राजनीति के अखाड़े में अकेले पर चुके चिराग पासवान का सियासी भविष्य दाव पर लगा

रामविलास पासवान के निधन के बाद से लोक जनशक्ति पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है. एलजेपी की कमान जब से चिराग पासवान ने संभाली है, तब से पार्टी के नेता साथ छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2021 में जीतने वाले एलजेपी के इकलौते विधायक ने मंगलवार को औपचारिक तौर पर अपनी पार्टी छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गए हैं. वहीं, इससे पहले एलजेपी की एमएलसी नूतन सिंह ने भी चिराग का साथ छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ले ली थी. इस तरह से बिहार विधानमंडल के दोनों ही सदन से एलजीपी का सफाया हो गया है.

बता दें कि बिहार की सियासत में एलजेपी के संस्थापक व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की कभी तूती बोला करती थी और केंद्र की राजनीति में भी दो दशकों तक वे सत्ता के साझेदार रहे. पिछले साल उनके निधन होने के बाद से एलजेपी की स्थिति और भी खराब हो गई है. विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी उल्टा पड़ा. बीजेपी के साथ रिश्ते भी खराब हो गए और वह पिछली बार से भी पीछे चली गई.

बिहार में एलजेपी महज एक सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. बेगूसराय जिले के मटिहानी से एलजेपी के टिकट पर राज कुमार सिंह विधायक बने थे, जिन्होंने मंगलवार को जेडीयू का दामन थाम लिया है. राजकुमार सिंह ने चिराग पासवान का साथ छोड़कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हो गए हैं. एलजेपी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह ने जेडीयू की सदस्यता ली, जिसके बाद विधानसभा सचिव ने इसे वैधानिक मान्यता भी दे दी है.

मटिहानी विधायक राजकुमार सिंह ने स्वयं विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष उपस्थित होकर खुद को जदयू विधायक के रूप में मान्यता दिए जाने का अनुरोध किया था. हालांकि, राजकुमार के जेडीयू में जाने की चर्चाएं काफी पहले से थीं. पिछले दिनों हुए विधानसभा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में भी उन्होंने एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान के मना करने के बाद बाज जेडीयू उम्मीदवार को अपना वोट दिया था. इसी के बाद से तय हो गया था कि वो जल्द ही एलजेपी छोड़कर जेडीयू के साथ होंगे और उनके जाने के साथ ही विधानसभा में एलजेपी की संख्या जीरो हो गई है.

वहीं, विधान परिषद में एलजेपी की इकलौती सदस्य नूतन सिंह ने तो पिछले दिनों ही पार्टी को अलविदा कह दिया था. उन्होंने एलजेपी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. इस तरह से अब बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में एलजेपी का कोई प्रतिनिधि नहीं है. एलजेपी राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष चिराग पासवान के लिए यह निश्चित तौर पर राजनीतिक रूप में काफी बड़ा झटका लगा है.

माना जा रहा है कि एलजेपी में मची भगदड़ की वजह से पार्टी का सत्‍ता से दूर हो जाना है. बिहार चुनाव में एनडीए से अलग चुनाव लड़ने का पहला खामियाजा तो चुनाव में उठाना पड़ा और दूसरा रामविलास पासवान की राज्यसभा सीट भी हाथ से हाथ से चली गई है. वहीं, अब पार्टी के इकलौते विधायक और एमएलसी भी चिराग पासवान का साथ छोड़कर जेडीयू और बीजेपी में चले गए हैं. पीएम मोदी के नेतृत्व वाले केंद्र की एनडीए सरकार में भी एलजेपी को अभी तक हिस्सेदारी नहीं मिली सकी है. भविष्य में आगे मिलेगी भी या नहीं, इसे लेकर कोई सियासी तस्वीर साफ नहीं है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार होने पर उसमें एलजेपी को शायद ही जगह मिले, क्योंकि इस मामले में जेडीयू ने कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है. विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने जिस तरीके से एनडीए से खिलाफ जाकर चुनाव लड़ा. इसके चलते जेडीयू लगातार कह रही है कि एलजेपी ने उनके खिलाफ वोटकटवा की भूमिका निभाई, उसके चलते चिराग पासवान को शायद ही मंत्री बनाया जाए. ऐसे में सत्‍ता की चाहत व महत्‍वाकांक्षा वाले नेता उनका साथ छोड़कर अलग हो रहे हैं. एलजेपी के तमाम नेता उनसे अलग हो चुके हैं. चुनाव के दौरान बीजेपी और दूसरे दलों से आए नेताओं का भी मोहभंग हो रहा है. सके चलते चिराग पासवान के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं और उनके सियासी भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं?

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