मकर संक्रांति पर पुराणों में कही गई हैं यह 6 खास बातें
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है. जानें मकर संक्रांति के बारे में 6 खास बातें…

पहला महत्व
विष्णु धर्मसूत्र के अनुसार मकर संक्रांति में पितरों की आत्मा की शांति के लिए और सर्वकल्याण के लिए तिल के 6 प्रयोग पुण्यदायक होते हैं। इनमें सुबह तिल जल से स्नान करें, तिल का दान करें, तिल से बना भोजन खाएं, जल में तिल अर्पण करें, तिल से आहुति दें, और तिल का उबटन लगाएं।
दूसरा महत्व
राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने तपकर मां गंगा को धरती पर लाकर कपिल मुनि के शाप से अपने 60 हजार पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति में स्नान और तिल का महत्व आजतक चला आ रहा है।
तीसरा महत्व
कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मां गंगा आई थीं, वह मकर संक्रांति का ही दिन था। मां गंगा के जल से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने मां गंगा को आशीर्वाद देते हुए कहा था, ‘हे मां गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पाप हरण करेंगी और सभी भक्तजनों की पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी।
चौथा महत्व
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। उत्तरायण में शरीर त्यागने वाले व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिलता है। वह जन्म-मृत्यु के बंधन से अलग हो जाता है।
पांचवा महत्व
मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए मकर संक्रांति के दिन धरती पर कदम रखा था।
छठा महत्व
भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन ही मधु कैटभ से युद्ध की घोषणा की समाप्ति की थी। भगवान ने मधु के कंधों पर मंदार नाम का पर्वत रख कर उसे दबा दिया था इसलिए भगवान विष्ण इस दिन से मधुसूदन के नाम से जाने गए। यही मात्र एक त्योहार है जो हर साल एक ही तारीख को आता है क्योंकि यह त्योहार सोलर कैलेंडर को फॉलो करता है और दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र कैलेंडर के आधार पर होती है।
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