चेन्नई : तमिलनाडु में 2 साल पहले एक बड़ी ट्रेन डकैती हुई थी। आरबीआई के करोड़ों रुपये चलती ट्रेन से पार कर दिए गए थे। जीआरपी और सिविल पुलिस डकैती का राज खोलने में नाकाम रही थी। सीबीसीआईडी ने दो साल बाद इस केस में अहम कामयाबी हासिल की है। इस मामले में पकड़े गए बदमाशों ने खुलासा किया कि नवंबर में नोटबंदी लागू हो गई थी और इस कारण 2 महीने बाद ही डकैती के सारे रुपये रद्दी हो गए। 8 अगस्त, 2016 को सेलम-चेन्नई एक्सप्रेस में डकैती पड़ी थी। ट्रेन की पॉर्सल वैन में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के 345 करोड़ रुपये जा रहे थे। नोटों की सुरक्षा के लिए ट्रेन में हथियारों से लैस 18 गॉर्ड भी थे, लेकिन रात के किसी वक्त पॉर्सल वैन से 5 करोड़ से अधिक के 500 और 1000 रुपये के नोट गायब हो गए। जांच में सामने आया कि बोगी की छत काटकर डकैती डाली गई है। शुरुआती जांच रेलवे पुलिस जीआरपी ने की, उसके बाद चेन्नई की सिविल पुलिस ने जांच की, लेकिन उसके हाथ भी कुछ नहीं लगा। इसके बाद जांच की जिम्मेदारी सीबीसीआईडी को दी गई। कई महीने की मशक्कत के बाद सीआईडी देश की सबसे बड़ी ट्रेन डकैती का राज खोलने में कामयाब हुई है। सीआईडी ने 13 नवंबर को इस संबंध में प्रेस कांफ्रेंस की थी। इससे पहले सीआईडी के अधिकारियों ने घटनास्थल जाकर आरोपियों के साथ क्राइम सीन को दोहराया।
अधिकारियों ने बताया कि गुना, मध्य प्रदेश के रहने वाले मोहर सिंह और उसके चार दूसरे साथी नवबंर में तमिलनाडु आए थे। इसी दौरान उन्हें जानकारी मिली कि सेलम-चेन्नई एक्सप्रेस में बैंक का कारोड़ों रुपया आने वाला है। आरोपी मोहर सिंह के अनुसार सभी लोगों ने 8 दिन तक सेलम-चेन्नई एक्सप्रेस में सफर किया। ये जानकारी जुटाई कि चिन्नासालेम और विरुधचलम रेलवे स्टेशनों के बीच डकैती की घटना को अंजाम दिया जा सकता है, क्योंकि इन दोनों स्टेशन के बीच ट्रेन करीब 45 मिनट से अधिक समय तक चलती है और रात भी होने लगती है तो अंधेरा हो जाता है। घटना वाले दिन सभी आरोपी ट्रेन की छत पर बैठकर यात्रा कर रहे थे. इस लाइन पर डीजल इंजन चलते हैं। मौका लगते ही बैटरी वाले कटर से बोगी की छत काट दी। एक आरोपी बोगी में अंदर चला गया, लकड़ी के बॉक्स काटकर नोटों के बंडल निकाल लिए। उन्होंने अपने अंडर गॉरमेंट में बंडल लपेटकर छत पर बैठे साथियों को दे दिए, आगे चलकर रेलवे लाइन के किनारे उनके साथी इंतजार कर रहे थे, उन्हें बंडल फेंककर दे दिए गए। इसके बाद ट्रेन की छत पर चढ़े दूसरे डकैत कूद कर फरार हो गए। सीआईडी ने बताया कि मोहर सिंह ने डकैती को अंजाम देने के लिए अपने 7 साथियों को बुलाया था। इस डकैती का पता एक स्टेशन पर चला, वहां ट्रेन रुकी तो सुरक्षा गॉर्ड बोगी चेक करने आए। रात के वक्त भी छत के रास्ते उन्हें रोशनी दिखी तो शक हुआ। जांच की गई तो छत कटी हुई मिली। इसके बाद पुलिस जांच में जुट गई, लेकिन कई महीनों की मशक्कत के बाद भी डकैती से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला। चर्चा तो ये भी है कि इस केस को खोलने के लिए स्पेस एजेंसी नासा की मदद ली गई है। उसी से सीआईडी को ये पता लगा कि डकैती किस एरिया में डाली गई। हालांकि सीआईडी के अधिकारी नासा से मदद लेने वाली बात को सिरे से खारिज कर रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि सीआईडी ने पूरा केस मोबाइल की मदद से खोला है। सीआईडी को जब ये पता चल गया कि किस एरिया में घटना को अंजाम दिया गया है तो उस एरिया में लगे सभी मोबाइल टॉवर से उस वक्त की कॉल डिटेल निकलवाई गई जिस वक्त डकैती पड़ी थी। सीआईडी ने हजारों नंबरों के बीच में से कुछ ऐसे नंबर निकाले जिन पर शक हो रहा था, उसमें से जब कुछ नम्बर की आईडी निकलवाई गई तो उन सभी नम्बर की आईडी मध्य प्रदेश की थी। बस यहीं से सीआईडी को शक हो गया। मध्य प्रदेश में दबिश देकर एक-एक कर पांच लोगों को हिरासत में ले लिया गया। गिरोह के सरगना मोहर सिंह ने बताया कि इतनी बड़ी रकम को खर्च करना आसान नहीं था। हम रकम को रखकर बैठे हुए थे, अभी हम कुछ ही रकम खर्च कर पाए थे कि 8 नवबंर को नोटबंदी हो गई और एक हजार और 500 के सभी नोट रद्दी हो गए।