अभी हाल ही में कतर और सऊदी अरब में रिश्ते बिगड़ने के कारण हजारों भारतीय मजदूरों को नौकरियां गंवानी पड़ी। लेकिन संयुक्त अरब अमीरात पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। एक जमाने में चलो दुबई चलें का मतलब होता था- दुबई में नौकरियों की भरमार, लेकिन अब दुबई विकसित है। क्या अब भी यहां नौकरियों के अवसर हैं? इसका पता लगाने बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद अमीरात गए। संयुक्त अरब अमीरात में भारत और दूसरे देशों से आए मजदूर सामूहिक तरीके से जिन इमारतों में रहते हैं उन्हें यहां लेबर कैंप कहा जाता है। पिछले दिनों मैं दुबई के ऐसे ही एक लेबर कैंप में गया, मैंने झोपड़पट्टी जैसी जगह की कल्पना की थी लेकिन बाहर से ये इमारत भारत के किसी मध्यम वर्ग की रिहायशी इमारत से कम नहीं लगी। 
साफ कमरे, रसोई, गुसलखाने
मैं जब अंदर गया तो कमरों और रसोई वगैरह में सफाई देखकर थोड़ा हैरान हुआ, हैरान इसलिए हुआ क्योंकि कतर में लेबर कैम्पों की खराब हालत के बारे में सुन रखा था। इस चार मंजिला इमारत में 304 कमरे थे और हर कमरे में तीन से चार मजदूर एक साथ रह रहे थे। उनके बिस्तर वैसे ही थे जैसे ट्रेन की बर्थ होती हैं। ये कमरे छात्रों के हॉस्टल ज्यादा नजर आ रहे थे। उनके रसोई घर, शौचालय और गुसलखाने सामूहिक इस्तेमाल के लिए थे लेकिन साफ थे।
वहां मौजूद मजदूरों में से कुछ से मुलाकात हुई जिनमें से दो बिहार के सीवान जिले के मिले। दोनों ने कर्ज लेकर एजेंटों को पैसे दिए थे। एक से मैंने पूछा कि क्या कर्ज लेकर नौकरी हासिल की है तो उसने कहा – हां। उसने बताया कि उसने 60,000 रुपये कर्ज लिए हैं जिनमें से छह महीने में 10,000 रुपये वापस भी लौटा दिए।
मजदूर की तनख्वाह 36 हजार, ड्राइवर की 54 हजार
सीवान के दूसरे श्रमिक सोनू यादव ने बताया कि यहां रहने में दिक्कत तो है लेकिन मजबूरी है। उसने कहा, “एक आदमी को दिक्कत है और 10 लोग सही से रह रहे हैं तो एक आदमी को तकलीफ सहनी चाहिए। दोनों खुश इस बात से हैं कि वो हर महीने अपने परिवार वालों को पैसे भेज रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात में इस तरह के लेबर कैम्पों की एक अच्छी खासी संख्या है जहां लाखों भारतीय मजदूर रहते हैं।
सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के अनुसार भारतीय मूल के 28 लाख लोग यहां रहते हैं जिनमें से कर्मचारियों की संख्या 20 लाख है। दस लाख के करीब लोग तो अकेले केरल से ही यहां आए हुए हैं। कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले एक मजदूर को महीने के 2000 दिरहम यानी 36,000 रुपये मिल जाते हैं। वो 15,000 से 20,000 रुपये घर भेज सकता है. इसी तरह एक ड्राइवर की तनख़्वाह 3,000 दिरहम यानी 54,000 रुपये।
मध्यम वर्ग की नौकरियों की मांग बढ़ी
लेकिन अब मध्यम वर्ग की नौकरियों का चलन बढ़ा है। कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले केवल मजदूर ही नहीं बल्कि इंजीनियर भी हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि 10,000 दिरहम (180,000) प्रति माह की नौकरी मध्यम वर्ग के लोगों में अच्छी नौकरी मानी जाती है।
मगर यहां ये बताना जरूरी है कि किराए के घर काफी महंगे हैं, कई बार पगार का आधा हिस्सा किराए में ही खर्च हो सकता है। दुबई में वीडियो ब्लॉगिंग करके नौकरियों के बारे में जानकारी देने वाले अजहर नवीद आवान के अनुसार दुनिया भर की क्रेनों में से 30 प्रतिशत दुबई में है। इसका मतलब ये हुआ कि इंजीनियर और सिविल इंजीनियरों की यहां बहुत खपत है।
बायोडेटा बनाने पर ध्यान देने की सलाह
नवीद कहते हैं, “मेरे पास जो लोग आते हैं उनमें बहुमत सिविल इंजीनियरों का है। भारत से भारी संख्या में आते हैं, आप एमार जैसी कंस्ट्रक्शन कंपनियों में जाएं तो ऊपर से लेकर नीचे तक आपको भारतीय मिलेंगे” भारत से नौकरी हासिल करने वाले लोगों को नवीद की सलाह ये है कि वो अपने सीवी पर अधिक ध्यान दें। “कई लोग सीवी पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते जिसकी वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिलती।
महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल
उनकी सहयोगी फातिमा कहती हैं कि भारत से आने वालों में महिलाओं की संख्या ज़्यादा है। महिलाओं के लिए दुबई सबसे सुरक्षित देशों में से एक है। उनके अनुसार दुबई में अकेली महिलाएं भी आती हैं। अमीरात में काफी तरक्की हुई है, लेकिन आज भी नई इमारतें हर जगह बनती नजर आती हैं। दुबई में मैं एक जगह गया जहां एक नई इमारत खड़ी करने में दर्जनों भारतीय मजदूर जोर-शोर से काम कर रहे हैं।संयुक्त अरब अमीरात में इस तरह का मंजर आम है। यहां पिछले 20 साल में काफी विकास हुआ है। इसमें अब और तेजी आई है।
बनी हुई है भारतीयों की मांग
दुबई में सिटी टावर्स कंपनी के अध्यक्ष तौसीफ़ खान कहते हैं कि भारतीयों के लिए यहां नौकरी के अवसर बढ़े हैं, “भारत में रोज़गार के काफी मौके हैं. लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के कारण बेरोज़गारी बढ़ी है। यहां अमीरात में नौकरियों के काफी अवसर हैं और यहां नौकरियां सुरक्षित हैं। जब तक वो यहां काम कर कर रहे हैं, उनकी नौकरी पक्की है, पगार सुरक्षित है।” उनका कहना था कि दुबई में नए इलाकों का विकास हो रहा है जहां कंस्ट्रक्शन का काम तेजी से हो रहा है। इसका मतलब साफ है कि आने वाले कई सालों तक भारतीयों की जरूरत बनी रहेगी।
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