देवरिया। खेल के मैदान को अपनी पहली पसंद बनाकर शहर के एक चूरन विक्रेता की बेटियां अपने पिता के सपने को पंख लगाने में जुटी है। सात में से चार बेटियों ने खेलों में जिले, प्रदेश तथा देश को शोहरत दिलाने की ठान ली है। देवरिया के पुलिस लाइंस के पास कांशीराम शहरी आवास में रामकेश शुक्ला का परिवार रहता है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे रामकेश चूरन बेचते हैं। उनकी सात बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी रत्नप्रिया की शादी हो चुकी है। दूसरे नंबर की बेटी तपस्विनी व पूजा घर पर रहती हैं। इसके बाद की चार नित्या, सत्या, आर्या और शिल्पी पढ़ाई के साथ-साथ खेल को करियर बना रहीं है।
देवरिया की आर्या शुक्ला फिलहाल अभी मैरीकॉम व गीता फोगाट जैसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं हासिल कर सकी है, लेकिन उसका संघर्ष इन दोनों महान महिला खिलाडिय़ों से जरूर मिलता-जुलता है। शहर के कांशीराम आवास में रहने वाली आर्या के पिता रामकेश शुक्ल देसी नुस्खों से लोगों का इलाज कर पूरे परिवार का पेट पालते हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने के कारण सात वर्ष पूर्व कांशीराम आवास योजना में एक फ्लैट इन्हें मिल गया था। गरीबी की परवाह किए बगैर सात बेटियों में छठवें नंबर की आर्या ने खुद की पहचान बनाने की ठान ली।
महाराजा अग्रसेन बालिका इंटर कालेज में 12वीं की छात्रा नित्या को खो-खो पंसद है। वह राष्ट्रीय स्तर पर छह बार खेल चुकी है। राजकीय इंटर कालेज में 11वीं की छात्रा सत्या व आर्या, सातवीं की छात्रा शिल्पी को क्रिकेट पसंद हैं। सत्या प्रदेश स्तर तक स्कूली खेल में प्रतिभाग कर चुकी है। आर्या ने अंडर-16 में कानपुर में यूपीसीए कैंप में 10 दिन का प्रशिक्षण लिया, उसका चयन अंडर-16 यूपी टीम में हो गया। सत्या नागपुर में 10 से 14 जनवरी तक खेले गए राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में प्रतिभाग कर लौटी है। सबसे छोटी शिल्पी नेशनल स्कूली गेम्स में प्रतिभाग कर चुकी है। चारों बहनें स्व. रविंद्र किशोर शाही स्टेडियम में प्रशिक्षक की निगरानी में अभ्यास करती हैं।
बच्चों को खेलते देखा तो बन गईं खिलाड़ी
जिले के जद्दू परसिया गांव के मूल निवासी रामकेश शुक्ला 30 वर्ष पहले गांव से परिवार के साथ शहर आ गए। यहां रहने का ठौर ठिकाना तलाशते रहे। काफी जद्दोजहद के बाद रहने का ठिकाना मिला। बेरोजगार होने की वजह से दो जून की रोटी का इंतजाम कठिन हो गया। वह चूरन बेचना शुरू कर दिए। उसी से उनकी आजीविका चल रही है। कांशीराम शहरी आवास के कमरे में बहनें दुबकी रहती थीं। 2012 में नित्या रविंद्र किशोर शाही स्टेडियम की तरफ खेलने गई। स्टेडियम में बच्चों को खेलते देखा तो उसके मन में भी खिलाड़ी बनने की इच्छा हुई।
