पूर्णिया। स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय तिरंगा पाकिस्तान में भी फहराया जाता है। आपको जानकर हैरत होगी, लेकिन यह सच है। हम बात कर रहे हैं बिहार में बसे एक पाकिस्तान की, जहां दिलों में हिंदुस्तान बसता है। यहां हर स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा शान से फहराता है। यहां के लोग ‘बंदे मातरम’ का नारा लगाते हैं। बिहार के पूर्णिया जिला के श्रीनगर प्रखंड में एक गांव है ‘पाकिस्तान टोला।’ गांव का नाम भले ही ‘पाकिस्तान टोला’ हो, लेकिन यहां एक भी मुसलमान नहीं रहता। जाहिर है, यहां एक भी मदरसा व मस्जिद नहीं है। यहां भगवान राम की पूजा होती है।
गांव का ऐसे पड़ा नाम
पूर्णिया जिला अंतर्गत श्रीनगर प्रखंड के सिंघिया पंचायत में बसे इस गांव ‘पाकिस्तान टोला’ का नाम कब और कैसे पड़ा, इसकी दो कहानियां प्रचलित हैं। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि भारत विभाजन के समय 1947 में यहां रहने वाले अल्पसंख्यक परिवार पाकिस्तान चले गए। इसके बाद लोगों ने गांव का नाम ‘पाकिस्तान टोला’ रख दिया।
गांव के नामकरण की दूसरी कहानी 1971 भारत-पाक युद्ध से जुड़ी है। कहा जाता है कि युद्ध के वक़्त पूर्वी पाकिस्तान से कुछ शरणार्थी यहां आए और उन्होंने एक टोला बसा लिया। शरणार्थियों ने टोला का नाम पाकिस्तान रखा। बांग्लादेश बनने के बाद वे फिर चले गए, लेकिन इलाके का नाम ‘पाकिस्तान टोला’ ही रह गया।
रोटी व परिवार तक सिमटी जिंदगी
कालक्रम में इस गांव में आदिवासी बस गये। वर्तमान में यहां संथालों के करीब तीन दर्जन परिवार रहते हैं। मुख्य धारा से कटे इस गांव की आबादी अशिक्षित है। इन लोगों को केवल अपने घर-परिवार व इलाके की फिक्र है। दो जून की रोटी के जुगाड़ व गांव-परिवार तक सिमटी इनकी जिंदगी में आतंकवाद व हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव
पूर्णिया के इस ‘पाकिस्तान टोला’ की याद नेताओं को केवल चुनाव के समय आती है। यहां करीब 200 वोटर हैं। सरपंच बिपिन चौधरी कहते हैं कि गांव में सुविधाओं का धोर अभाव है। एक ग्रामीण के अनुसार, ”नेता लोग वोट के समय वायदे करते हैं, लेकिन इससे क्या फायदा। हमारी झोपडि़यां देखिए। पानी, बिजली और सड़क भी नहीं।”
लाेग चाहते विकास
पंचायत समिति सदस्य रामजी मरांडी कहते हैं कि यह गांव विकास से कोसों दूर है। चार नदियों से घिरे इस गांव की हालत पहले टापू की तरह थी। करीब पांच साल पहले पुल बना तो अब लोग यहां आ-जा पाते हैं। एक कच्ची सड़क आवागमन का सहारा है। यहां स्कूल व अस्पताल भी नहीं हैं।
सरपंच बिपिन चौधरी बताते हैं कि गांव तक जाने वाली यह सड़क ऐसी है कि बैलगाड़ी को भी मुश्किल हो। शायद यही कारण है कि यहां नेता व अधिकारी नहीं आते। ऐसे में ग्रामीण नंदलाल ऋषि, लालबहादुर ऋषि, सीताराम हेम्ब्रम, मनोज हेम्ब्रम, नवल ऋषि, अरजाबुल, मो. तौहीद आदि का सवाल मौजूं है कि लोग तो विकास चाहते हैं, लेकिन यह हो कैसे?
करते भगवान राम कर पूजा
पाकिस्तान टोला नाम तो है, लेकिन यहां मुसलमान आबादी नहीं है। जाहिर है कि गांव में मस्जिद व मदरसा नहीं है। यहां के आदिवासी श्रीराम की पूजा करते हैं। इनका मुख्य त्योहार बंधना जनवरी में आता है। गांव के लोगों के अपने देवता (गोसाई) हैं, जिनकी पूजा के लिए सभी एक जगह इकट्ठा होते हैं। फिर नृत्य-संगीत का दौर चलता है।
नहीं जानते पाकिस्तान की करतूत
विकास की रोशनी से दूर यहां के भोले-भाले ग्रामीण आतंकवाद का नाम तक नहीं जानते। वे उउ़ी में पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले तथा उसके बाद सेना द्वारा पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक से भी अनभिज्ञ हैं। गांव के बुजुर्ग सुफोल हांसदा को जब पाकिस्तान की करतूत के बारे में बताया गया तब उन्हें दुख पहुंचा।
नाम के कारण होती परेशानी
गांव के लोग समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं। उनकी अपनी ही दुनिया है। लेकिन, जब कभी बाहरी दुनिया से संपर्क होता है, इन्हें गांव के नाम के कारण परेशानी होती है। ग्रामीणों के अनुसार उन्हें अपना पता बताने में कभी-कभी बड़ी परेशानी होती है।
टूट जाते रिश्ते
गांव के एक युवक ने अपना दर्द बयां किया। गांव के नाम के कारण दो साल से उसका रिश्ता टूट जा रहा है। बुजुर्गों ने भी बताया कि गांव के नाम के कारण शादी-व्याह में परेशानी होती है। अधिकांश रिश्ते तो गांव के नाम के कारण टूट जाते हैं। कोई अपने बेटे-बेटी का विवाह ‘पाकिस्तान’ मे करना नहीं चाहता।