शिरडी के साईं बाबा की मानवता, प्रेम, दयालुता और चमत्कारों किस्से हर कोने में फैले हैं। अधिकतर लोगों ये नहीं समझ पाते कि अचानक एक फकीर साईं कैसे बन गए। 28 सितंबर 1835 को जन्में साईं बाबा ने अपना परिचय कभी नहीं दिया। माता पिता, जन्म स्थान आदि को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठते रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि 1854 ई. में साईं बाबा पहली बार शिरडी में दिखाई दिए। उस समय बाबा की उम्र करीब 16 वर्ष थी। इतनी कम उम्र के बालक को नीम के वृक्ष में नीचे समाधि में लीन देखकर शिरडी के लोगों आश्चर्य हुआ।
अपनी भूख प्यास, सर्दी-गर्मी सब कुछ भूलाकर कठिन तपस्या करने वाले बालयोगी ने जल्द ही शिरडी वालों के दिल में अपना स्थान बना दिया। अक्सर लोग उनके धर्म को लेकर भी बातें करते थे।
बाबा हिन्दू है या मुस्लिम, इसे लेकर शिरडी वालों में हमेशा ही चर्चा होती है, लेकिन वो तो फकीर थे। इसी बीच एक दिन अचानक ही बाबा शिरडी से चले गए। नीम के पेड़ के चबूतरे को ही अपना घर मानने वाले इस फकीर को लोगों ने बहुत खोजा।
कुछ वर्ष बाद बाबा चांद पाटिल की बारात के साथ एक बार शिरडी आए। उन्हें शिरडी में देखकर खंडोबा मंदिर के पुजारी म्हालसापति ने कहा कि आओ सांई। तभी से उनका नाम साईं बाबा पड़ गया। इसके बाद साईं बाबा बारात के साथ नहीं गए और हमेशा-हमेशा के लिए शिरडी के होकर रह गए। उनकी दयालुता और चमत्कारों की चर्चा हर जगह होने लगी और वे कहलाने लगे शिरडी के साईं बाबा।