शेखर चंद्र मिश्र बताते हैं कि डॉ. परमेश्वर झा की इतिहास पर लिखी प्रसिद्ध किताब ‘मिथिला तत्व विमर्श’ और मगध विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के शिक्षक रहे डॉ. उपेन्द्र ठाकुर की ‘हिस्ट्री ऑफ मिथिला’ समेत कई अन्य किताबों में भी सोमनाथ से लाए गए इस शिवलिंग का जिक्र किया गया है. मिथिला के इतिहास पर लिखी गई यह दोनों पुस्तक इस क्षेत्र के बारे में प्रामाणिक मानी जाती है. मिश्र ने कहा कि इन किताबों में इस शिवलिंग के सोमनाथ से लाने के प्रकरण पर विस्तार से चर्चा की गई है.

डॉ. परमेश्वर झा ने लिखा है कि जब 11वीं सदी में ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनी ने हमला किया था, उसी समय इस शिवलिंग को मधुबनी लाया गया था. मिश्र ने इसके पीछे दंतकथा भी बताई. उन्होंने बताया, ”सोमनाथ मंदिर में मिथिला के दो पुजारी हुआ करते थे. गंगा दत्त और भगीरथ दत्त. महमूद गजनी के हमले के बाद गंगा दत्त को एक दिन स्वप्न में भगवान शिव ने आदेश दिया कि उनके शिवलिंग को किसी अन्य स्थान पर ले जाया जाए.

भगवान शंकर ने यह भी कहा था कि जिस जगह उन्हें ले जाया जाए, वहां पीपल का पेड़ हो और उनका स्वरूप पाषाण (पत्थर) का हो. गंगा दत्त ने स्वप्न की ये बात अपने भाई भगीरथ को बताई. इसके बाद दोनों भाई भगवान के उस शिवलिंग को सोमनाथ से ले आए. लेकिन शिवलिंग को लाते वक्त दोनों भाई एक पीपल के पेड़ के नीचे थककर आराम करने लगे, इसी दौरान यह शिवलिंग चोरी हो गया. बाद में जिस जगह यह पाया गया, वहां आज सोमनाथ मंदिर है. इस जगह से उसे अन्यत्र ले जाने का कई लोगों ने प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे.” कालांतर में यह शिवलिंग फिर लुप्तप्राय हो गया था. 19वीं सदी में एक मुस्लिम किसान को अपने खेत की जुताई के क्रम में यह शिवलिंग दिखा. हल से जुताई करते समय शिवलिंग खंडित भी हो गया. इसी अवस्था में यह अब दिखता भी है.

गर्मी के दिनों में शिवलिंग के पास भर जाता है पानी

ऐतिहासिक सौराठ सभा समिति के सचिव शेखर चंद्र मिश्रा ने बताया कि सौराठ का यह मंदिर और यहां स्थापित शिवलिंग अपने आप में अनोखा है. यहां होने वाली कई घटनाएं लोगों को हतप्रभ कर देती हैं. उन्होंने बताया कि गर्मी के दिनों में भगवान शिव के जलशयन करने का प्रकरण इस क्षेत्र के अलावा कहीं नहीं दिखता. जलशयन के बारे में मिश्र ने बताया कि बरसात से पहले किसी दिन अचानक ही मंदिर के गर्भगृह में पानी भर जाता है. काफी प्रयत्नों के बाद भी यह पानी यहां के लोगों से नहीं निकल पाता है. यहां तक कि कई बार मोटर से भी पानी निकालने का प्रयास किया गया, लेकिन लोग असफल रहे. इसके अलावा शिवलिंग पर भक्तों द्वारा रोज चढ़ाया जाने वाला हजारों लीटर जल कहां जाता है, इसका भी पता नहीं चलता.

दरभंगा के महाराज ने बनवाया था मंदिर

सोमनाथ मंदिर के पुजारी विश्वंभर झा ने बताया कि खंडवला कुल के महाराज माधव सिंह को एक मुस्लिम किसान के खेत में शिवलिंग पाए जाने की सूचना मिली. उस समय उनका राज-काज दरभंगा से चलता था. दरभंगा राज ने ही शिवलिंग प्राप्ति स्थल पर भव्य मंदिर बनवाने और इस स्थान को धार्मिक स्थल घोषित कराया. माधव सिंह द्वारा मंदिर बनवाए जाने के बाद इस स्थान का नाम सौराष्ट्र पड़ा. इसके पहले यह जगह रामनगर के रूप में जाना जाता था, जिसे राजस्व विभाग के भूमि रिकॉर्ड में भी देखा जा सकता है. कालांतर में यही सौराष्ट्र, सौराठ कहलाया जाने लगा.