मुकेश तिवारी
(mukeshpress@gmail.com)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इंदौर में ढोल-ढमाके और शोर-शराबे से भरे रोड शो के बाद कई साल पहले होने वाले सादगी भरे रोड शो की याद आ गई। याद आए पूर्व सांसद कामरेड होमी दाजी। बीस साल पहले इसी अक्टूबर महीने की ठंड भरी एक सुबह को मैं उनसे पुराने चुनावों पर नया लिखने के इरादे से मिलने पहुंचा था। चिमनबाग चौराहा, इंदौर पर राज्य परिवहन निगम के संभागीय कार्यालय के पीछे छोटी-सी गली में वह मकान। मुझे याद है पेरिन दाजी ने दरवाजा खोलते ही कहा था आप आने में थोड़ा लेट हो गये होमी कब से तैयार बैठे हैं। मजदूरों की आवाज कहलाने वाले दाजी उसूलों के जितने पक्के थे समय के उतने ही पाबंद भी। खैर, चर्चा शुरू हुई तो वह दो बातों से खासे खफा नजर आए। एक – राजनीति में बढ़ती धर्म की उपस्थिति और दूसरा – रुपयों का खर्च। उनका ऐसा मत था कि यह लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है।
सादा जीवन और ऊंच विचार के साथ जीने वाले दाजी का मानना था कि जनता के बीच चुनाव में अपना पक्ष रखने या बात कहने का तरीका सादगी से भरा होना चाहिए। बहुत शोर-शराबे भरे प्रचार के बीच कई बार हम जनता से जो कहना चाहते हैं वह मूल बात कहीं खो जाती है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता दाजी ने बताया था कि वह उनके साथी नेता और कार्यकर्ता किस तरह चुनाव प्रचार करने के लिए सड़क पर बेलन से थाली को बजाते हुए निकलते थे। वह भी वोट मांगते थे और वोट मिलता भी था। ऐसे ही थोड़ी इंदौर लोकसभा सीट से जीतकर तीसरी लोकसभा (1962-67) में पहुंच गये थे। एक समय देश में कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल रहे होमी दाजी का कहना था कि नेताओं ने धन और साधनों के बल पर प्रचार का आसान तरीका ढूंढ लिया है। धन और बाहुबल ने राजनीति को गंदा कर दिया है। कामरेड दाजी तो अब नहीं रहे पर उनका वह शब्द आज भी कानों में गूंजता है कि धन और साधनों के बल पर लड़ा जाने वाला चुनाव और किया जाने वाला प्रचार एक ना एक दिन जनता के नुमाइंदों को जनता से ही बहुत दूर कर देगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ghamasan.com के संपादक हैं।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal