नई दिल्ली । वर्ष 1980 का छह अप्रैल भाजपा की स्थापना का गवाह बन रहा था। भाजपा की स्थापना के बाद हुए पहले पार्टी अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं ‘अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’। यह वाजपेयी का विश्वास था अथवा उनकी दूरदृष्टि, लेकिन उनका कथन आज सत्य की कसौटी पर खरा नजर आता है। हालांकि यह मुकाम भाजपा की स्थापना के तुरंत बाद नहीं मिला, बल्कि यह संघर्षो की यात्र का प्रतिफल है। वर्ष 1980 में वाजपेयी ने जब ऐसा कहा, उसके ठीक बाद हुए आम चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 8वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों में कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया था। भाजपा महज दो सीट पर चुनाव जीत सकी थी। भाजपा को जिन दो सीटों पर जीत मिली थी, उनमें से एक सीट गुजरात और दूसरी आंध्र प्रदेश की थी। जनसंघ की मजबूत बुनियाद से निकली भाजपा के लिए यह आत्ममंथन का दौर था। उस हार की हताशा से उबरने के लिए भाजपा ने जनांदोलनों के देशव्यापी अभियानों का सहारा लिया। इसका लाभ पार्टी को अगले ही चुनाव में मिला। वर्ष 1989 के आम चुनावों में भाजपा ने 85 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद का दौर भाजपा के चुनावी सफलताओं के उभार की ओर बढ़ने का दौर कहा जा सकता है। अगर नब्बे के दशक की बात करें तो यह भाजपा के लिए सफलताओं का दौर लेकर आया।
लगातार बढ़ती गईं भाजपा की सीटें
भाजपा ने 1991, 96, 98 और 99 के आम चुनावों में अपनी सीटों में व्यापक बढ़ोतरी हासिल की थी। वर्ष 1996 के चुनाव में पहली बार भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिली थीं। इन चुनावों में कांग्रेस 140 के आसपास सिमट गई थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 161 सीटों पर जीत मिली थी। इसी चुनाव के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। जनसंघ की जड़ों से निकले एक नेता को प्रधानमंत्री बनते देखने के लिए लगभग 45 वर्षो का इंतजार करना पड़ा था। इन 45 वर्षो में 16 वर्ष भाजपा के भी शामिल हैं।इतिहास के आईने से वर्तमान का मूल्यांकन करके देखने पर पता चलता है कि आज स्थितियां बेहद अलग हो चुकी हैं। सीटों की संख्या और संगठन के विस्तार के धरातल पर वर्तमान की भाजपा का आकार नब्बे के दशक की भाजपा की तुलना में अत्यंत बड़ा और व्यापक हो चुका है।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी
आज भाजपा भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। यह भाजपा क्रमिक विकास के साथ हुए पीढ़ीगत बदलावों का एक अहम पड़ाव है। मोदी और अमित शाह का दौर भाजपा का अभी तक का सर्वश्रेष्ठ दौर है। इस दौर को भाजपा का स्वर्णिम काल लिखने के अनेक तथ्यात्मक कारण हैं, लेकिन उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस दौर को भी भाजपा का स्वर्णिम दौर नहीं मानते हैं। अनेक बयानों और मीडिया को दिए इंटरव्यू में शाह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भाजपा का स्वर्णकाल आना अभी शेष है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि उपलब्धियों की बुलंद इमारत पर खड़े अमित शाह की नजर सफलताओं की किन चोटियों पर है, जहां अभी भाजपा का पहुंचना शेष है? यह एक राजनीतिक जिज्ञासा का सवाल भी है और संगठन आधारित एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष की रणनीति को समझने का अवसर भी।
अधूरे छूट गए पन्ने
वर्ष 2014 में भाजपा और नरेंद्र मोदी को मिली प्रचंड जीत, 1996 में मिली जीत के बाद के अधूरे छूट गए पन्ने को पूरा कर चुकी है। वर्ष 2014 में भाजपा जब केंद्र की सत्ता पर आसीन हुई तब देश के महज 4 राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं। राजग को मिला दें तो भाजपा गठबंधन का सिर्फ 7 राज्यों तक विस्तार था। वहीं कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकारें 12 राज्यों एवं अन्य दलों की सरकारें 12 राज्यों में चल रहीं थीं। मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो राज्यों में भाजपा की सत्ता और संगठन के विस्तार की जिम्मेदारी अमित शाह को मिली। उनके संगठन कौशल का परिणाम उनके कार्यकाल की शुरुआत में ही नजर आने लगा। शाह के कार्यकाल की शुरुआत चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली सफलताओं से हुई। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत मिली।
विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत
बिहार और दिल्ली के चुनावों को अपवाद मान लें तो इसके बाद हुए लगभग हर एक विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत मिली। त्रिपुरा के अभेद किले को भेदने में भी भाजपा कामयाब हुई। अनेक ऐसे राज्यों तक भाजपा का विस्तार हुआ है, जहां पार्टी का अस्तित्व भी नहीं स्वीकार किया जाता था। चुनावी सफलताओं के साथ-साथ अमित शाह ने पार्टी को युगानुकुल प्रणाली से युक्त बनाने की रणनीति पर भी कार्य किया। उन्होंने पार्टी में 19 विभागों एवं 10 प्रकल्पों की रचना की। हर विभाग पूर्ण जवाबदेही के साथ संगठन शक्ति की धार को तेज करें, इसके पुख्ता उपाय किए। समाज के हर वर्ग से जुड़ना, संवाद को निरंतरता के अनुशासन में लागू करना एवं सामाजिक कार्यो को प्रकल्पों के माध्यम से संगठन के एजेंडे में शामिल करना, वर्तमान भाजपा की कार्यपद्धति का हिस्सा बन चुका है।
पंचायत से पार्लियामेंट तक
आमतौर पर एक राजनीतिक दल की सफलता और असफलता के मानदंड चुनाव जीतने और हारने तक सीमित करके देखा जाता है, लेकिन अमित शाह इसे अलग ढंग से देखते हैं। उन्होंने अनेक बार कहा है कि वे भाजपा को चुनाव जीतने की मशीन तक सीमित हो कर नहीं देखते हैं। उनकी मंशा इसे ‘पंचायत से पार्लियामेंट’ और कच्छ से कोहिमा तक ले जाने की जाहिर होती है। भविष्य में क्या होगा यह कहना अभी संभव नहीं है, लेकिन भाजपा की आयु का यह 39वां पड़ाव भारतीय राजनीति में वैचारिक संघर्षो की यात्र से निर्मित एक समृद्ध इतिहास का गवाह बन रहा है।