पैंगबर मोहम्मद विवाद मामले में एक बार फिर भारतीय कूटनीति का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। बता दें कि इस विवाद के चलते खाड़ी देशों में भारत के प्रति नाराजगी है। खासकर भारत के मित्र सऊदी अरब और ईरान ने भी पैगंबर मामले में अपनी आपत्ति जताई है। ऐसे में भारत आए ईरानी विदेश मंत्री ने भारत के स्टैंड पर अपनी सहमति जताई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ईरानी विदेश मंत्री के इस स्टैंड का श्रेय अजित डोभाल और ईरानी विदेश मंत्री की वार्ता को जाता है? आखिर भारत ने यह बड़ी सफलता कैसे हासिल की? इस सफलता के पीछे किसका योगदान है? भारत के लिए क्यों जरूरी है खाड़ी देश? इसके साथ यह जानेंगे कि ईरान और भारत के बीच किस तरह के रिश्ते हैं? इन सारे मसलों पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी से खफा ईरान के दृष्टिकोण में बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि खाड़ी देशों में ईरान उन मुल्कों में शामिल है, जिसने पैगंबर मामले में सख्त प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा कि इसकी बड़ी वजह भारत की कूटनीतिक रणनीति रही है। भारत की यात्रा पर आए ईरानी विदेश मंत्री को भारत यह समझाने में पूरी तरह से सफल रहा कि इसकी भरपाई कर दी गई है। इसके साथ ही भारत ने ईरानी विदेश मंत्री को इस बात से आश्वस्त किया कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय पूरी तरह सुरक्षित है। उनके मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं किया गया है।
2- इस मामले में भारतीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल का क्या रोल है? ऐसी चर्चा है कि अजित डोभाल ने इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि देखिए, इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार के लिए अजित डोभाल एक संकटमोचक की भूमिका में रहे हैं। विषम परिस्थितियों में और विशेष मिशन में मोदी सरकार उनको उतारती है। संयोग से हर बार परिणाम भी उनके पक्ष में रहते हैं। पैगंबर मोहम्मद का मामला भी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। इससे खाड़ी देशों में जबरदस्त नाराजगी है। ऐसे में भारत खाड़ी देशों के अपने मित्रों को नाराज नहीं कर सकता है। भारत के लिए यह एक गंभीर विषय है। इसलिए मोदी सरकार ने कंट्राेल डैमेज के लिए सभी मोर्चो को सक्रिय कर दिया है।
3- इसमें कोई शक नहीं कि अजित डोभाल और ईरानी विदेश मंत्री के बीच लंबी वार्ता हुई है, लेकिन ईरानी दृष्टिकोण के बदलाव का श्रेय भारतीय कूटनीति को जाता है। इस काम में विदेश मंत्रालय और खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने मोर्चा संभाल रखा है। उन्होंने कहा मेरा तो यह मानना है कि यह भारतीय कूटनीति की सफलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि कुछ खाड़ी देशों के साथ भारत के मधुर संबंध हैं। इसलिए उनकी नाराजगी भारत के हित में नहीं है। इसलिए ईरानी विदेश मंत्री के भारत आगमन पर पीएम मोदी ने खुद मोर्चा संभाल लिया। इस क्रम में मोदी और ईरानी विदेश मंत्री की बैठक भी हुई। भारत ने यह दिखा दिया कि संयुक्त रूप से किया गया प्रयास सफल रहा। इसमें सरकार के हर पक्ष ने बड़ी भूमिका निभाई है। विदेश मंत्रालय हो या प्रधानमंत्री कार्यालय हो या फिर एनएसए की भूमिका क्यों न हो। सभी ने अपने मोर्चे पर सकारात्मक परिणाम दिए। अजित डोभाल ईरानी विदेश मंत्री को यह समझा पाने में सफल रहे कि दोषियों को कठोर सजा दी जाएगी। ईरानी विदेश मंत्री को कहा गया है कि दोषियों के खिलाफ उचित और कानूनी कार्रवाई की गई है। भारत का संविधान और कानून उनके खिलाफ काम करेगा।
4- इसके अलावा प्रो पंत ने कहा कि यह भारत के इस रणनीति का असर अन्य खाड़ी देशों पर पड़ेगा। इस लिहाज से यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। अब अन्य खाड़ी देश भारत के स्टैंड का समर्थन करेंगे। इस लिहाज से यह सकारात्मक कदम रहा है। ईरानी स्टैंड के बाद पैगंबर मामले में अन्य इस्लामिक देश भी भारत के पक्ष में सोचने में विवश होंगे।
सऊदी अरब और ईरान से आता है कच्चा तेल
1- खाड़ी देशों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर खाड़ी देशों पर निर्भर है। भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का लगभग 20 फीसद सऊदी अरब से और 10 फीसद ईरान से आता है। इसलिए भारत को एक साथ सऊदी अरब और ईरान से अच्छे संबंधों को बनाकर रखना एक बड़ी चुनौती है। भारत ने ईरान से क्रूड आयल मंगाने के मुद्दे पर अमेरिका के दबाव को भी झेला और साथ ही पूरी तरह यह भी कोशिश की कि उसे अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करना पड़े। भारत को ईरान और रूस के साथ व्यापारिक समझौतों के आधार पर ही अमेरिका ने जीएसपी की सूची से बाहर भी निकाल दिया था।
2- इसके अलावा चाबहार पोर्ट के चलते ईरान का सहयोग भारत के लिए बेहद जरूरी है। अफगानिस्तान में बदल रहे हालात के मद्देनजर ईरान का सहयोग भारत के लिए ज्यादा जरूरी हो गया है। भारत अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार पोर्ट से जोड़ने के लिए एक बड़ी योजना पर काम कर रहा है। खासकर तब जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में है, ऐसे में ईरान भारत के लिए ज्यादा उपयोगी हो जाता है।