नए निवेश की कमी से चिंता गहराई, अब क्या होगा भारत की अर्थव्यवस्था का?

नए निवेश की कमी से चिंता गहराई, अब क्या होगा भारत की अर्थव्यवस्था का?

अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर सरकार की तरफ से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट निवेश की स्थिति को लेकर भी कुछ गंभीर सवाल उठाती है। एक तरफ सरकार के ये आंकड़े इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि देश में कर्ज लेने की रफ्तार ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर है और नई परियोजनाओं के लगाने का काम भी पिछले 13 वर्षो के सबसे निचले पायदान पर है। ये आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के मुकाबले निवेश (जीएफसीएफ) कम होता जा रहा है। नए निवेश की कमी से चिंता गहराई, अब क्या होगा भारत की अर्थव्यवस्था का?

ऐसे में जानकार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या आर्थिक विकास दर की मौजूदा रफ्तार को आगे बरकरार रखा जा सकेगा? केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में जीडीपी के मुकाबले जीएफसीएफ की हिस्सेदारी 29.5 फीसद थी जो इस वर्ष घटकर 29 फीसद रहने के आसार हैं। वर्ष 2015-16 में यह तकरीबन 31 फीसद थी। दस वर्ष पहले यह 35-36 फीसद थी। नए निवेश की कमी से चिंता गहराई, अब क्या होगा भारत की अर्थव्यवस्था का?

सरकार जीडीपी के मुकाबले निवेश की स्थिति दिखाने के लिए सकल स्थाई पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के आंकड़े का सहारा लेती है। अगर राशि में देखें तो यह वर्ष 2016-17 में 41.18 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ जबकि चालू वित्त वर्ष के दौरान 43.84 लाख करोड़ रुपये का निवेश होने का अनुमान है। इसके पिछले वर्ष यह राशि 41.18 लाख करोड़ रुपये थी। सरकार इसे सकारात्मक मान रही है क्योंकि जीएफसीएफ में वृद्धि की रफ्तार इन दो वर्षो में 2.4 फीसद से बढ़कर 4.5 फीसद हो गई है।

प्रमुख अर्थशास्त्री डी. के. जोशी के मुताबिक निवेश बढ़ा है, लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि यह अर्थव्यवस्था को तेज गति दे सकता है। एनआइपीएफ की अर्थशास्त्री राधिका पांडे का कहना है कि जीएफसीएफ यह बताता है कि देश में निवेश की स्थिति क्या है। अगर मौजूदा विकास दर को बनाये रखना है या फिर विकास दर को और तेज करना है तो जीएफसीएफ में वृद्धि की रफ्तार आर्थिक विकास दर से ज्यादा होनी चाहिए।

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