हिमाचल में अब औरतें मर्दों के बराबर डायबिटिक होने लगी हैं। ये खुलासा प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी शिमला के मेडिसिन विभाग ने एक शोध में किया है। ये समस्या महिलाओं की ओर से कामकाज कम करने, टीवी ज्यादा देखने जैसी कई वजहों से सामने आई है।
इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र कुमार मोक्टा ने इस विषय पर एक शोध पत्र में महिलाओं के डायबिटिक होने यानी शूगर बीमारी से ग्रसित होने पर गंभीर बातें सामने लाई हैं।उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 से वे आईजीएमसी शिमला के मेडिसिन विभाग की ओपीडी में इस विषय पर अध्ययन करते आए हैं।
उन्होंने कहा कि पुरुषों में औसत वसा कुल वजन से 20 प्रतिशत से कम और महिलाओं में 25 प्रतिशत से कम रहना चाहिए, मगर इससे दोगुना पाया गया है। अगर वे एक दशक पहले की की बात करें तो पहले पुरुष ज्यादा आते थे।
इस वजह से हो रही समस्या
पहले 100 डायबिटिक मरीजों में 20 और 30 महिलाएं होती थीं। उनमें डायबिटीज पहले कम होती थी। अब 100 मरीजों में से पुरुषों और महिलाओं में 50:50 के अनुपात ही आते हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल में महिलाएं अब टीवी ज्यादा देखती हैं।
यानी, औसतन दो घंटे से ज्यादा देखती हैं। जब आर्थिक उछाल नहीं आया था। महिलाएं उस वक्त घरों में काम खूब करती थीं। अब घर में गैस आ गई है और चूल्हा नहीं है। वाशिंग मशीनें जैसे उपकरण भी आ गए हैं। पहले रूटीन का खाना मिलता था।
अब बच्चे की डिलीवरी के बाद एक औसत महिला छह से नौ महीने में औसत 5.5 किलोग्राम घी खाती है। डॉ. मोक्टा ने कहा कि आईजीएमसी की ओपीडी में जो भी डायबिटीज वाली महिलाएं आईं, उनमें 30 प्रतिशत की उम्र 30 से 40 साल पाई गई।
बच्चे के लिए भी खतरा
अगर एक पुरुष और महिला में मोटापन हो तो स्त्री में 10 प्रतिशत ज्यादा अवसर होते हैं। अब देरी से विवाह हो रहे हैं। 25 साल के बाद गर्भवती होना वैसे ही जोखिमपूर्ण है। विश्व में हर सातवीं औरत और भारत में हर छठी गर्भवती औरत में शूगर की मरीज होती है।
यही हालत हिमाचल में भी है। ऐसे में बच्चे के भी मोटे होने के चांस रहते हैं। अगर किसी शिशु का वजन 3.5 किलो से ज्यादा है तो उस बच्चे के बडे़ होने पर शूगर की चपेट में जल्दी आने की संभावना होती है।
सामान्य महिला में 55 साल तक दिल की बीमारी नहीं होती। मगर डायबिटिक महिला में दिल की बीमारी ज्यादा नुकसान करती है।