‘पहली बार, ऐसी महिला से सेक्स करें जो सुंदर ना हो’

ये अंश सुधीर कक्कड़ द्वारा रचित ‘कामयोगी’ किताब से लिए गए है। सुधीर कक्कड़ अंग्रेजी के महत्वपूर्ण भारतीय लेखक और मनोविश्लेषक हैं।
चीनी ग्रंथ संभोग के दौरान, विशेष रूप से स्‍त्री के यौन-स्फुरण और इस क्रिया के दौरान उसकी संतुष्टि पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। जब वे किसी विषय पर जोर देते हैं तो वह अधिक विशद होता है।
'पहली बार, ऐसी महिला से सेक्स करें जो सुंदर ना हो'
”चीनी स्‍खलन के आनंद को भी कम महत्व देते हैं। वे इस बात पर आग्रहपूर्वक जोर देते हैं कि पुरुष स्‍खलित हुए बिना एक हजार बार मैथुन की कला सीख सकता है। स्‍खलन रोकने के अपने इस कंजुसी भरे आग्रह में चीनी हमारे कुछ हास्यास्पद संप्रदायों-जैसे हैं, जो इस व्यर्थ के विचार का प्रचार करते हैं कि वीर्य के संरक्षण से दीर्घायु, सृजनात्मकता, शारीरिक और मानसिक तेजस्विता में वृद्घि होती है।”चीनी रत्यात्मकता के अनेक गुणों से मैं इंकार नहीं करता, जिन्हें अपनाकर हम लाभान्वित हो सकते हैं। ‘काम’ के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले नौसिखुओं ‌के लिए उनके परामर्श अनुकरणीय हैं, यघपि मुझे संदेह है कि कोई व्यक्ति‌ आवेग का ज्वार चढ़ने पर गिनती करने की स्थिति में रह सकता है। वे काम के क्षेत्र में नवागंतुक को किसी ऐसी स्‍त्री से आरंभ करने की सलाह देते हैं जो बहुत सुंदर न हो और जिसकी योनि बहुत तंग न हो। ऐसी स्‍त्री के साथ आत्मनियंत्रण को आसानी से सीखा जा सकता है। अगर स्‍त्री अत्यंत सुंदर नहीं है तो वह अपना मानसिक संतुलन नहीं गंवाएगा और अगर उसकी योनि बहुत तंग नहीं है तो वह अत्यधिक उत्तेजित नहीं होगा। वे उस नवदी‌क्षित को पहले तीन हल्के और एक गहरे धक्के की विधि को आजमाने और इन धक्कों को इकट्ठे इक्यासी बार लगाने का सुझाव देते हैं।

”दूसरी ओर, कुलीन उत्पत्तिवाले आर्यों को प्रेमद्रवों के बारे में चीनियों के सुझाव धृणास्पद लगेंगे। ये ग्रंथ शुद्घता और प्रदूषण के प्रश्नों की परवाह किए बिना इन द्रवों का उत्सव मनाते हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि ‘हरित द्रव’-यौन-उत्तेजना के दौरान उत्पन्न होने वाले स्‍त्रावों और राल के लिए उनका जातीय शब्द-का उत्पादन और उसमें भागीदारी पुरुष और नारी के सारतत्वों (जिन्हें वे यिन और यांग कहकर पुकारते है) के सामंजस्य के लिए अनिवार्य है।

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