प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिक्स की बैठक में भाग लेने के लिए चीन जाने से ठीक पहले पिछले दो महीने से चल रहे डोकलाम विवाद पर पूर्ण विराम लग गया है. भारत और चीन की सेनाओं ने विवादित क्षेत्र से अपने सैनिकों को धीरे-धीरे पीछे हटने का निर्णय लिया. तो अब दोनों देश की तरफ से तीखी बयानबाजी भी रूकी है. लगातार युद्ध की गीदड़भभकी दे रहे चीन का भारत की बात मानकर पीछे हटना एक तरह से पीएम मोदी के लिए बड़ी जीत ही है, तो चीन के लिए बड़ी हार भी है. इनपर एक नजर डालते हैं.
चीन को नुकसान-
1. वैश्विक स्तर पर छवि को पहुंचा नुकसान
अगर डोकलाम विवाद पर भारत को फायदा हुआ है तो चीन को नुकसान भी काफी हुआ है. खुद को ग्लोबल लीडर बनाने की तैयारी कर रहे चीन की छवि पर एक बड़ा धब्बा लगा है.
2. सहयोगी कम आलोचक ज्यादा सामने आए
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डोकलाम के मुद्दे पर बहुत कम देशों ने चीन को सही ठहराया था, बल्कि कई देश भारत के समर्थन में नजर आए. कई देशों ने तो चीन की कड़ी निंदा भी की. साफ है कि डोकलाम विवाद ने कई देशों को चीन के खिलाफ खड़ा कर दिया है.
3. बॉर्डर पर भारत की तैयारियां मजबूत हो गईं
डोकलाम विवाद पर चीन का पीछे हटने का एक कारण यह भी रहा है कि उस जगह भारतीय सेना काफी मजबूत स्थिति में है. इसके अलावा भारत ने LAC से सटे पूरे इलाके में अपनी सेना की किलेबंदी कर ली. लद्दाख, सिक्किम, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश हर जगह भारतीय सेना ने अपनी मजबूती बढ़ाई है.
4. चीन के अंदर की सियासत में जिनपिंग की साख पर उठेंगे सवाल
शी जिनपिंग भारत पर साख जमाने के साथ ही राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल की तैयारी कर रहे थे. क्योंकि अगर वह इस मुद्दे पर भारत को झुका पाते तो अपनी पार्टी में उनकी दावेदारी और भी मजबूत होती. लेकिन शायद अब ऐसा मुश्किल ही हो पाए.
5. सुरक्षा परिषद में सुधार की भारत की दावेदारी को मिलेगा बल
चीन ने लगातार सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी पर सवाल उठाए हैं. भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अपनी पक्की जगह के लिए दावेदारी कर रहा है. लेकिन वह सफल नहीं हो पाया है. डोकलाम विवाद पर कड़े रुख के साथ-साथ बरते गए संयम ने पूरी दुनिया में भारत की साख को मजबूत किया है. दुनिया के कई देशों ने डोकलाम के मुद्दे पर भारत का सपोर्ट भी किया है.
मोदी की सबसे बड़ी जीत –
1. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बड़ा सख्त कदम
सैन्य मोर्च पर अभी तक मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि पाकिस्तान में घुसकर की गई सर्जिकल स्ट्राइक थी. लेकिन चीन जैसे बड़े देश के सामने भारतीय सेना ने अपना दम दिखाया. वो भी दो तरीके से, एक तो भारतीय सेना ने डोकलाम से अपने कदम पीछे नहीं हटाए और दूसरा हमारी सेना चीन के उसकावे में नहीं आई. रक्षामंत्री अरुण जेटली ने भी चीन को जवाब देते हुए कहा था कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है. इसका असर सीमा पर भी दिखा, फिर चाहे वो डोकलाम हो या फिर लद्दाख.
2. जीत के साथ विदेश नीति प्रभावी
2014 में सरकार में आने के बाद पीएम मोदी ने विदेश नीति की रूप रेखा पूरी तरह से बदल डाली. हर देश के नेता के साथ पर्सनल रिलेशन के साथ ही सभी देशों को अपने हक में करना. मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी भारत बुलाकर उनकी खातिरदारी की, लेकिन चीन की दगाबाजी से उनकी नीति पर कई सवाल भी उठे. पर अब चीन का डोकलाम से पीछे हटना यह दिखाता है कि मोदी की विदेश नीति एक बार फिर रंग लाई है और यह एक बड़ी जीत की तरह ही है. इसके अलावा चीन का दोस्त बन रहा पाकिस्तान पर भी विदेश नीति के जरिए शिकंजा कसता जा रहा है. अमेरिका लगातार पाकिस्तान पर रुख अपना रहा है, जो कि उसके लिए अच्छे संकेत नहीं है.
3. चीन जैसे मजबूत देश के सामने डटने से पड़ोसी देशों के बीच बढ़ेगी साख
चीन लगातार भारत के पड़ोसी देश जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों को अपने हक में करने की कोशिश कर रहा था. लेकिन भारत ने लगातार याद दिलाया कि भारत ही उनका सच्चा दोस्त है. अब जब चीन जैसे बड़े देश को भारत ने टक्कर दी है, तो लाजिमी है कि इन देशों का भारत के प्रति विश्वास बढ़ेगा.
4. चीन को खतरे के रूप में देखने वाले देशों के बीच भारत मजबूत
भारत के अलावा ऐसे कई देश हैं जो कि चीन की विस्तार नीति से काफी परेशान हैं. भूटान, वियतनाम, जापान समेत कई देश लगातार चीन के इस रवैये का विरोध करते आए हैं. अब जिन भी देशों को चीन से आपत्ति है, उनका साथ भी भारत के साथ आ सकता है. जापान ने तो पहले ही डोकलाम मुद्दे पर खुले तौर पर भारत का समर्थन किया था. इनके अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत का साथ दिया.