तो इस वजह से 25 दिसंबर को की जाती है ‘तुलसी की पूजा’…

25 दिसम्बर को सब क्रिसमस मनातें हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में इस दिन को तुलसी पूजन के नाम से जाना जाता हैं। लोग इस दिन तुलसी पूजा करते हैं।

img_20161224104335आज हम आपको इसी से जुड़े कुछ Facts बताएंगे, जिसका पता होना आप सभी का जरूरी है।
– अभी #यूरोप, #अमरीका और ईसाई जगत में इस समय #क्रिसमस डे की धूम है। अधिकांश लोगों को तो ये पता ही नहीं है कि यह क्यों मनाया जाता है।
– कुछ लोगों का भ्रम है कि इस दिन ईशदूत। ईसा मसीह का जन्मदिन पड़ता है पर सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था ।
– वास्तव में पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रांति’ पर्व आता था और यूरोप-अमेरिका धूम-धाम से इस दिन सूर्य उपासना करता था। सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।
– सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है। सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। जिसके अनुसार 22 दिसंबर को #सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है। इसलिए 25 को मकर संक्रांति मनाते थे।
– विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया । 
– ईस्वी सन् 325 में निकेया (अब इजनिक-तुर्की) नाम के स्थान पर सम्राट कांस्टेन्टाइन ने प्रमुख #पादरियों का एक सम्मेलन किया और उसमें ईसाईयत को प्रभावी करने की योजना बनाई गई।
– पूरे यूरोप के 318 पादरी उसमें सम्मिलित हुए। उसी में निर्णय हुआ कि 25 दिसम्बर मकर संक्रान्ति को सूर्य-पूजा के स्थान पर ईसा पूजा की परम्परा डाली जाये और इस बात को छिपाया जाये कि ईसा ने 17 वर्षों तक भारत में धर्म शिक्षा प्राप्त की थी। इसी के साथ ईसा मसीह के मेग्डलेन से विवाह को भी नकार देने का निर्णय इस सम्मेलन में किया गया था। और बाद में #पहला क्रिसमस डे 25 दिसम्बर सन् 336 में मनाया गया। 
– आपको बता दें कि यीशु ने #भारत में कश्मीर में अपने ऋषि मुनियों से सीखकर 17 साल तक #योग किया था बाद में वे रोम देश में गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इतर से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे ।
– बाद में यीशु के अधिक लोक संपर्क से #योगबल खत्म हो गया और बाद में उनको सूली पर चढ़ा दिया गया तब पूरा रोम शहर उनके खिलाफ था । रोम शहर में से केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ाने से दुःखी थे ।
इसके अलावा आपको बता दे कि तुलसी को लगाने से, पालने से, सींचने से, दर्शन करने से, स्पर्श करने से, मनुष्यों के मन, वचन और काया से संचित पाप जल जाते हैं। वायु पुराण में तुलसी पत्र तोड़ने की कुछ नियम मर्यादाएँ बताते हुए लिखा है – अस्नात्वा तुलसीं छित्वा यः पूजा कुरुते नरः । सोऽपराधी भवेत् सत्यं तत् सर्वनिष्फलं भवेत्॥ अर्थात् – बिना स्नान किए तुलसी को तोड़कर जो मनुष्य पूजा करता है, वह अपराधी है। उसकी की हुई पूजा निष्फल जाती है, इसमें कोई संशय नहीं।
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती।

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