14 दिसंबर को दूसरे चरण के मतदान के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव पूरा हुआ. अब रिजल्ट बाकी है जो कि 18 दिसंबर को आएगा. नतीजों पर कयास लगना शुरू हो चुका है. दोनों बीजेपी और कांग्रेस जीत का दावा कर रही है. बीजेपी को अप्रत्याशित बहुमत का भरोसा है तो कांग्रेस विधानसभा में अपनी संख्या सत्तारूढ़ बीजेपी से बढ़ा लेने का दंभ भर रही है. नतीजा कुछ भी हो पर गुजरात चुनाव का असर लंबा दिखने वाला है. गुजरात चुनाव के नतीजे दो बड़ी सियासी पार्टियों के लिए ही नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा फैक्टर बनने जा रहा है. सवाल उठने लगे हैं- क्या यह नतीजे 2019 के चुनावों से पहले अर्थव्यवस्था का एजेंडा तय करने में कामयाब होंगे?
गुजरात चुनाव और इकोनॉमिक एजेंडा
गुजरात चुनावों में प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी ने केन्द्र में बीजेपी सरकार की आर्थिक नीतियों को मुद्दा बनाने की कोशिश की. कांग्रेस ने नोटबंदी के फैसले से बदहाली और जीएसटी से कारोबार को ठेस पहुंचने की बात को जोर-शोर से रखा. वहीं बीजेपी ने चुनावों के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा बड़े आर्थिक फैसलों को लेने की क्षमता की बात कही. बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने देश से भ्रष्टाचार खत्म करने और कारोबारी सुगमता की दिशा में आगे कदम बढ़ाने के अपने दृणसंकल्प को मजबूती के साथ रखते हुए विकास के गुजरात मॉडल को भनाने की कोशिश की. ऐसे में गुजरात चुनावों के नतीजे से एक बात पूरी तरह साफ हो जाएगी की 2019 के आम चुनावों में इकोनॉमी का मुद्दा कितना अहम रहेगा.
पहली स्थिति: मोदी की जीत
गुजरात चुनावों में नतीजा नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बैठा तो बीते तीन साल के दौरान केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों सहति नोटबंदी और जीएसटी के अहम फैसलों पर मुहर लग जाएगी. लिहाजा, गुजरात में जीत हासिल करने के बाद 2019 के चुनावों में बीजेपी को आर्थिक फैसलों पर विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार आने वाले दिनों में आर्थिक सुधारों को रफ्तार देने का काम कर सकती है जिससे 2019 में वह इन सुधारों का सहारा लेते हुए अपनी जीत को आसान कर सके.
दूसरी स्थिति: राहुल की जीत
गुजरात में चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं बैठे तो इसे सीधे तौर पर केन्द्र सरकार के कड़े आर्थिक फैसलों का विरोध माना जाएगा. ऐसी स्थिति में 2019 चुनावों को देखते हुए केन्द्र सरकार के सामने नए आर्थिक फैसले उठाने का काम मुश्किल हो सकता है. आर्थिक सुधारों की रफ्तार को लगाम लगना केन्द्र सरकार की मजबूरी बन जाएगी क्योंकि अबतक के कड़े आर्थिक फैसले एक बार फिर कांग्रेस के प्रचार का अहम हिस्सा बन जाएगा. गुजरात में बीजेपी की हार का सबसे पहला असर आगामी आम बजट में देखने को मिलेगा जहां सुधारवादी नीतियों को पीछे कर लोकलुभावन घोषणाओं का सहारा लेने की कवायद की जाएगी.