नोटबंदी : भूख से बिलखते बच्चों को देख टूटा युवक का सब्र, लगाई फांसी

note-bandi_1481922204नोटबंदी के बाद काम धंधा नहीं मिलने से परेशान जूता कारीगर हरीभान सिंह ने घर में फांसी लगा ली। घर में उधारी से राशन आ रहा था लेकिन तीन दिन से वह भी बंद हो गया। घर में चूल्हा तक नहीं जला था। परिवार पाई-पाई के लिए मोहताज हो गया था। इससे आहत होकर ही हरीभान ने यह कदम उठाया

 जीवनी मंडी स्थित नगला परमा निवासी हरीभान सिंह (22) पुत्र स्व. महेंद्र सिंह घर का इकलौता कमाने वाला था। वह जूता कारखाने में काम करता था। उसके पड़ोसी दिलीप ने बताया कि पुराने 500 और एक हजार के नोट बंद होने के बाद हरीभान सिंह बेरोजगार हो गया। कारखाने में काम बंद हो गया था। हरीभान की मां श्यामवती और बहन अंजू है। वहीं बड़े भाई वेदप्रकाश की कुछ महीने पहले मौत हो गई थी।

उसकी पत्नी पिंकी और चार बच्चों की जिम्मेदारी भी हरीभान पर ही आ गई। हरीभान नौकरी की तलाश कर रहा था। परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। वह घर का राशन भी दुकान से उधार ला रहा था। तीन दिन पहले से दुकानदारों ने भी उधार देना बंद कर दिया। इसके चलते घर में चूल्हा तक नहीं जला।
गुरुवार रात को मासूम भतीजों को भूख से बिलखता देखकर हरिभान काफी आहत हुआ। शुक्रवार सुबह परिवारीजनों ने उसका शव दुपट्टे से फंदे पर लटका देखा तो चीख निकल गई। परिवार में कोहराम मच गया। सूचना पर पुलिस पहुंच गई। इंस्पेक्टर छत्ता थाना का कहना है कि युवक ने आर्थिक तंगी में फांसी लगाई है।

अंतिम संस्कार के लिए मोहल्ले के लोगों ने किया चंदा

परिवारीजनों पर इतनी रकम भी नहीं थी कि हरीभान के शव का अंतिम संस्कार कर सकें। इस पर मोहल्ले के लोगों ने चंदा करके रकम जुटाई। इसके बाद ही अंतिम संस्कार किया जा सका। परिवार के लिए भोजन का भी बंदोबस्त किया गया।
पार्षद धर्म सिंह ने बताया कि नोटबंदी के बाद से कई मजदूर परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। कारीगरों को काम तक नहीं मिल रहा है। हरीभान ने भी इसी परेशानी के चलते यह कदम उठाया। उसके परिवार को 10 लाख रुपये की सरकार की ओर से आर्थिक सहायता की मांग की।
छह महीने पहले रेबीज से हुई थी भाई की मौत
हरीभान के पिता की मौत कई साल पहले हो गई थी। भाई वेदप्रकाश को भी छह महीने पहले रेबीज हो गई थी। इस कारण उसका 15 दिन तक इलाज चला लेकिन वह ठीक नहीं हो सका। उसकी मौत हो गई। वेदप्रकाश के चार बेटे हैं। इनमें आठ साल का विशाल, पांच साल का मोहित, चार साल का विवेक और एक एक महीने का बेटा आयुष है।
हरीभान पर ही उनकी जिम्मेदारी थी। वेदप्रकाश का इलाज कराने के लिए कर्ज लिया था। हरीभान ने ही कर्ज चुकाया। मां श्यामवती भी घरों में काम करने लगी। हरीभान के बेरोजगार होने पर घर में आटा भी बमुश्किल आ पा रहा था।
बच्चों को भूख से रोता देख खुद भी रोया
हरीभान को दुकानदारों ने सामान देने से मना कर दिया तो वह टूट गया। उधर बच्चे भी भूख से बिलख रहे थे। परिवार की स्थिति देखकर हरीभान भी रोया और अपने कमरे में चला गया। इसके बाद फांसी लगा ली। अब परिवार चलाने वाला कोई नहीं है।

‘मैं अबोध को कैसे चुप करती’

 परिवार एक कमरे के मकान में किसी तरह से रहता है। हरीभान को काम धंधा मिल नहीं रहा था। बच्चों को एक टाइम का भोजन भी नसीब होना मुश्किल होता था। हम तो किसी तरह पेट पर हाथ रखकर सो भी रहे थे, लेकिन एक महीने के बेटे आयुष को कैसे चुप करती। उसे रोता देखकर ही मेरे देवर ने फांसी लगा ली। यह पीड़ा है आत्महत्या करने वाले हरीभान की भाभी पिंकी की।
उसने बताया कि गुरुवार दोपहर को एक महिला दलिया देकर गई थीं। बच्चों को थोड़ा बहुत खिला दिया। रात में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। इस कारण सभी पेट पर हाथ रखकर सो गए। हरीभान भी रात में आया। उस वक्त एक महीने का आयुष रो रहा था। पिंकी ने बताया कि सुबह से भोजन न करने के कारण वह आयुष को दूध तक नहीं पिला सकी। हरीभान भी रुपये नहीं होने की वजह से दूध नहीं ला सका।
आयुष के आंसू देखकर हरीभान भी रोया। इसके बाद कमरे में चला गया। फिर निकलकर नहीं आया। सुबह उसका शव फंदे पर लटक रहा था। पिंकी का कहना है कि उसका खाता भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में है, लेकिन भीड़ होने की वजह से हर बार हरीभान वापस लौट आया था। इस कारण खाता में बची रकम तक नहीं निकल सकी। उधर, बेटे की मौत से मां के आंसू नहीं रुक पा रहे हैं।
 
 

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