लखनऊ.यूपी निकाय चुनावों का कम्पाइल डाटा राज्य निर्वाचन आयोग ने जारी कर दिया है। जिसमें चुनावों का प्रतिशत कुछ और ही तस्वीर दिखा रहा है। इसमें बीजेपी के 45 फीसदी से भी ज्यादा कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट राजबहादुर और वरिष्ठ पत्रकार वीर बहादुर मिश्रा ने बातचीत में कहा- “वैसे तो इन चुनावों से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन सवाल ये भी है कि क्या लोग बीजेपी से दूरी बनाने लगे हैं ? अगर इस डाटा को देखें तो निश्चित तौर पर 2019 की जीत इतनी आसान नहीं होगी।
3 हजार से ज्यादा बीजेपी कैंडिडेट की जमानत जब्त…
– 1 दिसम्बर को जारी हुए रिजल्ट में नगर निगमों की 16 में से 14 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था। चुनाव आयोग की ओर से एक कम्पाइल डाटा जारी किया गया। जिसमें वोट प्रतिशत और उसके आंकड़ों को कम्पाइल करते हुए दिखाया गया है।
– इस डाटा में सामने आया है कि नगर निगम महापौर पदों पर ज्यादातर सीटें बीजेपी को भले ही जीत मिली हैं लेकिन कुल 12 हजार से ज्यादा सीटों पर हुए निकाय चुनावों में से बीजेपी मात्र 2366 सीटें ही जीत पाई है। बाकियों पर उसे हार हासिल हुई। वहीं, पार्टी के 3656 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई है।
55 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार हारे
-सभी 16 नगर निगमों में कुल 1300 पार्षद हैं। जिनमें से मात्र 596 सीटें यानी 45प्रतिशत ही बीजेपी ओर से जीतकर आए हैं। इसका सीधा मतलब है कि 55 प्रतिशत से ज्यादा पर हार गई।
-इसके अलावा 198 नगर पालिका परिषद अध्यक्षों में से सिर्फ 70 सीटें यानी 35 प्रतिशत सीटों पर ही बीजेपी जीत सकी। सीधा मतलब है 65 प्रतिशत सीटों पर हार गई।
-नगर पालिका परिषद सदस्यों की 5261 सदस्यों में से मात्र 922 सीटें यानी 17 प्रतिशत ही जीत सकी जबकि सीधा मतलब 77 प्रतिशत सीटों पर हार गई।
-नगर पंचायत सदस्य 5434 में से 664 यानी 12 प्रतिशत ही जीत सके। यानी 88 प्रतिशत सीटों पर हार हुई। वहीं, नगर पंचायत अध्यक्षों की 438 सीट में से 100 सीट ही जीत सके। यानी 78 प्रतिशत सीटों पर हार हुई।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
-पॉलिटिकल एक्सपर्ट वरिष्ठ पत्रकार वीर बहादुर मिश्रा ने कहा- “बीजेपी की पकड़ लोकल चुनावों कमजोर हुई है, इसकी आशंका तो पिछले कई महीनों से थी, लेकिन जिस तरह से राज्य चुनाव आयोग का डाटा जारी किया गया है। उसको देखिए तो साफ नजर आ रहा है कि सीएम योगी का मुखौटा या पीएम की योजना बीजेपी की लहर कमजोर साबित हुई है।”
-किसानों की दुनिया बहुत छोटी होती है वो बेचारे गांवों की कम सुविधाओं और अभाव में ही समय काटते हैं। ऐसे में उनके पास जरूरी संसाधनों की कमी या जो बातें कही जाए वो न पूरी हो तो वो बुरा जल्दी मान जाता है। शहरों के अलाव छोटे कस्बे, नगरों में भी यही स्थिति है। ये दिखाता है कि अब जरूरत है जमीन पर काम करने की।
-अन्य पार्टियों के प्रतिशत भी कम हैं लेकिन उनसे लोगों को उम्मीदें भी कम थीं। इसलिए उनसे ज्यादा बीजेपी की बात होनी लाज़मी है। यूथ को जॉब चाहिए बातें बहुत ज्यादा हो गईं। उसे ग्राउंड वर्क नहीं दिखा, इसलिए वो अलग चला गया।
-पॉलिटिकल एक्सपर्ट राजबहादुर सिंह ने कहा- “ये क्षेत्रीय चुनाव हैं, जिसमें आम तौर पर व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान पर ही वोट मिलते हैं। हालांकि बीजेपी हमेशा से निकायो में जीतती रही है, इसलिए उसको लेकर बातें हो रही हैं। अन्य पार्टियों की भी स्थिति ठीक नहीं है। अब बीजेपी से लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं, इस तरह से भी इन्हें देखा जा सकता है।”
क्या जमीन छोड़ सिर्फ आईटी सेल पर टिकी बीजेपी ?
-पॉलिटिकल एक्सपर्ट वरिष्ठ पत्रकार योगेश त्रिपाठी ने कहा- “बीजेपी का जो सेट बनाया गया है आईटी के क्षेत्र में प्रचार करने के लिए वो लोकल कनेक्ट खासतौर पर कस्बों तक में अपनी बात को नहीं पहुंचा पाया। क्योंकि उस लेवल पर सोशल मीडिया से प्रचार की मेजोरिटी नहीं होती। आईटी टीम बनाकर प्रचार करने से या ऐप डेवलप करने से रोजगार नहीं मिलता, ये बात सरकार और पार्टी दोनों को सोचना होगा।
क्या है नियम जमानत जब्त होने का?
-राज्य चुनाव आयोग के एडिशनल आयुक्त वेद प्रकाश के अनुसार निकाय चुनावों में कुल पड़े वोटों का 20 प्रतिशत यदि किसी प्रत्याशी मिल जाता है तो ठीक है। लेकिन 20 प्रतिशत से दशमलव 1 प्रतिशत भी यदि कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत जब्त मानी जाती है। हमने इन चुनावों में पूरी पार्टी वाइज भी और एक एक सीट पर भी कितने वोट कितना प्रतिशत, किसकी जमानत जब्त हुई या नहीं सब ऑन लाइन डाल दिया गया है।