केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय का फ्लैगशिप इवेंट ‘इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर’ दिल्ली के प्रगति मैदान में जारी है. 14 से 27 नवंबर तक चलने वाले इस वार्षिक इवेंट को अब जनता के लिए खोल दिया गया है. लेकिन ट्रेड फेयर से आ रही खबर न तो केंद्र सरकार के लिए अच्छी है और न ही दुनियाभर से एकत्र हुए लगभग 200 दुकानदारों के लिए.
अफगानिस्तान, तुर्की, ईरान, भूटान जैसे देशों से आने वाले कारोबारियों को इस बार जीएसटी परेशान कर रहा है और इनमें से कुछ का मानना है कि अब वह अगली बार इस इवेंट का रुख नहीं करेंगे.
ट्रेड फेयर की फीकी शुरुआत
इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर जब 14 नवंबर को शुरू हुआ तो इसके फीकेपन का अंदाजा ट्रेड फेयर की तैयारी से लग गया. पिछले साल तक यह वार्षिक कार्यक्रम जहां प्रगति मैदान के 1 लाख वर्ग मीटर के क्षेत्र में आयोजित किया जाता था, वहीं इस साल महज 55,000 वर्ग मीटर तक सिमट गया.
प्रगति मैदान में लोगों के उत्साह और उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए पिछले साल तक जहां इस कन्वेंशन सेंटर में भीड़ के आने-जाने के लिए सभी 8 गेट खोल दिए जाते थे, तो इस बार गेट नंबर 2, 6 और 7 बंद हैं. गेट नंबर दो जहां वीआईपी एंट्री के लिए अहम था. वहीं गेट नंबर 6 और 7 ट्रेड फेयर के सबसे अहम एंट्री और एक्जिट प्वाइंट हुआ करते थे. हालांकि, इसके लिए वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से सफाई दी गई है कि कन्वेंशन सेंटर में जारी रेनोवेशन की मजबूरी के कारण इन गेटों को बंद रखा गया है.
एक और अहम बात ट्रेड फेयर के फीकेपन का संकेत दे रही है. पिछले साल तक जहां 6000 कंपनियां और कारोबारी ट्रेड फेयर में अपने उत्पाद लेकर आई थीं, इस बार महज आधे (तकरीबन 3000) प्रोडक्ट्स ही उतारे गए हैं. और अंत में इस साल ट्रेड फेयर के फीके रहने का अंदाजा वाणिज्य मंत्रालय को पहले से था. मंत्रालय का मानना है कि इस बार उन्हें उम्मीद है कि महज 6-7 लाख लोग ट्रेड फेयर पहुंचेंगे जबकि पिछले साल लगभग 14 लाख लोगों ने ट्रेड फेयर पहुंचकर रिकॉर्ड बनाया था.
क्या जीएसटी से फीका रह गया ट्रेड फेयर?
तुर्की से आए एक कारोबारी ने बताया कि वह बीते 19 साल से लगातार इंडिया ट्रेड फेयर में अपना स्टॉल लगा रहे हैं. लेकिन इस बार उन्होंने भारत में जुलाई 2017 से लागू हुए गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इस साल तुर्की से आए इस कारोबारी को 50 फीसदी से अधिक कारोबार की उम्मीद नहीं दिख रही है. दरअसल तुर्की के इस कारोबारी के मुताबिक ट्रेड फेयर में स्टॉल लगाने के लिए उन्होंने लगभग 19 लाख रुपये खर्चकर जगह ली है लेकिन अभीतक उनकी प्रतिदिन की सेल महज 20,000 औसतन आ रही है. कारोबारी के मुताबिक उन्हें प्रति सेल में स्टेट जीएसटी अदा करना पड़ रहा है और इंटेग्रेटेड जीएसटी वह पहले ही अदा कर चुके हैं.
इसके चलते उनकी लागत में इजाफा हो गया है और ग्राहकों को नई कीमत पर उनके उत्पाद महंगे लग रहे हैं.
यही दलील अफगानिस्तान से कारपेट बेचने आए एक दुकानदार की भी है. उनके मुताबिक जीएसटी से टैक्स बढ़ गया है और खरीदार सौदा करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. अफगानिस्तान से आया यह कारोबारी भी बीते 10 वर्षों से लगातार इंडिया ट्रेड फेयर में शरीक हो रहा है लेकिन इस बार उसके सामने अपना सामान वापस ले जाने की चुनौती है. गौरतलब है कि इस कारोबारी के स्टॉल पर 10 हजार रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के कारपेट सेल के लिए रखे हैं.
वहीं शारजाह से आए एक कपड़ा व्यापारी का कहना है कि पिछले साल भारत में नोटबंदी के ऐलान के बाद उनके स्टॉल पर लोगों ने खरीदारी नहीं की. वहीं इस साल जीएसटी के असर से बढ़े हुए टैक्स ने खरीदारों को दूर रखने का काम किया है. वहीं कई कारोबारियों ने यह भी दावा किया कि विदेशी कारोबारियों के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने में भी दिक्कतें आ रही है. उनके मुताबिक जीएसटी के फॉर्म में पेंचीदगी के चलते उन्हें जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं मिल पा रहा है.