देहरादून: कश्मीर के शोपिया में सेना के काफिले पर पत्थरबाजी व आगजनी के बीच प्रतिउत्तर में गोली चलाने वाले सेना के जांबाजो पर हत्या का मुकदमा दर्ज करवा सेना के मनोबल पर वार किया गया है। सवाल ये उठ रहा है कि क्या सैनिकों को पत्थरबाजों के पत्थर खाने थे? क्या आत्मरक्षा भी अपराध है? पूर्व सैन्य अधिकारी मानते हैं कि यह राजनीति से प्रेरित कदम है। वह सवाल करते हैं कि आप अपनी सेना को किस स्थिति में देखना चाहते हैं। हमला होने पर वह इसका प्रतिउत्तर दे या चुपचाप सब सहती जाए। वह कहते हैं कि सेना वहां लड़ने के लिए है, मरने के लिए नहीं।
ले जनरल (सेवानिृत्त) ओपी कौशिक का कहना है कि कश्मीर घाटी में आर्म्स फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट लागू है। यह तभी लगता है जब राज्य सरकार क्षेत्र को ‘डिस्टर्ब’ घोषित कर दे। जहां एक्ट लागू है वहां बगैर केंद्र की इजाजत किसी भी फोर्स पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। ऐसे में यह दिखावा भर है। या यूं कहें कि इस मामले पर राजनीति की जा रही है। यह एक तरह से सेना को हतोत्साहित करने जैसा है। जिससे आतंकियों के हौसले बुलंद होंगे। सेना का मनोबल टूटना किसी भी देश के अच्छा नहीं है।
मेजर जनरल (सेवानिृत्त) सी नंदवानी का कहना है कि पथराव के साथ मारपीट व आगजनी पर उतारू भीड़ पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों को गोली चलानी पड़ी। इस दौरान एक जेसीओ के सिर पर पत्थर लगने से वह अचेत होकर नीचे गिर पड़े। इसके अलावा छह अन्य जवान भी जख्मी हो गए। भीड़ ने अचेत पड़े जेसीओ को घसीटते हुए उसका हथियार भी छीनने की कोशिश की। आप बताइये, इस स्थिति में क्या करना चाहिए था। यह बस राजनीति की जा रही है। यह भी संभव है कि यह निर्णय केवल माहौल शांत करने के लिए लिया गया हो।
ब्रिगेडियर (सेवानिृत्त आरएस रावत का कहना है कि जब भीड़ हमलावर हो और लोग पत्थर व पेट्रोल बम फेंक रहे हों तो क्या आप अपने सैनिकों को देखते रहने और मरने के लिए कहेंगे। सेना वहां लड़ने के लिए है, मरने के लिए नहीं। सैनिकों की मनोस्थिति का अनुमान लगाइये। बच्चे और किशोर उन्हें घेर कर पत्थर मार रहे हैं और यदि वह प्रतिकार करते हैं उनके खिलाफ राजनीतिक पार्टियां आ जाती है बुद्धिजीवी भी नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। ये घटना सैनिकों का मनोबल तोड़ने जैसी है।