उत्तरप्रदेश के, मथुरा से लगभग 13 किलोमीटर दूर है परम पावन नगरी ‘वृंदावन’। मथुरा से वृंदावन से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वृंदावन वही क्षेत्र है जहां द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं।
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 ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेखित एक पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में राजा केदार की पुत्री वृंदा ने श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में दर्शन दिए थे। तभी से वृंदा की यह तपोभूमि वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध हुई। वृदांवन को यदि भगवान का घर कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यों कि यहां हर गली में मंदिर हैं। जिनमें से 6 मन मोह लेने वाले मंदिरों के बारे में यहां हम संक्षिप्त रूप में बता रहे हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेखित एक पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में राजा केदार की पुत्री वृंदा ने श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में दर्शन दिए थे। तभी से वृंदा की यह तपोभूमि वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध हुई। वृदांवन को यदि भगवान का घर कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यों कि यहां हर गली में मंदिर हैं। जिनमें से 6 मन मोह लेने वाले मंदिरों के बारे में यहां हम संक्षिप्त रूप में बता रहे हैं।
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 शाह बिहारीजी मंदिर: सन् 1876 सन् में निर्मित यह विशाल मंदिर में बिहारी जी की मूर्ति स्थापित है।
शाह बिहारीजी मंदिर: सन् 1876 सन् में निर्मित यह विशाल मंदिर में बिहारी जी की मूर्ति स्थापित है।
कृष्णगोपाल मंदिर: यह जयपुर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। सावन माह में लगने वाला झूलोनोत्सव काफी प्रसिद्ध है।
बांकेबिहारी मंदिर: इस मंदिर की विशेषता है कि यहां बराबर दर्शन नहीं हो पाते क्योंकि बीच में पर्दा आ जाता है। वृंदावन का यह प्रसिद्ध मंदिर है।
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श्रीरंगजी मंदिर: इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत के मंदिरों की शैली में किया गया है। ब्रह्मकुंड के निकट एक विस्तृत घेरे में यह मंदिर है जिसमें श्रीरंगजी का श्रीविशालग्रह है।
श्रीराधारमण मंदिर: निधिवन के नजदीक यह राधारमणी संप्रदाय का प्रधान मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर का श्रीविग्रह शिला से स्वतः प्रकट हुआ था।
गोपेश्वरनाथ महादेव मंदिर: वृदांवन का यह मंदिर भगवान शिव का मंदिर है। कहते हैं इस मंदिर के दर्शन करने के बाद ही वृंदावन की तीर्थयात्रा का फल मिलता है।
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