्वीकार है। क्या सभी वकीलों ने जो दस्तावेज अदालत में जमा किए हैं उनकी सत्यता सभी वकीलों को स्वीकार है?
मुख्या न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि यूपी सरकार की ओर से मामले से जुड़े दस्तावेजों का अनुवाद अदालत में जमा किया गया है। अगर सभी पक्षकार उस अनुवाद की सत्यता को लेकर सहमत हैं, कोई आपत्ति नहीं है तो ही सुनवाई के लिए अदालत आगे बढ़ेगी। अगर दोनों पक्षों की हां है तभी सुनवाई के लिए अदालत आगे बढ़ेगी। इस पर मुस्लिम पक्षकार ने अदालत से दस्तावेज़ को समझने और जांचने के लिए समय माँगा और कोर्ट ने उनकी मांग स्वीकारते हुए मुस्लिम पक्ष को 6 सप्ताह का समय दिया है।