लखनऊ। प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बड़ी है लेकिन, युवाओं को संगठन से जोड़े बिना यह संभव नहीं। मौजूदा ढर्रे पर ही युवा कांग्रेस व भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ) को चलाया तो पार्टी के अच्छे दिन आना मुश्किल होगा। युवा कांग्रेस व एनएसयूआइ के संगठन को चुनाव द्वारा कराने का प्रयोग कारगर न होने के कारण बदलाव की मांग उठती रही है।
गत विधानसभा चुनाव की तुलना में नगरीय निकाय चुनाव के मत प्रतिशत में बढ़ोतरी से उत्साहित युवक कांग्रेस के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि सत्ता में वापसी करनी है तो युवाओं को तेजी से जोड़ना अनिवार्य है। केवल राहुल गांधी को कमान सौंपने से काम नहीं चलेगा। संगठन विस्तार को चुनावी प्रक्रिया फेल सिद्ध हो चुकी है। युवाओं में कांग्रेस के बजाए भाजपा व सपा ही नहीं, आम आदमी पार्टी जैसे छोटे दले के प्रति भी आकर्षण बढ़ा है।
युवा कांग्रेस व एनएसयूआइ के प्रदेश संगठन को चार भागों में विभक्त कर तैयार किया जाता है। यानी प्रांतीय स्तर पर कोई समन्वय नहीं होने से एकरूपता नहीं होती। इसी कारण संगठन में बिखराव दिखता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा नेता अभिमन्यु त्यागी का दावा है कि युवक कांग्रेस एक प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्य करे और उसे अपनी कमेटी तैयार करने का अधिकार मिले तो संगठन अधिक प्रभावशाली होगा। यही स्थिति एनएसयूआइ पर भी लागू होती है।
नेताओं को नई खेप भी तैयार होगी: पिछले दो दशक में कांग्रेस में प्रांतीय स्तर का कोई नया नेता तैयार नहीं हो सका है जो युवाओं को सपा व भाजपा मोह से अलग कर सके। युवक कांग्रेस के लंबे समय जिला अध्यक्ष और प्रदेश पदाधिकारी रहे अनिल देव का कहना है कि जब संगठन चार क्षेत्रों में विभक्त न था, तब युवक कांग्रेस व एनएसयूआइ का प्रदेश अध्यक्ष अधिक प्रभावशाली होता था। उनमें से अनेक अब राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय है। युवक कांग्रेस और एनएसयूआइ को पुराने अंदाज में लाए बगैर कांग्रेस का भला नहीं होगा।
शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजाइश ज्यादा: युवा वर्ग को जोड़ने के लिए कांग्रेस शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान दे तो अधिक सफलता मिलेगी क्योंकि वहां गुंजाइश ज्यादा है। युवा नेता प्रदीप शर्मा का कहना है कि ग्रामीण युवाओं का भाजपा से तेजी से मोह भंग हो रहा है। कांग्रेस के लिए मौका है कि इसका लाभ उठाए।