फिर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर लग ग्रहण

एक बार फिर से आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर वैश्विक बैन लगाने के भारत की कोशिश पर चीन पानी फेर सकता है। ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनफिर से आतंकी मसूद अजहर को लेकर नरम पड़ता दिखाई दे रहा है। इस बार भी चीन अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों से समर्थित बैन के प्रस्ताव को हमेशा के लिए रद्द की तैयारी कर रहा है।
 
फिर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर लग ग्रहण आपको बता दें कि पिछले कई महीनों से चीन आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाता जा रहा है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन के इस कदम से एक बार फिर दोनों देशों के बीच के सम्बंधों में कड़वाहट पैदा होगी। भारत में कई आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड आतंकी मसूद अजहर पर शिकंजा कसने के लिए इस साल जनवरी माह में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया गया था, जिस पर चीन ने अपनी पावर का इस्तेमाल करके अड़ंगा लगाता रहा है। मालूम हो कि चीन चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का एक स्थाई सदस्य है। 

हाल ही में सम्पन्न हुए ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में पाकिस्तान के आतंकी समूहों का नाम शामिल किए जाने के बावजूद चीन ने मसूद अजहर पर पाबंदी और कार्रवाई के मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। संवाददाताओं द्वारा बार-बार पूछे जाने पर सिर्फ यही जवाब मिला कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में हमारा स्टैंड स्पष्ट है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि उन्हें घोषणापत्र नहीं देखा है और उसके विषय में कुछ नहीं बोलेंगे। उल्लेखनीय है कि भारत के दबाव में अमेरिका हाल ही में हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकी घोषित कर चुका है। 

अब तक अड़ंगा लगाता रहा है चीन
आपको बता दें कि जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मौलाना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित करने में चीन अब तक अड़ंगा लगाता रहा है। अगर प्रतिबंध लगा तो अजहर की संपत्ति सीज हो जाएगी, उसकी विदेश यात्रा पर रोक लग जाएगी।

एनएसजी की राह में चीन है बड़ा रोड़ा
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश पर वीटो लगाने वाला चीन ही यूएन में भारत की स्थाई सदस्यता हासिल करने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। भारत के सामने स्थाई सदस्यता हासिल करने का विकल्प तो है, मगर इसके एवज में उसे वीटो का अधिकार नहीं मिलेगा। भारत नहीं चाहता कि वीटो के अधिकार के बिना वह यूएन की स्थाई सदस्यता स्वीकार करे।

 
 

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