नित्या कहती है कि पिता रामकेश व माता उर्मिला देवी का भरपूर प्रोत्साहन मिल रहा है। पिता का सपना है कि बेटियां नाम रोशन करें। नित्या बताती है कि वह शुरू में क्रिकेट खेलना चाहती थी लेकिन उसका रुझान खो-खो की तरफ था। वह तभी से खो-खो खेल खेल रही है। वह अब तक प्रदेशीय विद्यालयीय खो-खो प्रतियोगिता के अलावा स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया की तरफ से आयोजित नेशनल स्कूल गेम्स में छह बार प्रतिभाग कर चुकी है। उसके बाद उसकी बहनें भी खेल में रुचि लेने लगीं। तीन साल से उसकी बहनें लगातार अभ्यास कर रही हैं। सत्या प्रदेशीय माध्यमिक विद्यालयी सीके नायडू क्रिकेट प्रतियोगिता के अलावा यूपीसीए के कानपुर कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है। छठवें नंबर की आर्या लेग स्पिनर है। सबसे छोटी शिल्पी आल राउंडर है। वह नेशनल स्कूल गेम्स 2016-17 में खेलने के साथ ही यूपीसीए के कानपुर कैंप में प्रतिभाग कर चुकी है।
क्रिकेट ने दिया प्लेन में बैठने का मौका
जिस घर में वाहन के नाम पर महज दो साइकिल और रहने को कांशीराम आवास हो, उसकी बेटी को क्रिकेट ने हवाई जहाज में बैठने का मौका दिया। बीसीसीआई के खर्च पर। आर्या नेशनल खेलने के लिए लखनऊ से नागपुर वाया दिल्ली अपनी टीम के साथ हवाई जहाज से गईं।
माता-पिता ने बढ़ाया हौसला
आर्या कहती हैं कि पिता रामकेश शुक्ल और मां उर्मिला के प्रोत्साहन से ही उसने क्रिकेट को अपना कैरियर बनानी की ठानी। स्टेडियम में कोई और महिला क्रिकेटर नहीं होने के कारण एकबार मन हिचका तो दोनों ने उसकी हौसला आफजाई की। प्रेक्टिस के दौरान पिछले दिनों नॉक पर गंभीर चोट लग गई। इसकी वजह से पखवारे भर तक अभ्यास छूटा रहा। एक बार तो लगा कि यूपी टीम में सलेक्शन नहीं हो पाएगा, पर मां ने हिम्मत बढ़ाया। इसके बाद अभ्यास का समय सुबह शाम बढ़ा दिया। इसकी वजह से ही सफलता मिल सकी।
आर्थिक तंगी के बाद भी बनीं मजबूत
देवरिया की आर्या शुक्ला के पास जूता और क्रिकेट किट खरीदने भर तक के पैसे नहीं थे, बावजूद इसके उसने हार नहीं मानी। स्टेडियम पहुंच कर लड़कों के साथ प्रेक्टिस करने लगी। उसकी लगन देख स्टेडियम के कोच आगे आए। दूसरों से आर्थिक सहयोग लेकर उसके लिए जूते और किट का इंतजाम कराया। हौसला बढ़ा तो आर्या ने मंजिल पाने के लिए जान लगा दिया। अब वह यूपी की अंडर 16 टीम में बतौर लेग स्पिनर शामिल हो चुकी है।
कानपुर में ट्रायल के बाद हुआ अंडर 16 में सलेक्शन
अभ्यास के बाद आर्या के खेल में निखार आने लगा। इसके बाद उसका चयन बतौर लेग स्पिनर जिला और फिर मंडलीय टीम में हो गया। मंडल स्तर पर चयन के बाद आर्या बीते वर्ष 17 दिसंबर को कानपुर में आयोजित प्रदेश स्तरीय ट्रायल में पहुंची। वहां चार चरणों के ट्रायल के बाद यूपी की अंडर 16 टीम में उसका चयन हो गया।
इस वर्ष 10 से 14 जनवरी तक बीसीसीआई की तरफ से नागपुर में अंडर 16 की राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। इस प्रतियोगिता के तीसरे मैच में उसे छत्तीसगढ़ के खिलाफ मौका मिला। इस मैच में आर्या कोई विकेट तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन तीन ओवर में एक मेडेन के साथ महज 12 रन देने के कारण चयनकर्ताओं को उसने काफी प्रभावित किया।जीआइसी के प्रधानाचार्य पीके शर्मा व खेल शिक्षक श्रीप्रकाश तिवारी कहते हैं कि तीनों बहनें अच्छा खेल रही हैं। विद्यालय की तरफ से उनको प्रोत्साहित किया जा रहा है।